मलाकी 3
3
1स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘मैं अपने दूत को अपने आगमन के पूर्व भेज रहा हूं। वह मेरे मार्ग को तैयार करेगा। और वह स्वामी, जिसको तुम ढूंढ़ रहे हो, अपने मन्दिर में अचानक आएगा। विधान का वह दूत, जिससे तुम प्रसन्न हो, देखो, वह आ रहा है।#मत 11:10; मक 1:2; लू 1:17,76; 7:27 2पर उसके आगमन-दिवस को कौन व्यक्ति सह सकता है? जब वह दिखाई देगा तब कौन व्यक्ति उसके सम्मुख खड़ा हो सकेगा?
‘क्योंकि वह सुनार की शोधन-भट्ठी के समान परिष्कर्त्ता है, वह धोबी के साबुन के समान गन्दगी को धोनेवाला है।#प्रक 6:17 3वह सोने के परिष्कर्त्ता और चांदी के शुद्धकर्त्ता के रूप में सिंहासन पर बैठेगा, और लेवीय पुरोहितों को सोना-चांदी के सदृश शुद्ध करेगा। तब वे प्रभु को विधिवत् भेंट चढ़ाएंगे। 4यहूदा प्रदेश और यरूशलेम नगर के निवासियों की यह भेंट प्रभु को पसन्द आएगी, जैसे बीते दिनों में प्राचीनकाल में उसे पसन्द आती थी।’
5स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘तब मैं अदालत में तुम्हारे सम्मुख उपस्थित होऊंगा। मैं इन सब लोगों के विरुद्ध तुरन्त साक्षी दूंगा: झाड़-फूंक करनेवाले ओझा, व्यभिचारी, झूठी शपथ खानेवाले, मजदूर की मजदूरी दबानेवाले, विधवाओं और अनाथों पर अत्याचार करनेवाले, प्रवासी के अधिकारों को छीननेवाले और मुझसे न डरनेवाले।#याक 5:4,8-9
दशमांश की चोरी
6‘मैं अपरिवर्तनीय प्रभु हूं: इसलिए ओ याकूब के वंशजो, तुम अब तक जीवित हो।#गण 23:19; प्रव 42:10 7तुम अपने पूर्वजों के समय से मेरी संविधियों का उल्लंघन करते आ रहे हो, तुमने उनका पालन नहीं किया। मैं, स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यह कहता हूं: मेरी ओर लौटो, तो मैं भी तुम्हारी ओर लौटूंगा। तुम पूछते हो, “हमने क्या किया है जिससे हम लौटें?” #जक 1:3 8क्या मनुष्य मुझ-परमेश्वर को धोखा दे सकता है? पर तुम मुझे धोखा दे रहे हो। तुम पूछते हो, “हम तुझे किस प्रकार धोखा दे रहे हैं?” तुम अपने दशमांश और विधिवत् भेंटों में मुझे धोखा दे रहे हो। 9तुम-सब, सारा राष्ट्र महाशाप से शापित है, क्योंकि तुम मुझे धोखा दे रहे हो।
10‘मेरे भण्डार-गृह में पूर्ण दशमांश लाओ, जिससे मेरे भवन में भोजन-वस्तु रहे। तब मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे खोलकर तुम्हारे लिए वर्षा करता हूँ कि नहीं, मैं तुम पर आशिष की वर्षा करता हूँ कि नहीं।’#नीति 3:9; लेव 27:30; व्य 12:6
11स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘मैं विनाशक-जीव को डांटूंगा, ताकि वह तुम्हारी भूमि की फसल को नष्ट न करे। मैं, स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यह कहता हूं: तुम्हारे अंगूर-उद्यान में अंगूर की भरपूर फसल होगी। 12तब सब राष्ट्र तुम्हें सुखी राष्ट्र कहेंगे, क्योंकि तुम्हारा देश एक मनोहर देश होगा।’ स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु ने यह कहा है।
धार्मिक और अधार्मिक व्यक्ति
13प्रभु यों कहता है, ‘तुमने मेरे विरुद्ध कड़ी-कड़ी बातें कहीं। फिर भी तुम कहते हो, “हमने तेरे विरुद्ध क्या कहा है?” 14तुमने क्या यह नहीं कहा है, “परमेश्वर की सेवा करना व्यर्थ है। हमने उसके आदेशों का पालन किया, हम स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु के सम्मुख शोक-संतप्त चलते रहे। हमें क्या लाभ हुआ? 15अब हम अभिमानी लोगों को धन्य कहेंगे। दुष्कर्मी न केवल जीवन में सफल होते हैं, वरन् जब वे परमेश्वर को परखते हैं तब भी वे बच जाते हैं।” ?’
16जो प्रभु के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखते थे, उन्होंने आपस में बात की। प्रभु ने ध्यान दिया, उनकी बात सुनी। उसके सम्मुख एक स्मरण-पुस्तिका लिखी गई। इसमें उन लोगों के नाम लिखे गए, जो प्रभु का चिंतन करते थे। 17स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है, ‘जिस दिन मैं कार्रवाई करूँगा उस दिन ये मेरे निज लोग बनेंगे, मेरी मीरास बनेंगे। जैसे पिता सेवा करनेवाले अपने पुत्र को छोड़ देता है, और उसे दण्ड नहीं देता, वैसे ही मैं उन्हें छोड़ दूंगा। 18तुम धार्मिक और अधार्मिक में पुन: भेद पहचानोगे; तुम जानोगे कि कौन व्यक्ति मुझ-परमेश्वर की सेवा करता है, और कौन व्यक्ति मेरी सेवा नहीं करता।’
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मलाकी 3: HINCLBSI
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