स्टिंग, टेस्टिंग, टेस्टिंग: एक परिपक्वता की जांचनमूना
मैंने कल एक नया शब्द सुना: वयस्क होना।आपदाएं बताती हैं कि हम कितनी अच्छी तरह वयस्क हो रहे हैं।वे हमें आत्मिक वयस्कों में बदलने की प्रक्रिया में भी सहायता करती हैं, तब भी जब हम आत्मिक शिशु बने रहना पसंद करते हैं।मुझेपरिपक्व बनने के लिये परीक्षाओं से होकर गुजरने के अलावा कोई बेहतर तरीका नहीं पता।इसका मतलब यह नहीं कि हम परेशानियों की खोज करने लगें,जैसे पूर्वी गुरु जो पीड़ा के लाभों को बढ़ावा देते हैं।वे ठंड में नग्न शरीर पर मारते हैं, या अंगारों पर चलते हैं, या अपने शरीर में जड़े हुए कांटों से मंदिर के रथों को खींचते हैं।लेकिन मसीहीयतसंकट की खोज को प्रोत्साहित नहीं करती। वास्तव में, हम अपने प्रयासों से शुद्धिकरण प्राप्त नहीं कर सकते हैं। लेकिन, हम तब शुद्ध होते हैं जब हम उद्धार के उपहार को स्वीकार करते हैं।यहशुद्धिकरण अच्छे कार्यों से नहीं, बल्कि प्रभु यीशु के द्वारा, उनकेबलिदन के द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसलिए हमें जबरजस्तीपरिपक्वताके लिए परेशानी की ओर नहीं भागना चाहिए।
लेकिन हम मुसीबतों से भागतेभी नहीं हैं।हमें वास्तविक रूप से परेशानियों का सामना करना होगा। वे एक पतित मानव जाति और एक टूटी हुई दुनिया की अपेक्षित विशेषताएं हैं।और केवल उनकी अनिवार्यता को स्वीकार करने के अलावा, हमें मुसीबतों के प्रति अपने दृष्टिकोण, उनके प्रति हमारी प्रतिक्रियाओं और उनमें हमारे कार्यों की भी जांच करने की आवश्यकता है।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
तीन-भागों की श्रृंखला के अंतिम भाग में, RREACH के अध्यक्ष और डालास थियोलोजिकल सेमिनरी के आचार्य डॉ रमेश रिचर्ड,हमें न केवल यह बताते हैं कि विपत्ति और व्यवधान एक विश्वासी को "सुरक्षा जांच” (भाग १) प्रदान करते हैं वरन वह उन्हें अतिरिक्त “परिपक्वता की जाँच” भी प्रदान करते हैं। अंततः त्रिएक मसीही विश्वास की छाया और सशक्तिकरण के तहत हमें अपना जीवन जीने की स्वतंत्रता है।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए रमेश रिचर्ड इवेंजेलिज़्म और चर्च हेल्थ को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://rreach.org/