परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 2: न्यायियों)नमूना

परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 2: न्यायियों)

दिन 1 का 4

विश्राम स्थान

यहोशू की पुस्तक

किसी पीढ़ी द्वारा एक लम्बी यात्रा “प्रतिज्ञा के देश” को जीतने के साथ समाप्त करने से शानदार और क्या हो सकता है? यहोशू,जिसके नाम का अर्थ भी वही था जो यीशु के नाम का था,अर्थात “परमेश्वर उद्धार है” । उसे यीशु अर्थात “परमेश्वर की सेना के प्रधान” के साथ इस्राएलियों की अगुवाई करने का अवसर मिला था, जो वास्तव में सच्चा अगुवा था।

यह तस्वीर सही मायनों में हमारी लड़ाईयों को जीतते हुए, मसीह द्वारा अगुवाई प्राप्त अनन्ता की ओर हमारी वर्तमान यात्रा को प्रदर्शित करती है। परमेश्वर द्वारा यहोशू 1:5 में की गयी प्रतिज्ञा “मैं तुझे धोखा न दूंगा और न तुझको छोडू़ंगा” तथा इसके साथ साथ यहोशू 1:13 में की गयी प्रतिज्ञा ‘तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें विश्राम देता है, और वही तुम्हें देश देगा’ वह आज भी कायम है।

यह अगुवाई, राहाब और इस्राएलियों के विश्वास के साथ मिलकर,एक जीतने वाली युक्ति तैयार करती है। “विश्राम” पाने के लिएः

·व्यवस्था के द्वारा स्पष्ट दिशा निर्देश (यहोशू 1:8),परमेश्वर की विरासत (यहोशू 4:21-24),और यहोवा की सेना का प्रधान दिया गया है (यहोशू 5:13,14)

·राहाब के हृदय में गहन निश्चय था,जिसके अनुसार उसने अपने राजा की तरफ न होकर इस्राएलियों का साथ दिया (यहोशू 2:3-11)। जब उसने सलमोन से विवाह करने का फैसला किया, जो बोआज का पिता था,तो उसे इस बात का बिल्कुल अन्दाज़ा नहीं था कि वह राजा दाऊद और यीशु जैसे लोगों की परदादी कहलाएगी।

हमारे पास अगुवाई करने के लिए परमेश्वर का वचन और परमेश्वर का पुत्र दोनों हैं,लेकिन क्या हम अपने निश्चय या विश्वास चलने के लिए अपनी प्राण का जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं? क्या हम अपने चुनाव को अपरिवर्तनीय बनाने के लिए पर मुहर लगाते हैं?

दूसरे नज़रिये से देखें तो,विश्राम के विपरीत,यहोशू और इस्राएलियों ने:

·यरीहो की शहरपनाह (यहोशू 6:20),यरदन की नदियों (यहोशू 3:15-16)और उस देश भर में अनेकों भयकंर लड़ाईयों को जीतते हुए आगे बढ़ रहे थे।

·उनकी दृष्टि में नगण्य समझे जाने वाले पापों की वजह से (यहोशू 7 और 9) उन्हें शताब्दियों के पश्चात हार का सामना करना पड़ा।

आकान द्वारा अर्पण की हुई वस्तुओं में से कुछ छुपाने लेने की छोटी सी भूल (अध्याय 7) का भुगतान उसे अपने प्राण देकर करना पड़ा।

गिबोनियों द्वारा किया जाने वाला छल और इस्राएली प्रधानों द्वारा परमेश्वर ने सलाह लेने में विफलता (9:14-15)ने उन्हें एक चाल का शिकार बना दिया।

भले ही उन्होंने सारे देश को जीत लिया,फिर भी सारे शत्रुओं को नाश करने के द्वारा उन्होंने परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा का प्रमाण नहीं दिया। बाद में गिबोनियों ने उन्हें फंसाकर उनसे एक अटूट वाचा बंधवा ली।

चाहें हम ने परमेश्वर के लिए कितनी भी लड़ाईयां जीत ली हो,लेकिन एक छोटी सी भूल भी शैतान के कदम रखने और हमें व हमारे परिवारों को नाश करने के लिए काफी होती है। अतिशय सहिष्णु संसार में,क्या हमने हर चीज़ के लिए,यह जानने के लिए कि रिश्तों में कहां रेखा खींची जाए,मसीह के लिए विकट विजयों को प्राप्त करने तथा सच्चा विश्राम पाने के लिए परमेश्वर से सलाह लेने को अपनी आदत बनाया है?इब्रानियों 4 हमें यह स्मरण दिलाता है कि परमेश्वर की इच्छा है कि हम “आज” सच्चा विश्राम प्राप्त करें।

पवित्र शास्त्र

दिन 2

इस योजना के बारें में

परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 2: न्यायियों)

इस्राएलियों को परमेश्वर द्वारा सीधे अगुवाई पाने का अनोखा सौभाग्य प्राप्त था जिसने बाद में मूसा द्वारा कार्यप्रणाली को तैयार किया। परमेश्वर ने अगुवाई करने के लिए न्यायियों को खड़ा किया। उन्हें केवल परमेश्वर की आज्ञाओं का़ पालन करने तथा उसकी आराधना करने की ज़रूरत थी।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए बेला पिल्लई को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://www.bibletransforms.com/