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जीतने वाली प्रवृति Sample

जीतने वाली प्रवृति

DAY 4 OF 8

जीतने वाली प्रवृति 4 - "धार्मिकता के लिए भूख और प्यास"

मत्ती 5:6 - "धन्य है वे जो धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे हैं क्योंकि वे सन्तुष्ट किये जाएंगे।" 

जिस प्रकार से किसी चीज़ की अभिलाषा करने के लिए भूख और प्यास का होना ज़रूरी है, यह उन लोगों को दिखाता है, "जिनकी गहरी लालसा आत्मिक आशीषों को पाने की होती है।"

जिस प्रकार से शारीरिक अभिलाषा आपातकालीन, दबाव बनाने वाली होती है और जिसे तुरन्त पूरा किया जाता है, वैसे ही हमारी आत्मिक लालसाएं भी होती हैं।

हम दाऊद (भजन 119:20) और याकूब (उत्पत्ती 49:18) को अपनी लालसाओं को व्यक्त करते हुए देखते है। लालसा क्या होती है? जब हम एक बार किसी स्वादिष्ट भोजन का स्वाद चखते हैं, तो हमारे मन में उसे फिर से खाने का मन करता है। अगर हम एक बार परमेश्वर, उसके वचनों, उसकी आत्मा और उपस्थिति तथा उसके जीवन का स्वाद चख लेते हैं तो हम उसके बिना जीवित नहीं रह सकते। हमारे जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती हैं जहां पर शारीरिक अभिलाषाएँ, आत्मिक बातों के क्षेत्र में लड़ाई लड़ती हैं। कई बार हम शारीरिक अभिलाषाओं में इस कदर डूब जाते हैं कि आत्मिकता छूट ही जाती है।

जैसे-जैसे संसार में नैतिक स्तर धीरे-धीरे लगातार घटता ही जा रहा है, वैसे-वैसे मसीहीयों की सीमाएं भी आगे खिसकती जा रही हैं। हम बहुत सी अन्य चीज़ों को अपने जीवन में यह सोचकर आने से रोक रहे हैं कि वे हम पर कब्ज़ा नहीं कर सकती है, हमें अपने ऊपर पूरा नियन्त्रण है। उसके बाद, जब हम दाऊद के समान,पाप करने के बाद पछताते हैं, और जब प्रभु यीशु मसीह की गरमाहट से भरी ज्योतिर्मय उपस्थिति गायब हो जाती है, तो हमारे मन में उसे फिर से प्राप्त करने की लालसा उठती है। हम उस प्रेरणा, अगुवाई,  मार्गदर्शन और प्रेम की अभिलाषा करने लगते हैं जिसका हम ने मुफ्त आनन्द उठाया था। हम उसे फिर कभी खोना नहीं चाहते, और दाऊद के समान दुहाई देने लगते हैं "अपनी पवित्र आत्मा को मुझ से न ले।" हम परमेश्वर के पास जाते हैं और उन बातों से मन फिरा लेते हैं जो हमें मोह कर अपने जाल में फंसा लिया था।

पौराणिक यहूदी मत में, धार्मिकता का अर्थ "निर्दोष ठहराना, नज़रअन्दाज़ करना, और सही रिश्ते को फिर से बहाल करना है।" इसका अभिप्राय दिखावटी भक्ति से नहीं है जैसा कि यहूदी लोग दिखाते हैं वरन यह शुद्ध करने वाली धार्मिकता को दर्शाती है जो विश्वास के द्वारा केवल मसीह में ही मिलती है। दिखावटी भक्ति आत्मिक मिलन की राह में सबसे खतरनाक शत्रु है। यह परमेश्वर और अन्य लोगों के सामने पारदर्शिता को भंग कर देती है। यह दुष्टात्माओं के लिए एक खतरनाक शिकार भी होता है। एक खाली, और झाड़ा बुहारा घर दुष्टात्माओं के रहने के लिए सबसे उत्तम स्थान होता है। 

हमें एक चीज़ को पाने के लिए दूसरे को खोना पड़ता हैं। शारीरिक अभिलाषा या आत्मिक सन्तुष्टि? दिखावटी भक्ती या आत्मा का गहन शुद्धिकरण? यह एक स्पष्ट चुनाव है। परमेश्वर केवल खाली बर्तनों को ही भर सकते हैं। परमेश्वर उमड़ता हुआ भरकर संतृप्त कर देते है। सन्त ऑस्टिन ने कहा था ‘वे पूरी तरह से खाली थे, इसलिए उन्हें पूरी तरह भरा गया।’

क्या हम ने अपने आप को भौतिकवाद और लालसाओं से खाली किया है ताकि हमें मसीह की धार्मिकता से भरा जा सके? क्या हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि, जब हमारा बर्तन खाली हो जाता है तो, हम उसे अपने आप को परमेश्वर के वचनों और आत्मा से बार-बार भरें जिससे कि हम हमेशा सही मायनों में सन्तुष्ट रहें?


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खुशी क्या है? सफलता? भौतिक लाभ? एक संयोग? ये मात्र अनुभूतियां हैं। प्रायः खुशी के प्रति अनुभूति होते ही वह दूर चली जाती है। यीशु सच्ची व गहरी खुशी व आशीष को परिभाषित करते हैं। वह बताते हैं कि आशीष निराश नहीं वरन जीवन रूपान्तरित करती है। वह निराशाओं और संकट में प्रकाशित होती है। वह हमारी व हमारे करीबियों की आत्मा को हर समय व परिस्थिति में उभारती है।

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