यशायाह 2

2
परमेश्‍वर का विश्‍वव्‍यापी शान्‍ति का राज्‍य
1यशायाह बेन-आमोत्‍स ने दर्शन में यहूदा प्रदेश और यरूशलेम के सम्‍बन्‍ध में यह सुना :
2आनेवाले दिनों में यह होगा :
जिस पर्वत पर
प्रभु का भवन निर्मित है,
वह विश्‍व के पर्वतों में उच्‍चतम स्‍थान पर,
गौरवमय स्‍थान पर प्रतिष्‍ठित होगा।
वह पहाड़ियों के मध्‍य उच्‍चतम स्‍थान ग्रहण
करेगा;
विश्‍व के राष्‍ट्र जलधारा के समान उसकी ओर
बहेंगे।#मी 4:1-3
3देश-देश के लोग वहाँ जाएंगे
और यह कहेंगे :
‘आओ, हम प्रभु के पर्वत पर चढ़ें;
आओ, हम याकूब के परमेश्‍वर के भवन की
ओर चलें,
ताकि प्रभु हमें अपना मार्ग सिखाए,
और हम उसके सिखाए हुए मार्ग पर
चलें।’
सियोन पर्वत से प्रभु की व्‍यवस्‍था प्रकट
होगी,
यरूशलेम नगर से ही प्रभु का शब्‍द सुनाई
देगा। #जक 8:21; लू 24:47; यो 4:22
4प्रभु राष्‍ट्रों के मध्‍य न्‍याय करेगा;
वह भिन्न-भिन्न कौमों को अपना निर्णय
सुनायेगा।
तब विश्‍व में शान्‍ति स्‍थापित होगी :
राष्‍ट्र अपनी तलवारों को हल के फाल
बनायेंगे,
वे अपने भालों को हंसियों में बदल देंगे।
एक राष्‍ट्र दूसरे राष्‍ट्र के विरुद्ध तलवार नहीं
उठायेगा,
वे युद्ध-विद्या फिर नहीं सीखेंगे।#योए 3:10
5ओ याकूब के वंशजो,
आओ, हम प्रभु की ज्‍योति में चलें।
अहंकारियों का पतन निस्‍सन्‍देह होगा
6हे प्रभु, तूने अपने निज लोगों को,
याकूब के वंशजों को त्‍याग दिया,
क्‍योंकि उनमें पूर्व देश के व्‍यापारी भर गए हैं,
पलिश्‍ती लोगों के सदृश झाड़-फूंक करनेवाले
उनमें बस गए हैं;
विदेशियों की सन्‍तान उनमें पनप रही है।
7उनका देश सोने और चांदी से भर गया है;
उनके खजाने का कोई अन्‍त नहीं।
उनका देश घोड़ों से भरपूर है;
उनके यहाँ असंख्‍य रथ हैं।
8उनका देश मूर्तियों से परिपूर्ण है।
वे अपने हाथों से बनाई गई मूर्तियों की
वन्‍दना करते हैं,
जिनको उनकी अंगुलियों ने रचा है।
9मनुष्‍य-जाति का पतन हो रहा है,
मनुष्‍य नीचे गिर रहा है!
प्रभु, तू उसको मत उठा!
10ओ मनुष्‍य!
प्रभु के आतंक से,
उसकी प्रभुता के तेज से भागकर
चट्टान की गुफा में प्रवेश कर;
तू रेत के ढेर में छिप जा। #प्रक 6:15; 2 थिस 1:9
11मनुष्‍य-जाति की चढ़ी हुई आंखें नीची की
जाएंगी;
मनुष्‍य का घमण्‍ड चूर-चूर किया जाएगा।
उस दिन केवल प्रभु ही उच्‍च स्‍थान पर
विराजमान होगा।
12अहंकारियों और अभिमानियों के लिए,
घमण्‍डियों और गर्व से फूलनेवालों के
लिए#2:12 मूल में, “वे नीचे किए जाएंगे” ।
स्‍वर्गिक सेनाओं के प्रभु ने एक दिन
निश्‍चित कर रखा है।
13उसने इन सबके विरुद्ध भी वह दिन निश्‍चित
कर रखा है :
आसमान की ओर सिर उठाए लबानोन के
देवदार के वृक्ष,
बाशान क्षेत्र के बांज-वृक्ष,
14ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और आसमानी पहाड़ियां,
15ऊंची मीनारें और पक्‍की शहरपनाह,
16तर्शीश देश के जलयान, और अरब सागर
के जहाज।
17सिर उठाकर चलनेवाले मनुष्‍य का पतन
होगा,
मनुष्‍य-जाति का घमण्‍ड चूर-चूर किया
जाएगा।
उस दिन केवल प्रभु ही उच्‍च स्‍थान पर
विराजमान होगा।
18मूर्तियों का पूर्णत: अन्‍त हो जाएगा।
19जब प्रभु पृथ्‍वी को आतंकित करने के लिए
अपने सिंहासन से उठेगा,
तब मनुष्‍य उसके आतंक से,
उसकी प्रभुता के तेज से भागकर
चट्टान की गुफाओं में प्रवेश करेंगे,
वे भूमि के गड्ढों में छिपेंगे।
20उस दिन मनुष्‍य सोने-चांदी की मूर्तियों को,
जो उन्‍होंने पूजा करने के लिए बनाई थीं,
छछून्‍दरों और चमगादड़ों के सामने फेंक
देंगे;
21और वे प्रभु के आतंक से,
उसकी प्रभुता के तेज से भागकर
चट्टानों की खोहों में,
अधरशिलाओं के दरारों में छिपेंगे;
क्‍योंकि प्रभु पृथ्‍वी को आतंकित करने के
लिए
अपने सिंहासन से उठेगा।
22अत: मनुष्‍य से,
जो केवल सांस का पुतला है,
मुंह मोड़ लो।
उसका मूल्‍य ही कितना है?

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