जीतने वाली प्रवृति नमूना
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जीतने वाली प्रवृति 1 – दीन जन
लोग दो प्रकार के होते हैं। धन्य लोग और दुःखी लोग। इसका वर्णन लूका 6:24-26 में किया गया है। दुःखी लोग वे जन हैं जो मानवीय सफलता और विलासता इत्यादि पर भरोसा करते हैं। जीतने वाली प्रवृति धन्य लोगों की विशेषताओं का वर्णन करती है, अर्थात जिन मसीही विश्वासियों की प्राथमिकता मसीह को प्रसन्न करना होती है। पौलुस के शब्दों में, वे लोग "नाश होने वालों के लिए मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पाने वाले लोगों के लिए परमेश्वर की सामर्थ्य है।" (1कुरिन्थियों 1:18)
यीशु धन्य होने के बारे में बात करते हैं, जिसका अर्थ पूरी तरह से आत्मिक भलाई और आत्मा में भरना होता है। लैटिन भाषा में इसे बीटस (धन्य), और ग्रीक में माकारियोस (खुशी) कहते हैं।
मत्ती 5:3 धन्य वे जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
"दीन" या ग्रीक भाषा में प्टोकौस जिसका अर्थ "निस्सहाय","भिखारी के समान" "मुहैय्या कराने वाले पर निर्भर" होता है, यह बाइबल में सबसे ज़्यादा गलत समझा जाने वाला शब्द है। यह उन लोगों को नहीं दर्शाता जिन्हें भौतिक वस्तुओं की कमी होती है या जो कमज़ोर आत्मा वाली प्रवृति के लोग होते हैं, अर्थात जो अपनी आवश्यकताओं को बताने और सहायता पाने के लिए तैयार रहते हैं। यह परमेश्वर के बिना हमारे आत्मिक खालीपन और जीवन के हर क्षेत्र में परमेश्वर पर निर्भरता को पहिचानने को दर्शाता है।
"दीन" जन वे लोग हैं जो पूरी तरह से परमेश्वर के लिए समर्पित हैं और जिन्होंने अपने जीवन को (अर्थात अपने पेशे और सेवा को) परमेश्वर के राज्य की बढ़ौत्तरी के लिए दे दिया है। वे केवल परमेश्वर के राज्य के सम्मानित नागरिक ही नहीं हैं वरन वह राज्य उनके जीवन में बसा है। वह पहले से उनका हो चुका है।
हेनरी वैलरी ने एक बार, अपने धनिष्ठ मित्र, डी.एल. मूडी से कहा, "अभी यह देखना बाकि है कि परमेश्वर उस व्यक्ति के द्वारा क्या करेंगे जिसने अपने आप को पूरी तरह से परमेश्वर के लिए समर्पित किया हो।" श्रीमान मूडी ने अपने आप से कहाः "मैं, वह व्यक्ति बनूंगा।" मूडी ने अपने सफल व्यवसाय को छोड़कर अपने आपको खाली किया ताकि परमेश्वर उसे भर सके। परमेश्वर सम्भवतः हर किसी से इस बात की अपेक्षा न करे कि वह अपनी सम्पत्ति बेचकर ईश्वरीय राह की प्रतीक्षा करे लेकिन वह यह जरूर चाहते हैं कि उसके चेले अपने वरदानों के लगाव से अलग हों और अच्छे भण्डारी बनें। जब हम उन आशीषों का आनन्द उठा रहे हों, उस समय में यदि परमेश्वर हम से उन आशीषों को त्यागने के लिए कहें तो हमें ऐसा करने के लिए तैयार रहना चाहिए। एक "लिटमस" का अच्छा परीक्षण यह जांच करने के लिए होता है कि किस चीज से वास्तव में जोश उत्पन्न होता है और किससे हमें दिक्कत होती है। वे परमेश्वर के राज्य के मामले हैं या सांसारिक। केवल पवित्र आत्मा ही हमें स्वर्गीय बातों का स्वाद प्रदान कर सकता है।
क्या हमारा जुनून और इच्छा परमेश्वर के राज्य को सुन्दर बनाने की है? क्या हम वास्तव में अपने आप को खाली कर सकते हैं, परमेश्वर के हाथों में अपने आनन्द और इच्छाओं को सौंप सकते हैं, और परमेश्वर की आत्मा और उसकी उपस्थिति से भरे हुए जीवन का आनन्द मनाने में निवेश कर सकते हैं? क्या हम अपनी आत्मा की गहराई में खुशी का आनन्द मनाते हैं?
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
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खुशी क्या है? सफलता? भौतिक लाभ? एक संयोग? ये मात्र अनुभूतियां हैं। प्रायः खुशी के प्रति अनुभूति होते ही वह दूर चली जाती है। यीशु सच्ची व गहरी खुशी व आशीष को परिभाषित करते हैं। वह बताते हैं कि आशीष निराश नहीं वरन जीवन रूपान्तरित करती है। वह निराशाओं और संकट में प्रकाशित होती है। वह हमारी व हमारे करीबियों की आत्मा को हर समय व परिस्थिति में उभारती है।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए बेला पिल्लई को धन्यवाद देना चाहेंगे। ज्यादा जानकारी के लिये पधारें: http://www.bibletransforms.com