अब हम अपने कुलपति अब्राहम के विषय में क्या कहें? क्या उन्हें शरीर की दृष्टि से कुछ प्राप्त हुआ अथवा अनुग्रह से? यदि अब्राहम अपने कर्मों के कारण धार्मिक ठहराए गये, तो वह अपने पर गर्व कर सकते हैं। किन्तु वह परमेश्वर के सामने ऐसा नहीं कर सकते; क्योंकि धर्मग्रन्थ क्या कहता है?—“अब्राहम ने परमेश्वर में विश्वास किया और यह उनके लिए धार्मिकता माना गया।” जो कर्म करता है, उसे मजदूरी अनुग्रह के रूप में नहीं, बल्कि अधिकार के रूप में मिलती है। जो कर्म नहीं करता, किन्तु उस में विश्वास करता है, जो अधर्मी को धार्मिक बनाता है तो उसका यह विश्वास धार्मिकता माना जाता है। इसी तरह दाऊद उस मनुष्य को धन्य कहते हैं, जिसे परमेश्वर कर्मों के अभाव में भी धार्मिक मानता है :
“धन्य हैं वे, जिनके अपराध क्षमा हुए हैं,
जिनके पाप ढक दिये गये हैं!
धन्य है वह मनुष्य, जिसके पाप का लेखा प्रभु
नहीं रखता!”
क्या यह धन्यता खतने वाले यहूदियों से ही सम्बन्ध रखती है, या गैर-यहूदी लोगों से भी? देखिए, हम कहते हैं : “अब्राहम का विश्वास उनके लिए धार्मिकता माना गया है।” उनका विश्वास कैसे धार्मिकता माना गया है? क्या उस समय तक उनका खतना हुआ था या नहीं? उस समय तक उनका खतना नहीं हुआ था, वह बेखतने ही थे। बेखतने रहते समय उन को विश्वास द्वारा जो धार्मिकता प्राप्त हुई थी, उस पर मुहर की तरह खतने का चिह्न लगाया गया। इस प्रकार वह उन सब के भी पिता बने, जो खतना कराये बिना विश्वास करते हैं, जिससे उनका भी विश्वास उनके लिए धार्मिकता माना जाये। अब्राहम उन खतने वालों के भी पिता बने, जो न केवल खतने पर निर्भर रहते हैं, बल्कि हमारे पिता अब्राहम के उस विश्वास के पथ पर चलते हैं, जो उन्हें खतने से पहले प्राप्त था।
परमेश्वर ने अब्राहम और उनके वंश से प्रतिज्ञा की कि वे पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे। यह इसलिए नहीं हुआ कि अब्राहम ने व्यवस्था का पालन किया, बल्कि इसलिए कि उन्होंने विश्वास किया और परमेश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है। यदि व्यवस्था के अधीन रहने वाले ही उत्तराधिकारी बनते हैं, तो विश्वास व्यर्थ है और प्रतिज्ञा रद्द हो जाती है; क्योंकि व्यवस्था का परिणाम परमेश्वर का प्रकोप है, जब कि व्यवस्था के अभाव में किसी आज्ञा का उल्लंघन नहीं होता। सब कुछ विश्वास पर, और इसलिए अनुग्रह पर ही निर्भर रहता है। वह प्रतिज्ञा न केवल उन लोगों पर, जो व्यवस्था का पालन करते हैं, बल्कि समस्त वंश पर लागू होती है—उन सब पर, जो अब्राहम की तरह विश्वास करते हैं। अब्राहम हम सब के पिता हैं जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है : “मैंने तुम को बहुत-सी जातियों का पिता नियुक्त किया है।”
परमेश्वर की दृष्टि में अब्राहम हमारे पिता हैं। उन्होंने उस परमेश्वर में विश्वास किया, जो मृतकों को पुनर्जीवित करता है और उन वस्तुओं को भी अस्तित्व में लाता है जिनका अस्तित्व नहीं है। अब्राहम ने निराशाजनक परिस्थिति में भी आशा रख कर विश्वास किया और वह बहुत जातियों के पिता बन गये, जैसा कि उन से कहा गया था, “तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे।” यद्यपि वह जानते थे कि उनका शरीर अशक्त हो गया है—उनकी अवस्था लगभग एक सौ वर्ष की थी—और उनकी पत्नी सारा बाँझ है, तो भी उनका विश्वास विचलित नहीं हुआ; उन्हें परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर सन्देह नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने अपने विश्वास की दृढ़ता द्वारा परमेश्वर का सम्मान किया। उन्हें पक्का निश्चय था कि परमेश्वर ने जिस बात की प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में समर्थ है। इस विश्वास के कारण “परमेश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है।”
धर्मग्रन्थ का यह कथन न केवल अब्राहम से, बल्कि हम से भी सम्बन्ध रखता है। यदि हम परमेश्वर में विश्वास करेंगे, जिसने हमारे प्रभु येशु को मृतकों में से जिलाया, तो हम भी विश्वास के कारण धार्मिक माने जायेंगे। वही येशु हमारे अपराधों के कारण पकड़वाये गये और हमें धार्मिक ठहराने के लिए जी उठे।