2 इतिहास 6
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1तब राजा सुलेमान ने कहा, ‘हे प्रभु, तूने यह कहा था, कि तू सघन अन्धकार में निवास करेगा।#1 रा 8:12-50 2किन्तु मैंने तेरे लिए एक भव्य भवन बनाया; ऐसा स्थान बनाया कि तू उसमें सदा-सर्वदा निवास करे।’
भवन का अर्पण
3समस्त इस्राएली आराधकों का समूह#6:3 अथवा, ‘धर्मसभा’। खड़ा था। राजा सुलेमान उनकी ओर उन्मुख हुआ। उसने आराधकों को यह आशिष दी। 4उसने कहा ‘इस्राएली राष्ट्र का प्रभु परम्मेश्वर धन्य है। जो वचन उसने मेरे पिता दाऊद को अपने मुंह से दिया था, उसको सब उसने अपने हाथ से पूरा किया। 5उसने यह कहा था, “जिस दिन मैंने अपने निज लोग इस्राएलियों को मिस्र देश से बाहर निकाला, उस दिन से आज तक मैंने इस्राएली कुलों का कोई भी नगर नहीं चुना कि मैं एक भवन बनाऊं और वहां मेरा नाम प्रतिष्ठित हो। मैंने अपने निज लोग इस्राएलियों पर शासन करने के लिए भी किसी व्यक्ति को नहीं चुना। 6किन्तु मैंने यरूशलेम में अपना नाम प्रतिष्ठित करने के लिए उसको चुना। मैंने अपने निज लोग इस्राएलियों पर शासन करने के लिए दाऊद को चुना।” 7मेरे पिता दाऊद की यह हार्दिक इच्छा थी कि वह इस्राएली राष्ट्र के प्रभु परमेश्वर के नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाए।#2 शम 7:2 8परन्तु प्रभु ने मेरे पिता दाऊद से यह कहा, “तूने मेरे नाम की महिमा के लिए भवन बनाने की हार्दिक इच्छा की। तेरे हृदय की यह इच्छा उत्तम है। 9फिर भी तू यह भवन नहीं बना सकेगा। तेरा पुत्र, जो तुझसे उत्पन्न होने वाला है, वह मेरे नाम की महिमा के लिए भवन का निर्माण करेगा।” 10प्रभु ने अपने वचन को इस प्रकार पूरा किया : मैंने अपने पिता दाऊद का स्थान ग्रहण किया। मैं इस्राएली राष्ट्र के सिंहासन पर बैठा, जैसा प्रभु ने कहा था। मैंने इस्राएली राष्ट्र के प्रभु परमेश्वर के नाम की महिमा के लिए भवन का निर्माण किया। 11मैंने वहां भवन में मंजूषा भी रख दी, जिसमें प्रभु के उस विधान की पट्टियां हैं, जो उसने इस्राएलियों से स्थापित किया था।’
12तत्पश्चात् राजा सुलेमान प्रभु की वेदी के सम्मुख खड़ा हुआ। उसने समस्त इस्राएली आराधकों के सम्मुख आकाश की ओर अपने हाथ फैलाए। 13राजा सुलेमान ने पीतल का एक मंच बनाया था। वह सवा दो मीटर लम्बा, सवा दो मीटर चौड़ा और एक मीटर पैंतीस सेंटीमीटर ऊंचा था। उसने उसको आंगन में रखा था। वह मंच पर खड़ा हुआ।
राजा सुलेमान ने समस्त इस्राएली धर्मसभा की उपस्थिति में घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाकर यह प्रार्थना की। 14उसने कहा, ‘हे इस्राएली राष्ट्र के प्रभु परमेश्वर, तेरे समान न ऊपर आकाश में और न नीचे पृथ्वी पर कोई ईश्वर है। अपने सेवकों के प्रति, जो अपने सम्पूर्ण हृदय से तेरे सम्मुख निष्ठापूर्वक चलते हैं, तू अपने विधान का पालन करता है; तू उन पर करुणा करता है। 15तूने अपने सेवक मेरे पिता दाऊद को जो वचन दिया था, उसको पूरा किया। जो बात तूने अपने मुंह से कही थी, उसको तूने अपने हाथ से आज पूर्ण किया।
16‘हे इस्राएली राष्ट्र के प्रभु परमेश्वर, तूने अपने सेवक, मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और उससे यह कहा था, “यदि तेरे पुत्र, अपने आचरण के प्रति सावधान रहेंगे, जैसा तू मेरे सम्मुख निष्ठापूर्वक चलता है वैसा वे भी मेरी व्यवस्था पर चलेंगे, तो मैं इस्राएल के सिंहासन पर बैठने के लिए तेरे वंश में पुरुष का अभाव न होने दूंगा।” हे प्रभु, अपने इस वचन को पूर्ण कर।#1 रा 2:4 17हे इस्राएली राष्ट्र के प्रभु परमेश्वर, अब अपने सेवक दाऊद को दिए गए अपने वचन को सच प्रमाणित कर।
18‘हे परमेश्वर, क्या तू मानव के साथ पृथ्वी पर रह सकता है? देख, ऊंचे से ऊंचा आकाश भी तुझे नहीं समा सकता। तब तू मेरे इस भवन में जिसको मैंने बनाया है, कैसे समाएगा?#2 इत 2:6 19हे मेरे प्रभु परमेश्वर, अपने सेवक की प्रार्थना और उसकी विनती पर ध्यान दे। जो दुहाई और प्रार्थना आज तेरा सेवक तेरे सम्मुख प्रस्तुत कर रहा है, उसको तू सुन। 20इस भवन की ओर, जिसके विषय में तूने यह कहा था, “मेरा नाम वहां प्रतिष्ठित होगा,” तेरी आंखें रात-दिन खुली रहें। इस स्थान के सम्बन्ध में तेरा सेवक, जो प्रार्थना कर रहा है, उसको तू सुन।#व्य 12:11
21‘जब मैं, तेरा सेवक, और तेरे निज लोग इस्राएली इस स्थान में प्रार्थना करेंगे, तब तू उनकी विनती को सुनना। अपने निवास-स्थान, स्वर्ग से तू उनकी प्रार्थना सुनना। प्रभु, तू उनकी प्रार्थना सुनकर उन्हें क्षमा कर देना।
22‘जब कोई मनुष्य अपने पड़ोसी के विरुद्ध अपराध करेगा, और पड़ोसी उसको शपथ देगा, और वह तेरे इस भवन की वेदी के सम्मुख शपथ खाएगा 23तब तू स्वर्ग से उनका मुकदमा सुनना और कार्य करना। प्रभु, अपने सेवकों का न्याय करना। दुर्जन को दुर्जन घोषित करना और उसके आचरण का फल उसके सिर पर लौटाना। परन्तु सज्जन को सज्जन सिद्ध करना, और उसकी सज्जनता के अनुरूप उसे फल देना।
24‘जब तेरे निज लोग इस्राएली तेरे विरुद्ध पाप करेंगे, और पाप के कारण अपने शत्रु से हार जाएंगे, तब यदि वे तेरी ओर लौटेंगे, तेरे नाम का गुणगान करेंगे, तुझसे प्रार्थना करेंगे, और इस भवन में तुझसे विनती करेंगे 25तो तू स्वर्ग से उनकी प्रार्थना सुनना। अपने निज लोग इस्राएलियों के पाप क्षमा करना, और उनके देश में, जो तूने उनके पूर्वजों को और उनके पूर्वजों के बाद उनको दिया था, उन्हें लौटा लाना।
26‘जब वे तेरे विरुद्ध पाप करेंगे और तू आकाश के झरोखे बन्द कर देगा और उनके देश में वर्षा नहीं होगी, तब यदि वे इस भवन की ओर मुख कर प्रार्थना करेंगे, तेरे नाम का गुणगान करेंगे, जब तू उनको दण्ड दे चुका होगा और वे पाप को छोड़कर तेरी ओर लौटेंगे, 27तो तू स्वर्ग में उनकी प्रार्थना सुनना और अपने सेवकों, अपने निज लोग इस्राएलियों के पाप क्षमा करना। जिस सद्मार्ग पर उन्हें चलना चाहिए, उस सद्मार्ग की शिक्षा उनको देना। प्रभु, यह देश तूने अपने निज लोगों को पैतृक अधिकार के लिए प्रदान किया है। अत: तू इस देश को वर्षा प्रदान करना।
28‘जब इस देश में अकाल पड़ेगा, महामारी फैलेगी, फसल में गेरुआ कीड़ा लगेगा, पाला पड़ेगा, टिड्डी-दल का आक्रमण होगा अथवा फसल में कीड़े लगेंगे; जब उनके शत्रु उनको किसी नगर में घेर लेंगे अथवा विपत्ति या रोग का उन पर हमला होगा, 29तब यदि तेरे निज लोग इस्राएली सामूहिक रूप से अथवा कोई भी मनुष्य निज रूप से अपनी विपत्ति में दु:खी होकर इस भवन की ओर अपने हाथ फैलाएगा और तुझसे प्रार्थना तथा विनती करेगा, 30तो तू उसको क्षमा करना और अपने निवास-स्थान, स्वर्ग से उसकी प्रार्थना सुनना और कार्य करना। प्रत्येक मनुष्य को, जिसका हृदय तू जानता है, उसके कार्य के अनुरूप फल देना। प्रभु, केवल तू मनुष्य के हृदय को जानता है। 31इस प्रकार वे जीवनभर तेरी भक्ति करते हुए इस देश में निवास करेंगे, जो तूने हमारे पूर्वजों को दिया है।
32‘जब कोई विदेशी, जो तेरे निज लोग इस्राएल जाति का नहीं है, तेरे महान नाम के कारण, तेरे सामर्थी हाथ और उद्धार के हेतु फैली हुई भुजाओं के कारण दूर देश से आएगा और इस भवन की ओर मुख कर प्रार्थना करेगा 33तब तू अपने निवास-स्थान, स्वर्ग से उसकी प्रार्थना सुनना। जिस कार्य के लिए विदेशी तुझे पुकारेगा, तू उस कार्य को करना। अत: तेरे निज लोग इस्राएलियों के समान पृथ्वी के सब लोग भी तेरे नाम को जानेंगे, और तेरी भक्ति करेंगे। उनको ज्ञात होगा कि यह भवन, जो मैंने निर्मित किया है, तेरे नाम को समर्पित है।
34‘जब तेरे निज लोग अपने शत्रु से युद्ध करने के लिए नगर से बाहर निकलेंगे और उस मार्ग पर जाएंगे, जिस पर तू उन्हें भेजेगा, तब यदि वे उस नगर की ओर, जिसको तूने चुना है, और उस भवन की ओर मुख कर, जो मैंने तेरे नाम की महिमा के लिए निर्मित किया है, तुझसे प्रार्थना करेंगे 35तो तू स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और विनती को सुनना, और उनको विजय प्रदान करना।
36‘जब वे तेरे विरुद्ध पाप करेंगे (ऐसा कौन मनुष्य है जिसने कभी पाप नहीं किया?) और तू उनसे क्रुद्ध होगा, उन्हें शत्रुओं के हाथ में सौंप देगा कि वे उन्हें बन्दी बनाकर दूर अथवा समीप के, अपने देश में ले जाएं 37तब यदि वे बन्दी देश में होश में आएंगे, पश्चात्ताप करेंगे, और अपने निष्कासन के देश में तुझसे विनती करेंगे, और यह कहेंगे, “हमने पाप किया, हमने अधर्म और दुष्कर्म किया,” 38यदि वे अपने निष्कासन के देश में, जहां शत्रु उन्हें बन्दी बनाकर ले गए थे, सम्पूर्ण हृदय और सम्पूर्ण प्राण से पश्चात्ताप करेंगे, और इस देश की ओर जो तूने उनके पूर्वजों को दिया है, इस नगर की ओर, जिसको तूने चुना है, और इस भवन की ओर, जो मैंने तेरे नाम की महिमा के लिए निर्मित किया है, मुख करके प्रार्थना करेंगे, 39तो तू अपने निवास-स्थान, स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और विनती को सुनना और उनका न्याय करना। तू उनके पापों को जो उन्होंने तेरे विरुद्ध किए थे, क्षमा करना। 40अब हे मेरे परमेश्वर, जो प्रार्थना तेरे इस भवन में की जाए, उसकी ओर तेरी आंखें सदा खुली रहें, तू उसकी ओर कान देना।
41‘अब, हे मेरे परमेश्वर, उठ!
तू और तेरे सामर्थ्य की मंजूषा
अपने विश्राम-स्थान को जाएं।
तेरे पुरोहित धार्मिकता से विभूषित हों,
तेरी भलाई के कारण
तेरे भक्त जय-जयकार करें।#भज 132:8-10
42हे मेरे परमेश्वर,
अपने अभिषिक्त राजा की प्रार्थना
अनसुनी मत कर;
अपने सेवक दाऊद के प्रति
अपनी करुणा को स्मरण कर।’
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