“झूठी बरंम्बाणीं कर्णो वाल़े, ऋषी शे सकने-चौक्क्ष रूऐ, जुण्जे भेंढ़ो के भेष दे तुँओं कैई आँव, परह् से भित्रो शे भूखे भेड़िऐ हों, जू बख्तो गाशी ऊपाड़ियों खाँव। तिनके फल़ शे तुँऐं तिनू पछ़याँणी पाँदें। कियो लोग झालो-झाडी शे अंगूरोह्, अरह् कुँईंथों शे तेर्मोल़ो च़ूड़ी सको?