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मन की युद्धभूमिSample

मन की युद्धभूमि

DAY 1 OF 100

निमंत्रण

मान लीजिए कि हमें कुरियर से एक पार्सल प्राप्त होता है। उसे खोलने पर हमें एक बहुत बड़े आकार का सुंदर सा लिफाफा दिखाई पड़ता है जिसमें बड़े ही सुंदर अक्षरों में हमारा नाम लिखा हुआ है। उसके भीतर एक निमंत्रण पत्र है जो इन पंक्तियों के साथ प्रारम्भ होता हैः

आपको कंगाली, चिंता और उलझन से भरी एक जिंदगी का आनंद उठाने को आमंत्रित किया जाता है।

हम में से कौन इस अनैतिक निमंत्रण को स्वीकार करेगा? क्या हम ऐसे जीवन को नहीं चाहते जो हर प्रकार के दर्द और विनाश से मुक्त हो? फिर भी हम में से बहुत लोग ऐसे जीवन का चुनाव करते हैं। हम स्पष्ट पूर्वक चुनाव नहीं, परंतु कभी कभी—कुछ समय के लिए—हम शैतान के निमंत्रण को मान लेते हैं। उसका आक्रमण लगातार चलनेवाला और कठोर है — शैतान डटे रहनेवाला है! हमारा शत्रु अपने प्रत्येक हथियार के साथ हमारे जीवन के हर दिन हमारे मन पर गोलीबारी करता रहता है।

हम एक संग्राम में हैं — एक संग्राम जो निरंतर चल रहा है और कभी न खत्म होनेवाला है। हम परमेश्वर के सारे हथियार बांधकर शैतान को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं, और परमेश्वर के वचन पर स्थिर रह सकते हैं, परंतु संग्राम को पूर्ण रूप से समाप्त नहीं कर सकते। जब तक हम जीवित हैं, हमारा मन शैतान की युद्धभूमि बना रहता है। हमारी बहुत सी समस्याओं की जड़ हमारे सोचने के तरीके में है जो हमारे द्वारा अनुभव किए जानेवाली समस्याओं को उत्पन्न करती हैं। यही पर शैतान विजयी होता है — वह हम सबको गलत विचार देता है। यह हमारी पीढ़ी के लिए आविष्कृत नयी चाल नहीं हैय उसने अदन के बाग में ही अपनी इस धोखेबाजी को आरंभ कर दिया था। साँप ने स्त्री से पूछा, ‘‘क्या यह सच है कि परमेश्वर ने कहा है, तुम इस वाटिका के किसी भी वृक्ष के फल को नहीं खा सकते?‘‘ (उत्पत्ति 3ः1)। मानवीय मन पर यह पहला आक्रमण था। हव्वा परीक्षा करनेवाले को फटकार सकती थी परंतु उसने उससे कहा कि परमेश्वर ने एक विशेष वृक्ष को छोड़कर सभी वृक्षों के फल खाने को कहा है। वे उस वृक्ष को छू भी नहीं सकते थे क्योंकि यदि वे ऐसा करेंगे तो मर जाएँगे।

परंतु साँप ने स्त्री से कहा, तुम निश्चय न मरोगे, वरन्‌ परमेश्वर स्वयं जानता है कि जिस दिन तुम इस वृक्ष के फल खाओगे उस दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएगी और तुम भले बुरे और ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे। (पद 4,5)

यह पहला आक्रमण था और इसके परिणामस्वरूप शैतान ने प्रथम विजय हासिल की। हमारी चुक यह होती है कि हम यह अक्सर भूल जाते हैं कि मोहजाल और शत्रु द्वारा हमारे विरूद्ध किया गया युद्ध बड़ा छलयुक्त होता है। मान लें कि उसने स्त्री से कहा होता, ‘‘फल खाओ और तुम संसार में दुर्दशा, क्रोध, घृणा, रक्तपात, गरीबी, और अन्याय लाओगे।“

हव्वा पीछे हटकर वहाँ से भाग गई होती। उसने उसके साथ चाल चली और उससे आकर्षित करनेवाली झूठी बातें कहीं।

शैतान ने वादा किया, ‘‘तुम परमेश्वर के समान हो जाओगे। तुम भले और बुरे का ज्ञान पाओगे।“ कैसी स्त्री—लुभावन बातें। वह हव्वा को कुछ बुरा करने के लिये आकर्षित नहीं कर रहा था — या फिर कम से कम उसने ऐसी लुभावनी भाषा में बात की जो सुनने में अच्छी लग रही थी।

शैतानी प्रलोभन या पाप के प्रति आकर्षण हमेशा ऐसा ही होता है। प्रलोभन बुरा करने या नुकसान पहुँचाने या अन्याय करने के लिए नहीं होती। प्रलोभन यह होता है कि हमें कुछ प्राप्त हो।

शैतान के प्रलोभन ने स्त्री पर असर किया। ‘‘अतः जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने के लिए अच्छा, (अनुकूल, रमणीय) और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिए चाहनेयोग्य भी हैय तब उसने उसमें से तोड़कर खाया और अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया‘‘ (3ः6)।

मन के प्रथम संग्राम में हव्वा पराजित हो गई, और तब से हम लड़ रहें हैं। परंतु इसलिए कि हमारे जीवन में पवित्रआत्मा का सामर्थ है, हम विजयी हो सकते हैं — और हम लगातार विजयी हो सकते हैं।

विजयी परमेश्वर, शैतान के आक्रमणों का प्रतिरोध करने में मेरी सहायता कीजिए, जो मेरे मन पर आक्रमण करता है और बुरे को भला बनाकर दिखता है। यीशु मसीह के नाम में प्रार्थना ग्रहण करें। आमीन।


Day 2

About this Plan

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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