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भजन संहिता 120

120
छल-कपट से मुक्‍त रहने की प्रार्थना
यात्रा-गीत।
1अपने संकट में
मैंने प्रभु को पुकारा कि वह मुझे
उत्तर दे;
2‘हे प्रभु, झूठे ओंठो से,
कपटी जिह्‍वा से मेरी रक्षा कर।’
3अरी, छलनेवाली जीभ, परमेश्‍वर तुझे क्‍या
दण्‍ड दे?
वह तेरे साथ और क्‍या करे?
4तू मानो योद्धा का पैना तीर है;
तू झाऊ वृक्ष का दहकता अंगारा है।
5धिक्‍कार है मुझे,
कि मैं मेशेक जाति के मध्‍य
प्रवास कर रहा हूं,
केदार जाति के शिविरों में
निवास कर रहा हूं।
6बहुत समय तक मैं इन जातियों में रह चुका;
ये शांति से घृणा करती हैं।
7मैं शान्‍ति चाहता हूं;
पर जब मैं शान्‍ति के वचन कहता हूं,
तब ये युद्ध का उपक्रम करती हैं।

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