रोमियों 4:1-25
रोमियों 4:1-25 पवित्र बाइबल (HERV)
तो फिर हम क्या कहें कि हमारे शारीरिक पिता इब्राहीम को इसमें क्या मिला? क्योंकि यदि इब्राहीम को उसके कामों के कारण धर्मी ठहराया जाता है तो उसके गर्व करने की बात थी। किन्तु परमेश्वर के सामने वह वास्तव में गर्व नहीं कर सकता। पवित्र शास्त्र क्या कहता है? “इब्राहीम ने परमेश्वर में विश्वास किया और वह विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया।” काम करने वाले को मज़दूरी देना कोई दान नहीं है, वह तो उसका अधिकार है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति काम करने की बजाय उस परमेश्वर में विश्वास करता है, जो पापी को भी छोड़ देता है, तो उसका विश्वास ही उसके धार्मिकता का कारण बन जाता है। ऐसे ही दाऊद भी उसे धन्य मानता है जिसे कामों के आधार के बिना ही परमेश्वर धर्मी मानता है। वह जब कहता है: “धन्य हैं वे जिनके व्यवस्था रहित कामों को क्षमा मिली और जिनके पापों को ढक दिया गया! धन्य है वह पुरुष जिसके पापों को परमेश्वर ने गिना नहीं हैं!” तब क्या यह धन्यपन केवल उन्हीं के लिये है जिनका ख़तना हुआ है, या उनके लिए भी जिनका ख़तना नहीं हुआ। (हाँ, यह उन पर भी लागू होता है जिनका ख़तना नहीं हुआ) क्योंकि हमने कहा है इब्राहीम का विश्वास ही उसके लिये धार्मिकता गिना गया। तो यह कब गिना गया? जब उसका ख़तना हो चुका था या जब वह बिना ख़तने का था। नहीं ख़तना होने के बाद नहीं बल्कि ख़तना होने की स्थिति से पहले। और फिर एक चिन्ह के रूप में उसने ख़तना ग्रहण किया। जो उस विश्वास के परिणामस्वरूप धार्मिकता की एक छाप थी जो उसने उस समय दर्शाया था जब उसका ख़तना नहीं हुआ था। इसलिए वह उन सभी का पिता है जो यद्यपि बिना ख़तने के हैं किन्तु विश्वासी है। (इसलिए वे भी धर्मी गिने जाएँगे) और वह उनका भी पिता है जिनका ख़तना हुआ है किन्तु जो हमारे पूर्वज इब्राहीम के विश्वास का जिसे उसने ख़तना होने से पहले प्रकट किया था, अनुसरण करते है। इब्राहीम या उसके वंशजों को यह वचन कि वे संसार के उत्तराधिकारी होंगे, व्यवस्था से नहीं मिला था बल्कि उस धार्मिकता से मिला था जो विश्वास के द्वारा उत्पन्न होती है। यदि जो व्यवस्था को मानते है, वे जगत के उत्तराधिकारी हैं तो विश्वास का कोई अर्थ नहीं रहता और वचन भी बेकार हो जाता है। लोगों द्वारा व्यवस्था का पालन नहीं किये जाने से परमेश्वर का क्रोध उपजता है किन्तु जहाँ व्यवस्था ही नहीं है वहाँ व्यवस्था का तोड़ना ही क्या? इसलिए सिद्ध है कि परमेश्वर का वचन विश्वास का फल है और यह सेंतमेत में ही मिलता है। इस प्रकार उसका वचन इब्राहीम के सभी वंशजों के लिए सुनिश्चित है, न केवल उनके लिये जो व्यवस्था को मानते हैं बल्कि उन सब के लिये भी जो इब्राहीम के समान विश्वास रखते है। वह हम सब का पिता है। शास्त्र बताता है, “मैंने तुझे (इब्राहीम) अनेक राष्ट्रों का पिता बनाया।” उस परमेश्वर की दृष्टि में वह इब्राहीम हमारा पिता है जिस पर उसका विश्वास है। परमेश्वर जो मरे हुए को जीवन देता है और जो नहीं है, जो अस्तित्व देता है। सभी मानवीय आशाओं के विरुद्ध अपने मन में आशा सँजोये हुए इब्राहीम ने उसमें विश्वास किया, इसलिए वह कहे गये के अनुसार अनेक राष्ट्रों का पिता बना। “तेरे अनगिनत वंशज होंगे।” अपने विश्वास को बिना डगमगाये और यह जानते हुए भी कि उसकी देह सौ साल की बूड़ी मरियल हो चुकी है और सारा बाँझ है, परमेश्वर के वचन में विश्वास बनाये रखा। इतना ही नहीं, विश्वास को और मज़बूत करते हुए परमेश्वर को महिमा दी। उसे पूरा भरोसा था कि परमेश्वर ने उसे जो वचन दिया है, उसे पूरा करने में वह पूरी तरह समर्थ है। इसलिए, “यह विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया।” शास्त्र का यह वचन कि विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया, न केवल उसके लिये है, बल्कि हमारे लिये भी है। परमेश्वर हमें, जो उसमें विश्वास रखते हैं, धार्मिकता स्वीकार करेगा। उसने हमारे प्रभु यीशु को फिर से जीवित किया। यीशु जिसे हमारे पापों के लिए मारे जाने को सौंपा गया और हमें धर्मी बनाने के लिए मरे हुओं में से पूनःजीवित किया गया।
रोमियों 4:1-25 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)
अब हम अपने कुलपति अब्राहम के विषय में क्या कहें? क्या उन्हें शरीर की दृष्टि से कुछ प्राप्त हुआ अथवा अनुग्रह से? यदि अब्राहम अपने कर्मों के कारण धार्मिक ठहराए गये, तो वह अपने पर गर्व कर सकते हैं। किन्तु वह परमेश्वर के सामने ऐसा नहीं कर सकते; क्योंकि धर्मग्रन्थ क्या कहता है?—“अब्राहम ने परमेश्वर में विश्वास किया और यह उनके लिए धार्मिकता माना गया।” जो कर्म करता है, उसे मजदूरी अनुग्रह के रूप में नहीं, बल्कि अधिकार के रूप में मिलती है। जो कर्म नहीं करता, किन्तु उस में विश्वास करता है, जो अधर्मी को धार्मिक बनाता है तो उसका यह विश्वास धार्मिकता माना जाता है। इसी तरह दाऊद उस मनुष्य को धन्य कहते हैं, जिसे परमेश्वर कर्मों के अभाव में भी धार्मिक मानता है : “धन्य हैं वे, जिनके अपराध क्षमा हुए हैं, जिनके पाप ढक दिये गये हैं! धन्य है वह मनुष्य, जिसके पाप का लेखा प्रभु नहीं रखता!” क्या यह धन्यता खतने वाले यहूदियों से ही सम्बन्ध रखती है, या गैर-यहूदी लोगों से भी? देखिए, हम कहते हैं : “अब्राहम का विश्वास उनके लिए धार्मिकता माना गया है।” उनका विश्वास कैसे धार्मिकता माना गया है? क्या उस समय तक उनका खतना हुआ था या नहीं? उस समय तक उनका खतना नहीं हुआ था, वह बेखतने ही थे। बेखतने रहते समय उन को विश्वास द्वारा जो धार्मिकता प्राप्त हुई थी, उस पर मुहर की तरह खतने का चिह्न लगाया गया। इस प्रकार वह उन सब के भी पिता बने, जो खतना कराये बिना विश्वास करते हैं, जिससे उनका भी विश्वास उनके लिए धार्मिकता माना जाये। अब्राहम उन खतने वालों के भी पिता बने, जो न केवल खतने पर निर्भर रहते हैं, बल्कि हमारे पिता अब्राहम के उस विश्वास के पथ पर चलते हैं, जो उन्हें खतने से पहले प्राप्त था। परमेश्वर ने अब्राहम और उनके वंश से प्रतिज्ञा की कि वे पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे। यह इसलिए नहीं हुआ कि अब्राहम ने व्यवस्था का पालन किया, बल्कि इसलिए कि उन्होंने विश्वास किया और परमेश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है। यदि व्यवस्था के अधीन रहने वाले ही उत्तराधिकारी बनते हैं, तो विश्वास व्यर्थ है और प्रतिज्ञा रद्द हो जाती है; क्योंकि व्यवस्था का परिणाम परमेश्वर का प्रकोप है, जब कि व्यवस्था के अभाव में किसी आज्ञा का उल्लंघन नहीं होता। सब कुछ विश्वास पर, और इसलिए अनुग्रह पर ही निर्भर रहता है। वह प्रतिज्ञा न केवल उन लोगों पर, जो व्यवस्था का पालन करते हैं, बल्कि समस्त वंश पर लागू होती है—उन सब पर, जो अब्राहम की तरह विश्वास करते हैं। अब्राहम हम सब के पिता हैं जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है : “मैंने तुम को बहुत-सी जातियों का पिता नियुक्त किया है।” परमेश्वर की दृष्टि में अब्राहम हमारे पिता हैं। उन्होंने उस परमेश्वर में विश्वास किया, जो मृतकों को पुनर्जीवित करता है और उन वस्तुओं को भी अस्तित्व में लाता है जिनका अस्तित्व नहीं है। अब्राहम ने निराशाजनक परिस्थिति में भी आशा रख कर विश्वास किया और वह बहुत जातियों के पिता बन गये, जैसा कि उन से कहा गया था, “तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे।” यद्यपि वह जानते थे कि उनका शरीर अशक्त हो गया है—उनकी अवस्था लगभग एक सौ वर्ष की थी—और उनकी पत्नी सारा बाँझ है, तो भी उनका विश्वास विचलित नहीं हुआ; उन्हें परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर सन्देह नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने अपने विश्वास की दृढ़ता द्वारा परमेश्वर का सम्मान किया। उन्हें पक्का निश्चय था कि परमेश्वर ने जिस बात की प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में समर्थ है। इस विश्वास के कारण “परमेश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है।” धर्मग्रन्थ का यह कथन न केवल अब्राहम से, बल्कि हम से भी सम्बन्ध रखता है। यदि हम परमेश्वर में विश्वास करेंगे, जिसने हमारे प्रभु येशु को मृतकों में से जिलाया, तो हम भी विश्वास के कारण धार्मिक माने जायेंगे। वही येशु हमारे अपराधों के कारण पकड़वाये गये और हमें धार्मिक ठहराने के लिए जी उठे।
रोमियों 4:1-25 Hindi Holy Bible (HHBD)
सो हम क्या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता इब्राहीम को क्या प्राप्त हुआ? क्योंकि यदि इब्राहीम कर्मों से धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्ड करने की जगह होती, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं। पवित्र शास्त्र क्या कहता है यह कि इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया। काम करने वाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु हक समझा जाता है। परन्तु जो काम नहीं करता वरन भक्तिहीन के धर्मी ठहराने वाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिना जाता है। जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाउद भी धन्य कहता है। कि धन्य वे हैं, जिन के अधर्म क्षमा हुए, और जिन के पाप ढांपे गए। धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए। तो यह धन्य कहना, क्या खतना वालों ही के लिये है, या खतना रहितों के लिये भी? हम यह कहते हैं, कि इब्राहीम के लिये उसका विश्वास धामिर्कता गिना गया। तो वह क्योंकर गिना गया खतने की दशा में या बिना खतने की दशा में? खतने की दशा में नहीं परन्तु बिना खतने की दशा में। और उस ने खतने का चिन्ह पाया, कि उस विश्वास की धामिर्कता पर छाप हो जाए, जो उस ने बिना खतने की दशा में रखा था: जिस से वह उन सब का पिता ठहरे, जो बिना खतने की दशा में विश्वास करते हैं, और कि वे भी धर्मी ठहरें। और उन खतना किए हुओं का पिता हो, जो न केवल खतना किए हुए हैं, परन्तु हमारे पिता इब्राहीम के उस विश्वास की लीक पर भी चलते हैं, जो उस ने बिन खतने की दशा में किया था। क्योंकि यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न इब्राहीम को, न उसके वंश को व्यवस्था के द्वारा दी गई थी, परन्तु विश्वास की धामिर्कता के द्वारा मिली। क्योंकि यदि व्यवस्था वाले वारिस हैं, तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी। व्यवस्था तो क्रोध उपजाती है और जहां व्यवस्था नहीं वहां उसका टालना भी नहीं। इसी कारण वह विश्वास के द्वारा मिलती है, कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि प्रतिज्ञा सब वंश के लिये दृढ़ हो, न कि केवल उसक लिये जो व्यवस्था वाला है, वरन उन के लिये भी जो इब्राहीम के समान विश्वास वाले हैं: वही तो हम सब का पिता है। जैसा लिखा है, कि मैं ने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है उस परमेश्वर के साम्हने जिस पर उस ने विश्वास किया और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उन का नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं। उस ने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिये कि उस वचन के अनुसार कि तेरा वंश ऐसा होगा वह बहुत सी जातियों का पिता हो। और वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ। और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की। और निश्चय जाना, कि जिस बात की उस ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्थी है। इस कारण, यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया। और यह वचन, कि विश्वास उसके लिये धामिर्कता गिया गया, न केवल उसी के लिये लिखा गया। वरन हमारे लिये भी जिन के लिये विश्वास धामिर्कता गिना जाएगा, अर्थात हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया॥
रोमियों 4:1-25 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
इसलिये हम क्या कहें हमारे शारीरिक पिता अब्राहम को क्या प्राप्त हुआ? क्योंकि यदि अब्राहम कामों से धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्ड करने की जगह होती, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं। पवित्रशास्त्र क्या कहता है? यह कि “अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।” काम करनेवाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु हक्क समझा जाता है। परन्तु जो काम नहीं करता वरन् भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना जाता है। जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाऊद भी धन्य कहता है : “धन्य हैं वे जिनके अधर्म क्षमा हुए, और जिनके पाप ढाँपे गए। धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।” तो यह धन्य वचन, क्या खतनावालों ही के लिये है या खतनारहितों के लिए भी? हम यह कहते हैं, “अब्राहम के लिये उसका विश्वास धार्मिकता गिना गया।” तो वह कैसे गिना गया? खतने की दशा में या बिना खतने की दशा में? खतने की दशा में नहीं परन्तु बिना खतने की दशा में। उसने खतने का चिह्न पाया कि उस विश्वास की धार्मिकता पर छाप हो जाए जो उसने बिना खतने की दशा में रखा था, जिससे वह उन सब का पिता ठहरे जो बिना खतने की दशा में विश्वास करते हैं ताकि वे भी धर्मी ठहरें; और उन खतना किए हुओं का पिता हो, जो न केवल खतना किए हुए हैं, परन्तु हमारे पिता अब्राहम के उस विश्वास की लीक पर भी चलते हैं जो उसने बिन खतने की दशा में किया था। क्योंकि यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न अब्राहम को न उसके वंश को व्यवस्था के द्वारा दी गई थी, परन्तु विश्वास की धार्मिकता के द्वारा मिली। क्योंकि यदि व्यवस्थावाले वारिस हैं, तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी। व्यवस्था तो क्रोध उपजाती है, और जहाँ व्यवस्था नहीं वहाँ उसका उल्लंघन भी नहीं। इसी कारण प्रतिज्ञा विश्वास पर आधारित है कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि वह उसके सब वंशजों के लिये दृढ़ हो, न कि केवल उसके लिये जो व्यवस्थावाला है वरन् उनके लिये भी जो अब्राहम के समान विश्वासवाले हैं; वही तो हम सब का पिता है, – जैसा लिखा है, “मैं ने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है” – उस परमेश्वर के सामने जिस पर उसने विश्वास किया, और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं उनका नाम ऐसा लेता है कि मानो वे हैं। उसने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिये कि उस वचन के अनुसार कि “तेरा वंश ऐसा होगा,” वह बहुत सी जातियों का पिता हो। वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ, और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की; और निश्चय जाना कि जिस बात की उसने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में भी समर्थ है। इस कारण यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया। और यह वचन, “विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया,” न केवल उसी के लिये लिखा गया, वरन् हमारे लिये भी जिनके लिए विश्वास धार्मिकता गिना जाएगा, अर्थात् हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया।
रोमियों 4:1-25 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)
तो हम क्या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता अब्राहम को क्या प्राप्त हुआ? क्योंकि यदि अब्राहम कामों से धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्ड करने का कारण होता है, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं। (उत्प. 15:6) पवित्रशास्त्र क्या कहता है? यह कि “अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।” काम करनेवाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु हक़ समझा जाता है। परन्तु जो काम नहीं करता वरन् भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना जाता है। जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाऊद भी धन्य कहता है: “धन्य वे हैं, जिनके अधर्म क्षमा हुए, और जिनके पाप ढांपे गए। धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।” (भज. 32:2) तो यह धन्य वचन, क्या खतनावालों ही के लिये है, या खतनारहितों के लिये भी? हम यह कहते हैं, “अब्राहम के लिये उसका विश्वास धार्मिकता गिना गया।” तो वह कैसे गिना गया? खतने की दशा में या बिना खतने की दशा में? खतने की दशा में नहीं परन्तु बिना खतने की दशा में। और उसने खतने का चिन्ह पाया, कि उस विश्वास की धार्मिकता पर छाप हो जाए, जो उसने बिना खतने की दशा में रखा था, जिससे वह उन सब का पिता ठहरे, जो बिना खतने की दशा में विश्वास करते हैं, ताकि वे भी धर्मी ठहरें; (उत्प. 17:11) और उन खतना किए हुओं का पिता हो, जो न केवल खतना किए हुए हैं, परन्तु हमारे पिता अब्राहम के उस विश्वास के पथ पर भी चलते हैं, जो उसने बिन खतने की दशा में किया था। क्योंकि यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न अब्राहम को, न उसके वंश को व्यवस्था के द्वारा दी गई थी, परन्तु विश्वास की धार्मिकता के द्वारा मिली। क्योंकि यदि व्यवस्थावाले वारिस हैं, तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी। व्यवस्था तो क्रोध उपजाती है और जहाँ व्यवस्था नहीं वहाँ उसका उल्लंघन भी नहीं। इसी कारण प्रतिज्ञा विश्वास पर आधारित है कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि वह सब वंश के लिये दृढ़ हो, न कि केवल उसके लिये जो व्यवस्थावाला है, वरन् उनके लिये भी जो अब्राहम के समान विश्वासवाले हैं वही तो हम सब का पिता है जैसा लिखा है, “मैंने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है” उस परमेश्वर के सामने जिस पर उसने विश्वास किया और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उनका नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं। (उत्प. 17:15) उसने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिए कि उस वचन के अनुसार कि “तेरा वंश ऐसा होगा,” वह बहुत सी जातियों का पिता हो। वह जो सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ, (इब्रा. 11:11) और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की, और निश्चय जाना कि जिस बात की उसने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में भी सामर्थी है। इस कारण, यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया। और यह वचन, “विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया,” न केवल उसी के लिये लिखा गया, वरन् हमारे लिये भी जिनके लिये विश्वास धार्मिकता गिना जाएगा, अर्थात् हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया। (यशा. 53:5, यशा. 53:12)
रोमियों 4:1-25 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)
हम अपने गोत्रपिता अब्राहाम के विषय में क्या कहें—क्या था इस विषय में उनका अनुभव? यदि कामों के द्वारा अब्राहाम को धार्मिकता प्राप्त हुई तो वह इसका घमंड अवश्य कर सकते थे, किंतु परमेश्वर के सामने नहीं. पवित्र शास्त्र का लेख क्या है? अब्राहाम ने परमेश्वर में विश्वास किया और इसी को उनकी धार्मिकता के रूप में मान्यता दी गई. मज़दूर की मज़दूरी उसका उपहार नहीं, अधिकार है. वह व्यक्ति, जो व्यवस्था का पालन तो नहीं करता किंतु परमेश्वर में, जो अधर्मी को निर्दोष घोषित करते हैं, विश्वास करता है, इसी विश्वास के द्वारा धर्मी व्यक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त करता है. जैसे दावीद ने उस व्यक्ति की धन्यता का वर्णन किया है, जिसे परमेश्वर ने व्यवस्था का पालन न करने पर भी धर्मी घोषित किया: धन्य हैं वे, जिनके अपराध क्षमा कर दिए गए, जिनके पापों को ढांप दिया गया है. धन्य है वह व्यक्ति, जिसके पापों का हिसाब प्रभु कभी न लेंगे. क्या यह आशीषें मात्र ख़तना वालों तक ही सीमित है या इसमें ख़तना रहित भी शामिल हैं? हमारा मत यह है: अब्राहाम के विश्वास को उनकी धार्मिकता के रूप में मान्यता दी गई. उन्हें यह मान्यता किस अवस्था में दी गई थी? जब उनका ख़तना हुआ तब या जब वह ख़तना रहित ही थे? ख़तना की अवस्था में नहीं परंतु ख़तना रहित अवस्था में. उन्होंने ख़तना का चिह्न—विश्वास की धार्मिकता की मोहर—उस समय प्राप्त किया, जब वह ख़तना रहित ही थे इसका उद्देश्य था उन्हें उन सबके पिता-स्वरूप प्रतिष्ठित किया जाए, जो बिना ख़तना के विश्वास करेंगे, कि इस विश्वास को उनकी धार्मिकता के रूप में मान्यता प्राप्त हो; साथ ही अब्राहाम को उन ख़तना किए हुओं के पिता के रूप में प्रतिष्ठित किया जाए, जो ख़तना किए हुए ही नहीं परंतु जो हमारे पिता अब्राहाम के उस विश्वास का स्वभाव रखते हैं, जो उन्होंने अपने ख़तना के पहले ही दिखाया था. उस प्रतिज्ञा का आधार, जो अब्राहाम तथा उनके वंशजों से की गई थी कि अब्राहाम पृथ्वी के वारिस होंगे, व्यवस्था नहीं परंतु विश्वास की धार्मिकता थी. यदि व्यवस्था का पालन करने से उन्हें मीरास प्राप्त होती है तो विश्वास खोखला और प्रतिज्ञा बेअसर साबित हो गई है. व्यवस्था क्रोध का पिता है किंतु जहां व्यवस्था है ही नहीं, वहां व्यवस्था का उल्लंघन भी संभव नहीं! परिणामस्वरूप विश्वास ही उस प्रतिज्ञा का आधार है, कि परमेश्वर के अनुग्रह में अब्राहाम के सभी वंशजों को यह प्रतिज्ञा निश्चित रूप से प्राप्त हो सके—न केवल उन्हें, जो व्यवस्था के अधीन हैं परंतु उन्हें भी, जिनका विश्वास वैसा ही है, जैसा अब्राहाम का, जो हम सभी के गोत्रपिता हैं. जैसा कि पवित्र शास्त्र का लेख है: “मैंने तुम्हें अनेक राष्ट्रों का पिता ठहराया है.” हमारे गोत्रपिता अब्राहाम ने उन्हीं परमेश्वर में विश्वास किया, जो मरे हुओं को जीवन देते हैं तथा अस्तित्व में आने की आज्ञा उन्हें देते हैं, जो हैं ही नहीं. बिलकुल निराशा की स्थिति में भी अब्राहाम ने उनसे की गई इस प्रतिज्ञा के ठीक अनुरूप उस आशा में विश्वास किया: वह अनेकों राष्ट्रों के पिता होंगे, ऐसे ही होंगे तुम्हारे वंशज. अब्राहाम जानते थे कि उनका शरीर मरी हुए दशा में था क्योंकि उनकी आयु लगभग सौ वर्ष थी तथा साराह का गर्भ तो मृत था ही. फिर भी वह विश्वास में कमजोर नहीं हुए. उन्होंने परमेश्वर की प्रतिज्ञा के संबंध में अपने विश्वास में विचलित न होकर, स्वयं को उसमें मजबूत करते हुए परमेश्वर की महिमा की तथा पूरी तरह निश्चिंत रहे कि वह, जिन्होंने यह प्रतिज्ञा की है, उसे पूरा करने में भी सामर्थ्यी हैं. इसलिये अब्राहाम के लिए यही विश्वास की धार्मिकता मानी गई. उनके लिए धार्मिकता मानी गई, ये शब्द मात्र उन्हीं के विषय में नहीं हैं, परंतु इनका संबंध हमसे भी है, जिन्हें परमेश्वर की ओर से धार्मिकता की मान्यता प्राप्त होगी—हम, जिन्होंने विश्वास उनमें किया है—जिन्होंने हमारे प्रभु येशु मसीह को मरे हुओं से दोबारा जीवित किया, जो हमारे अपराधों के कारण मृत्यु दंड के लिए सौंपे गए तथा हमें धर्मी घोषित कराने के लिए दोबारा जीवित किए गए.