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दिन 3 का 3

दिन 3 - अन्यायी कौन है?

जैसा कि हमने कल चर्चा की थी, न्याय और धर्म जीने के एक मौलिक, निःस्वार्थ तरीके के बारे में हैं।

जैसा कि कहावतों की किताब में है, “न्यायपूर्ण धर्म लाना” क्या होता है?

 “उन लोगों के लिए अपना मुँह खोलो, जो खुद के लिए बोल नहीं सकते हैं।”

और जेरेमियाह जैसे पैगम्बरों के लिए इन शब्दों का क्या अर्थ है?

“गरीब को बचाओ और आप्रवासी, अनाथ और विधवा के खिलाफ जुल्म या हिंसा को सहन मत करो।”

और स्तोत्रों की किताब में देखो। “ईश्वर दबे हुए लोगों के लिए न्याय को मान्य रखते हैं, भूखों को भोजन देते हैं, और बंदी को मुक्त करते हैं, लेकिन दुष्टों की राह को रोकते हैं।” ओह। वह दुष्टों को रोकते हैं?

हिब्रू में, दुष्ट के लिए शब्द है राशा’, उसका अर्थ होता है “दोषी” या “ग़लत।” यह किसी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो दूसरे व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार करता है, और उनके ईश्वर की छवि के रूप में गौरव को अनदेखा करता है।

तो क्या न्याय और धर्म ईश्वर के लिए बड़ी बात है?

हाँ, अब्राहम का परिवार, इज़्रैली, ऐसे ही होने वाले थे। वह ईजिप्त में आप्रवासी ग़ुलाम बने, जिनके साथ अन्ययापूर्ण जुल्म किया जा रहा था, और इसलिए, ईश्वर ने ईजिप्त की बुराई का सामना किया और उन्हें राशा’, अन्य़ाय का अपराधी घोषित किया। और इसलिए, उन्होंने इज़्रैल को बचाया। लेकिन पूर्व विधान की कहानी की करुण विडंबना यह है कि इन मुक्त किए गए लोगों ने फिर कमज़ोर लोगों के खिलाफ वही अन्याय के कार्य किए, और इसलिए ईश्वर ने पैगम्बरों को भेजा, जिन्होंने इज़्रैल को दोषी करार दिया।

लेकिन वह अकेले नहीं थे, अन्याय हर जगह है।

कुछ लोग सक्रिय रूप से अन्याय करते हैं, दूसरे इन अन्यायपूर्ण सामाजिक ढाँचे जिन्हें वह बिना सोचे स्वीकार कर लेते हैं, उनसे लाभ और विशेषाधिकार पाते हैं, और दुःख की बात यह है, कि इतिहास ने दिखाया है कि जब दबे हुए लोगों को सत्ता मिलती है, तो अक्सर वह खुद जुल्म करने वाले बन जाते हैं।

इसलिए, हम सभी, सक्रिय रूप से या निष्क्रिय रूप से, बिना इरादे के भी, अन्याय में हिस्सा लेते हैं; हम सभी दोषी हैं।

और बाइबल की कहानी का यह आश्चर्यकारी संदेश है: मानव जाति की अन्याय की विरासत को ईश्वर का प्रतिभाव था हमें एक उपहार देना: ईसा मसीह का जीवन। उन्होंने धर्म और न्याय किया, और फिर भी उन्हें अपराधियों के लिए मरना पड़ा। लेकिन फिर जब वह पुनर्जीवित हुए, तो ईश्वर ने ईसा मसीह को पवित्र घोषित किया। और इसलिए, अब ईसा मसीह अपना जीवन दोषियों को प्रदान करते हैं, ताकि वह भी ईश्वर के सामने “पवित्र” बन सकें - इसलिए नहीं कि उन्होंने कुछ किया है, बल्कि ईसा मसीह ने उनके लिए जो किया है उसकी वजह से।

ईसा मसीह के शुरुआती शिष्यों ने ईश्वर से इस पवित्रता को ना केवल नयी स्थिति की रूप में अनुभव किया, बल्कि एक शक्ति के रूप में भी, जिसने उनका जीवन बदल दिया, और उन्हें आश्चर्यकारी नये तरीकों से कार्य करने को मजबूर कर दिया।

यदि ईश्वर ने किसी को “पवित्र” घोषित किया जब वह उसके लायक नहीं था, तो एकमात्र वाजिब प्रतिभाव है जा कर दूसरों के लिए पवित्रता और न्याय को खोजना। यह जीवन जीने का एक मौलिक तरीका है, और यह हमेशा सुविधाभरा या आसान नहीं होता है। यह हिम्मतपूर्वक दूसरों की समस्याओं को मेरी समस्या बनाना है।

ईसा मसीह ने जब अपने पड़ोसी को स्वयं की तरह प्रेम करने को कहा, तब उनका यह मतलब था। यह प्राचीन पैगम्बर मिकाह के शब्दों से एक आजीवन प्रतिबद्धता के बारे में है: “ईश्वर ने तुम मानवों को बताया है कि क्या अच्छा है और ईश्वर तुम से क्या चाहते हैं: वह है न्याय करना, दया पर प्रेम रखना और अपने ईश्वर के साथ नम्रतापूर्वक चलना।”

दिन 2

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आज की दुनिया में सभी को "न्याय" की ज़रूरत महसूस होती है और यह एक विवादास्पद विषय है। लेकिन वास्तव में न्याय क्या होता है, और इसकी परिभाषा करने का अधिकार किसको है? इस 3-दिन वाले प्लान में हम बाइबल के विषय न्याय के बारे में विस्तार से खोज करेंगे और जानेंगे कि यह किस तरह से ईसा मसीह तक ले जाने वाली बाइबिल की कहानी में गहराई से मिला हुआ है।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए BibleProject को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://bibleproject.com