यहेजकेल 12
12
निष्कासन के प्रतीक-चिह्न
1प्रभु का यह वचन मुझे मिला। उसने कहा, 2‘ओ मानव, तू विद्रोही कौम, इस्राएली कुल के मध्य रहता है। उनके पास आंखें तो हैं, पर उन्हें दिखाई नहीं देता। उनके पास कान हैं, पर वे सुनते नहीं। इस्राएली कुल विद्रोही है।#यश 6:9; यिर 5:21; मत 13:13 3इसलिए ओ मानव, तू निष्कासन का सामान तैयार कर, और दिन के समय उनकी आंखों के सामने नगर से निष्कासित हो। तू निष्कासित व्यक्ति के समान उनकी आंखों के सामने अपने निवास-स्थान से दूसरे स्थान को चले जाना। यद्यपि इस्राएली लोग विद्रोही हैं, परन्तु हो सकता है, वे तुझ पर ध्यान दें। 4इस प्रकार, तू दिन के समय उनकी आंखों के सामने अपना सामान बांध लेना, मानो यह निष्कासन का सामान है। और जैसे लोग सामान लादकर निष्कासन में जाते हैं, वैसे ही तू संध्या समय उनकी आंखों के सामने अपने निवास-स्थान से निकल कर जाना। 5उनके सामने ही अपने मकान की दीवार फोड़ना और उससे निकल जाना। 6उनके सामने ही अपना सामान कंधे पर उठाना और अंधकार में चले जाना। निष्कासित होनेवाले बंदी के समान तू अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेना ताकि निष्कासित होते समय तू अपने देश को न देख सके; क्योंकि मैंने तुझको इस्राएली कुल के लिए एक चिह्न ठहराया है।’#यश 8:18
7मैंने वैसा ही किया जैसा मुझे आदेश मिला था। मैंने अपने देश से निष्कासित होनेवाले बन्दी के समान अपना सामान दिन में तैयार किया, और सन्ध्या समय अपने हाथों से मकान की दीवार को फोड़ा। जब अंधेरा हुआ तब मैंने इस्राएलियों की आंखों के सामने अपना माल-असबाब अपने कंधे पर रखा, और चला गया।
8सबेरे प्रभु का यह सन्देश मुझे मिला। प्रभु ने मुझसे कहा, 9‘ओ मानव, तूने देखा न कि इस्राएली कुल ने, उस विद्रोही कुल ने तुझ से यह भी नहीं पूछा कि तू क्या कर रहा है? 10जा, उनसे यह कह, “स्वामी-प्रभु यों कहता है : यरूशलेम नगर के शासक और नगर में रहनेवाले सब इस्राएली लोगों के विषय में प्रभु का यह गंभीर वचन है” । 11ओ मानव-पुत्र, तू उनसे यह कहना : मैं−यहेजकेल तुम्हारे लिए एक चिह्न हूं। जैसा मैंने किया है वैसा तुम्हारे साथ किया जाएगा। तुम अपने नगर और देश से निष्कासित होगे, और बन्दी बनकर विदेश जाओगे। 12तुम्हारा शासक अंधेरे में अपने कंधे पर अपना सामान उठाएगा और चला जाएगा। तुम दीवार को फोड़ोगे और वह उससे निकल जाएगा। उसकी आंखों पर पट्टी बांधी जाएगी, ताकि वह अपने देश को न देख सके। 13मैं उस पर अपना जाल फेंकूंगा, और वह मेरे फंदे में फंस जाएगा। मैं उसको कसदी देश की राजधानी बेबीलोन में लाऊंगा, लेकिन वह उसको न देख सकेगा (क्योंकि वह अंधा कर दिया जाएगा) और वहीं मर जाएगा।#यिर 52:11 14मैं उसको सहायकों और उसके सैन्य दलों को सब दिशाओं में बिखेर दूंगा, और तलवार खींचकर उनका पीछा करूंगा। 15जब मैं उनको राष्ट्रों में तितर-बितर करूंगा, देशों में बिखेर दूंगा, तब उनको ज्ञात होगा कि मैं ही प्रभु हूं। 16फिर भी मैं उनमें से कुछ लोगों को तलवार, अकाल और महामारी से बच कर भागने दूंगा; क्योंकि मैं चाहता हूं कि जिन राष्ट्रों में जाकर वे बसेंगे उनमें वे अपने सब घृणित कार्यों को स्वीकार कर पश्चात्ताप करें, और इस सच्चाई का अनुभव करें कि मैं ही प्रभु हूं।’
जनता में भय
17फिर प्रभु का यह सन्देश मुझे मिला। प्रभु ने मुझसे कहा, 18‘ओ मानव, तू डर से कांपते हुए रोटी खाना, और भय से थर-थराते हुए पानी पीना।#यहेज 4:16 19तब अपने देशवासियों से यह कहना ‘ इस्राएल देश की राजधानी यरूशलेम के निवासियों के सम्बन्ध में स्वामी-प्रभु यों कहता है: तुम सब अपने नगर में हिंसात्मक कार्य करते हो, इसलिए तुम्हारा देश खाली हो जाएगा। तुम डर से कांपते हुए रोटी खाओगे और भय से थर-थराते हुए पानी पीओगे। 20तुम्हारे आबाद नगर उजाड़ हो जाएंगे, और सारा देश निर्जन हो जाएगा। तब तुम्हें मालूम होगा कि मैं ही प्रभु हूं।’
विनाश समीप है
21प्रभु का यह सन्देश मुझे मिला। प्रभु ने मुझसे कहा, 22‘ओ मानव, इस कहावत का क्या अर्थ है जो तुम अपने देश के सम्बन्ध में कहते हो : “दिन तो बीतते-बीतते अधिक हो गए, किन्तु प्रभु के दर्शन की बातें सच सिद्ध नहीं हुईं।” ?#2 पत 3:4 23इसलिए तू उनसे कह : “स्वामी-प्रभु यों कहता है, अब मैं इस कहावत का अन्त कर दूंगा, और लोग इस्राएल देश में फिर कभी इसका प्रयोग नहीं करेंगे।” तू उनसे यह कहना : “दिन समीप आ गए, और प्रत्येक दर्शन की बातें पूरी होंगी। 24अब इस्राएली कुल में कोई भी मनुष्य झूठा दर्शन, और मन के अनुकूल शकुन नहीं विचारेगा। 25किन्तु केवल मैं-प्रभु ही वचन कहूंगा, और उसको पूरा करूंगा। उसके पूर्ण होने में विलम्ब नहीं होगा। ओ विद्रोही कुल, मैं तेरे समय में वचन कहूंगा, और उसको निस्सन्देह पूरा करूंगा।” स्वामी-प्रभु यह कहता है।’
26प्रभु का सन्देश मुझे पुन: प्राप्त हुआ। प्रभु ने मुझसे कहा, 27‘ओ मानव, देख, इस्राएली कुल के लोग यह कहते हैं : “जो दर्शन नबी देखता है, उसकी बातें बहुत दिनों में पूरी होंगी। उसकी भविष्यवाणियां दूर भविष्य के लिए हैं।” 28इसलिए तू उनसे यह कह : स्वामी-प्रभु यों कहता है, मेरे वचन के पूर्ण होने में विलम्ब नहीं होगा। जो मैं कहता हूं, वह निस्सन्देह पूरा होगा। स्वामी-प्रभु यह कहता है।’#प्रक 10:6
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