पय तूँ पंचे अपने दुसमनन से प्रेम करा; अउर भलाई करा, अउर दुबारा न पामँइ के आसा रखिके, उधार द्या, तब तोंहईं स्वरग माहीं बड़ा प्रतिफल मिली, अउर तूँ परमप्रधान परमातिमा के सन्तान ठहरिहा, काहेकि परमातिमा उनहूँ के ऊपर जउन धन्यबाद नहीं करँइ, अउर बुरे मनइन के उपरव किरपा करत हें।