नियन्त्रण पानानमूना
नियन्त्रण पाना
पता नहीं कैसे कुछ लोग इतने सहनशील होते हैं जबकि दूसरे लोग तो केवल इसलिए एक भीड़ का हिस्सा नहीं हो सकते या बाजार की भीड़ भाड़ से दूर रहते हैं क्योंकि लोग उसने पास आकर दातून कर रहे थे?मैं विश्वास करता हूं कि सहनशक्ति की यह शिक्षा बचपन से ही ली जाती है। बचपन से लेकर बहुत से सालों में हम बहुत सी गलत शिक्षा को इकट्ठा करते हैं जो बाद मे हमारे स्वभाव का एक भाग बन जाता है। यदि आपको लगता है कि कोई सड़ी हुई चीज आपकी आत्मा में छुप कर बैठी है,तो उसे जल्द से जल्द अपने पास से दूर कर दें। बदबू दार चीज़ से लबालब भरे होने से खाली और शुद्ध होना बेहतर है। यीशु की वंशावली ग्रहण करने का आश्चर्यजनक उदाहरण है। इसमें,राजा,अगुवे,याजक एक वैश्या राहाब के साथ साथ कदमताल करते हुए नज़र आते हैं जो जीवते परमेश्वर की ओर फिरी और बच गयी। कोई भी जन अपने खानदान की वंशावली में राहाब को छुपाने या उसके परिचय से बचने का प्रयास करेगा लेकिन यीशु ने ऐसा नहीं किया। उसके नाम का जिक्र जानते बूझते इसलिए किया गया ताकि दुनिया को पता चल सके की यीशु का राज्य किसी खास वर्ग के लोगों के लिए नहीं वरन सभी लोगों के लिए खुला है। उसकी मौखिक परीक्षा और बाद में उसके क्रूसीकरण के दौरान,यीशु पर झूठे आरोप लगने पर भी वह शान्त था,उसके बदन से चमड़ा उतर जाने तक उसे कोड़ों से मारा गया,उसके सिर पर वह खतरनाक कांटों का ताज़ पहिनाया गया। वह अपने सताने वालों को आसानी से बिजली की चमक से बेहोश कर सकता था,या अपनी आत्म-धार्मिकता को सबके सामने प्रगट कर सकता था,वह चाहता तो अरब के मुरूस्थल में ठट्ठा करने वाले याजकों100किमी के दायरे में भी ढूंढ़े से एक कुआँ नहीं मिलता। मत्ती26:53में,यीशु कहते हैं,कि अगर वह चाहे तो हज़ारों की संख्या में स्वर्गदूतों को उसकी मदद करने के लिए बुला सकते हैं,लेकिन उसने इन सारे कष्टों को इस कारण सह लिया क्योंकि वह एक मकसद को पूरा करने के लिए आया था,और गुस्सा परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध काम करता है। जब उस महिला ने यीशु के सिर पर इत्र छिड़का,लोगों ने उसके बाहरी रूप को देखकर उस पर टिप्पणियां करना प्रारम्भ कर दिया और उसके उस घमण्ड से भरे काम की निंदा की,लेकिन यीशु ने उसकी आत्मा में झांककर देखा,उसने उसकी आंसू भरी आंखों में सच्चे पश्चाताप और विश्वास को देखा और तुरन्त उसे क्षमा और स्वीकार कर लिया। जब हमारे जीवन में इस प्रकार का प्रेम काम करता है,तब हम दूसरों की गलतियों और कमज़ोरियों को सह लेते हैं और दूसरों पर टिप्पणी करने या उन पर किसी प्रकार के निश्कर्ष तक पहुंचने में जल्दबाज़ी को नहीं करते। याकूब4:12एक कठिन प्रश्न पूछता हैः तू कौन है जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाता है?प्रभु यीशु लोगों के नजदीक आये और उन्होंने लोगों के साथ व्यक्तिगत रिश्ता बनाया। फिर भी,जब उसे विवाद व विरोध करने वाली भीड़ ने घेर लिया,तो उसने प्रतिकार नहीं किया। वह केवल उनके बीच में से निकल गया। वह उस विवादास्पद माहौल को छोड़कर चला गया,लेकिन उसने लोगों को कभी नहीं छोड़ा। बढ़ते हुए पारे का सामना सहनशीलता के साथ करें,और वर्तमान से परे भविष्य में झांक कर देखें। यदि यह यीशु के लिए महत्वपूर्ण था,तो यह निश्चय ही हमारे लिए भी महत्वपूर्ण होना चाहिए।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
जब हम दबाव में होते हैं तो हम किस प्रकार सामना करते हैं? क्या तब हम में से आत्मा के फल प्रगट होते हैं, या हमारे आम के पेड़ में से कड़वे फल निकलते हैं, और हमारे अंगूर की बेलों से खट्टे अंगूर पैदा होते हैं? जब पारा बढ़ता है तो तब क्या हमारा गुस्सा भी बढ़ जाता है?
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हम यह योजना प्रदान करने के लिए Rani Jonathan को धन्यवाद देना चाहते हैं। और अधिक जानकारी के लिए कृपया विजिट करें: http://ourupsdowns.blogspot.com/