मारकुस 6:1-56

मारकुस 6:1-56 पवित्र बाइबल (HERV)

फिर यीशु उस स्थान को छोड़ कर अपने नगर को चल दिया। उसके शिष्य भी उसके साथ थे। जब सब्त का दिन आया, उसने आराधनालय में उपदेश देना आरम्भ किया। उसे सुनकर बहुत से लोग आश्चर्यचकित हुए। वे बोले, “इसको ये बातें कहाँ से मिली हैं? यह कैसी बुद्धिमानी है जो इसको दी गयी है? यह ऐसे आश्चर्य कर्म कैसे करता है? क्या यह वही बढ़ई नहीं है जो मरियम का बेटा है, और क्या यह याकूब, योसेस, यहूदा और शमौन का भाई नहीं है? क्या ये जो हमारे साथ रहतीं है इसकी बहनें नहीं हैं?” सो उन्हें उसे स्वीकार करने में समस्या हो रही थी। यीशु ने तब उनसे कहा, “किसी नबी का अपने निजी देश, सम्बंधियों और परिवार को छोड़ और कहीं अनादर नहीं होता।” वहाँ वह कोई आश्चर्य कर्म भी नहीं कर सकता। सिवाय इसके कि वह कुछ रोगियों पर हाथ रख कर उन्हें चंगा कर दे। यीशु को उनके अविश्वास पर बहुत अचरज हुआ। फिर वह गावों में लोगों को उपदेश देता घूमने लगा। उसने सभी बारह शिष्यों को अपने पास बुलाया। और दो दो कर के वह उन्हें बाहर भेजने लगा। उसने उन्हें दुष्टात्माओं पर अधिकार दिया। और यह निर्देश दिया, “आप अपनी यात्रा के लिए लाठी के सिवा साथ कुछ न लें। न रोटी, न बिस्तर, न पटुके में पैसे। आप चप्पल तो पहन सकते हैं किन्तु कोई अतिरिक्त कुर्ती नहीं। जिस किसी घर में तुम जाओ, वहाँ उस समय तक ठहरो जब तक उस नगर को छोड़ो। और यदि किसी स्थान पर तुम्हारा स्वागत न हो और वहाँ के लोग तुम्हें न सुनें, तो उसे छोड़ दो। और उनके विरोध में साक्षी देने के लिए अपने पैरों से वहाँ की धूल झाड़ दो।” फिर वे वहाँ से चले गये। और उन्होंने उपदेश दिया, “लोगों, मन फिराओ।” उन्होंने बहुत सी दुष्टात्माओं को बाहर निकाला और बहुत से रोगियों को जैतून के तेल से अभिषेक करते हुए चंगा किया। राजा हेरोदेस ने इस बारे में सुना; क्योंकि यीशु का यश सब कहीं फैल चुका था। कुछ लोग कह रहे थे, “बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना मरे हुओं में से जी उठा है और इसीलिये उसमें अद्भुत शक्तियाँ काम कर रही हैं।” दूसरे कह रहे थे, “वह एलिय्याह है।” कुछ और कह रहे थे, “यह नबी है या प्राचीनकाल के नबियों जैसा कोई एक।” पर जब हेरोदेस ने यह सुना तो वह बोला, “यूहन्ना जिसका सिर मैंने कटवाया था, वही जी उठा है।” क्योंकि हेरोदेस ने स्वयं ही यूहन्ना को बंदी बनाने और जेल में डालने की आज्ञा दी थी। उसने अपने भाई फिलिप की पत्नी हेरोदियास के कारण, जिससे उसने विवाह कर लिया था, ऐसा किया। क्योंकि यूहन्ना हेरोदेस से कहा करता था, “यह उचित नहीं है कि तुमने अपने भाई की पत्नी से विवाह कर लिया है।” इस पर हेरोदियास उससे बैर रखने लगी थी। वह चाहती थी कि उसे मार डाला जाये पर मार नहीं पाती थी। क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना से डरता था। हेरोदेस जानता था कि यूहन्ना एक सच्चा और पवित्र पुरुष है, इसीलिये वह उसकी रक्षा करता था। हेरोदेस जब यूहन्ना की बातें सुनता था तो वह बहुत घबराता था, फिर भी उसे उसकी बातें सुनना बहुत भाता था। संयोग से फिर वह समय आया जब हेरोदेस ने ऊँचे अधिकारियों, सेना के नायकों और गलील के बड़े लोगों को अपने जन्म दिन पर एक जेवनार दी। हेरोदियास की बेटी ने भीतर आकर जो नृत्य किया, उससे उसने जेवनार में आये मेहमानों और हेरोदेस को बहुत प्रसन्न किया। इस पर राजा हेरोदेस ने लड़की से कहा, “माँग, जो कुछ तुझे चाहिये। मैं तुझे दूँगा।” फिर उसने उससे शपथपूर्वक कहा, “मेरे आधे राज्य तक जो कुछ तू माँगेगी, मैं तुझे दूँगा।” इस पर वह बाहर निकल कर अपनी माँ के पास आई और उससे पूछा, “मुझे क्या माँगना चाहिये?” फिर माँ ने बताया, “बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना का सिर।” तब वह तत्काल दौड़ कर राजा के पास भीतर आयी और कहा, “मैं चाहती हूँ कि तू मुझे बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना का सिर तुरन्त थाली में रख कर दे।” इस पर राजा बहुत दुखी हुआ, पर अपनी शपथ और अपनी जेवनार के मेहमानों के कारण वह उस लड़की को मना करना नहीं चाहता था। इसलिये राजा ने उसका सिर ले आने की आज्ञा देकर तुरन्त एक जल्लाद भेज दिया। फिर उसने जेल में जाकर उसका सिर काट कर और उसे थाली में रखकर उस लड़की को दिया। और लड़की ने उसे अपनी माँ को दे दिया। जब यूहन्ना के शिष्यों ने इस विषय में सुना तो वे आकर उसका शव ले गये और उसे एक कब्र में रख दिया। फिर दिव्य संदेश का प्रचार करने वाले प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर जो कुछ उन्होंने किया था और सिखाया था, सब उसे बताया। फिर यीशु ने उनसे कहा, “तुम लोग मेरे साथ किसी एकांत स्थान पर चलो और थोड़ा आराम करो।” क्योंकि वहाँ बहुत लोगों का आना जाना लगा हुआ था और उन्हें खाने तक का मौका नहीं मिल पाता था। इसलिये वे अकेले ही एक नाव में बैठ कर किसी एकांत स्थान को चले गये। बहुत से लोगों ने उन्हें जाते देखा और पहचान लिया कि वे कौन थे। इसलिये वे सारे नगरों से धरती के रास्ते चल पड़े और उनसे पहले ही वहाँ जा पहुँचे। जब यीशु नाव से बाहर निकला तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी। वह उनके लिए बहुत दुखी हुआ क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों जैसे थे। सो वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। तब तक बहुत शाम हो चुकी थी। इसलिये उसके शिष्य उसके पास आये और बोले, “यह एक सुनसान जगह है और शाम भी बहुत हो चुकी है। लोगों को आसपास के गाँवों और बस्तियों में जाने दो ताकि वे अपने लिए कुछ खाने को मोल ले सकें।” किन्तु उसने उत्तर दिया, “उन्हें खाने को तुम दो।” तब उन्होंने उससे कहा, “क्या हम जायें और दो सौ दीनार की रोटियाँ मोल ले कर उन्हें खाने को दें?” उसने उनसे कहा, “जाओ और देखो, तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” पता करके उन्होंने कहा, “हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं।” फिर उसने आज्ञा दी, “हरी घास पर सब को पंक्ति में बैठा दो।” तब वे सौ-सौ और पचास-पचास की पंक्तियों में बैठ गये। और उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ उठा कर स्वर्ग की ओर देखते हुए धन्यवाद दिया और रोटियाँ तोड़ कर लोगों को परोसने के लिए, अपने शिष्यों को दीं। और उसने उन दो मछलियों को भी उन सब लोगों में बाँट दिया। सब ने खाया और तृप्त हुए। और फिर उन्होंने बची हुई रोटियों और मछलियों से भर कर, बारह टोकरियाँ उठाईं। जिन लोगों ने रोटियाँ खाईं, उनमे केवल पुरुषों की ही संख्या पांच हज़ार थी। फिर उसने अपने चेलों को तुरंत नाव पर चढ़ाया ताकि जब तक वह भीड़ को बिदा करे, वे उससे पहले ही परले पार बैतसैदा चले जायें। उन्हें बिदा करके, प्रार्थना करने के लिये वह पहाड़ी पर चला गया। और जब शाम हुई तो नाव झील के बीचों-बीच थी और वह अकेला धरती पर था। उसने देखा कि उन्हें नाव खेना भारी पड़ रहा था। क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी। लगभग रात के चौथे पहर वह झील पर चलते हुए उनके पास आया। वह उनके पास से निकलने को ही था। उन्होंने उसे झील पर चलते देखा सोचा कि वह कोई भूत है। और उनकी चीख निकल गयी। क्योंकि सभी ने उसे देखा था और वे सहम गये थे। तुरंत उसने उन्हें संबोधित करते हुए कहा, “साहस रखो, यह मैं हूँ! डरो मत!” फिर वह उनके साथ नाव पर चढ़ गया और हवा थम गयी। इससे वे बहुत चकित हुए। वे रोटियों के आश्चर्य कर्म के विषय में समझ नहीं पाये थे। उनकी बुद्धि जड़ हो गयी थी। झील पार करके वे गन्नेसरत पहुँचे। उन्होंने नाव बाँध दी। जब वे नाव से उतर कर बाहर आये तो लोग यीशु को पहचान गये। फिर वे बीमारों को खाटों पर डाले समूचे क्षेत्र में जहाँ कहीं भी, उन्होंने सुना कि वह है, उन्हें लिये दौड़ते फिरे। वह गावों में, नगरों में या बस्तियों में, जहाँ कहीं भी जाता, लोग अपने बीमारों को बाज़ारों में रख देते और उससे विनती करते कि वह अपने वस्त्र का बस कोई सिरा ही उन्हें छू लेने दे। और जो भी उसे छू पाये, सब चंगे हो गये।

मारकुस 6:1-56 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

येशु वहाँ से चले गए और अपने नगर में आए। उनके शिष्‍य भी उनके साथ गए। वह विश्राम-दिवस पर सभागृह में शिक्षा देने लगे। बहुत-से लोगों ने सुना तो वे अचम्‍भे में पड़ कर कहने लगे, “यह सब इसे कहाँ से मिला? यह कौन-सी बुद्धि है, जो इसे दी गई है? यह कौन-सी शक्‍ति है, जिससे यह ऐसे आश्‍चर्यपूर्ण कार्य करता है? क्‍या यह वही बढ़ई नहीं है जो मरियम का पुत्र और याकूब, योसेस, यहूदा और शिमोन का भाई है? क्‍या इसकी बहिनें हमारे बीच नहीं रहती हैं?” इस प्रकार लोगों को येशु के विषय में भ्रम हो गया। येशु ने उन से कहा, “अपने नगर, अपने कुटुम्‍ब और अपने घर को छोड़कर नबी का अपमान कहीं नहीं होता।” वहाँ वह कोई सामर्थ्य का कार्य नहीं कर सके। उन्‍होंने केवल कुछ रोगियों पर हाथ रख कर उन्‍हें स्‍वस्‍थ किया। उन लोगों के अविश्‍वास पर येशु को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। येशु शिक्षा देते हुए गाँव-गाँव में भ्रमण कर रहे थे। उन्‍होंने बारहों प्रेरितों को अपने पास बुलाया, और उन्‍हें अशुद्ध आत्‍माओं पर अधिकार देकर वह उन्‍हें दो-दो करके भेजने लगे। येशु ने आदेश दिया कि वे लाठी के अतिरिक्‍त मार्ग के लिए कुछ भी नहीं ले जाएँ−न रोटी, न झोली, न फेंटे में पैसा। वे पैरों में चप्‍पल पहिन सकते हैं, परन्‍तु दो कुरते नहीं पहिनें। उन्‍होंने उन से कहा, “जहाँ कहीं तुम किसी घर में प्रवेश करो, तो उस स्‍थान से विदा होने तक वहीं रहो। यदि किसी स्‍थान पर लोग तुम्‍हारा स्‍वागत न करें और तुम्‍हारी बातें न सुनें, तो वहाँ से निकलने पर उनके विरुद्ध प्रमाण के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।” वे चले गये। उन्‍होंने लोगों को पश्‍चात्ताप का संदेश सुनाया, बहुत-से भूतों को निकाला और अनेक रोगियों पर तेल मल कर उन्‍हें स्‍वस्‍थ किया। राजा हेरोदेस ने येशु की चर्चा सुनी, क्‍योंकि उनका नाम प्रसिद्ध हो गया था। लोग कहते थे, “योहन बपतिस्‍मादाता मृतकों में से जी उठे हैं, इसलिए उनमें ये चमत्‍कारिक शक्‍तियाँ क्रियाशील हैं।” कुछ लोग कहते थे, “यह नबी एलियाह हैं।” अन्‍य लोग कहते थे, “यह नबियों की तरह ही कोई नबी हैं।” हेरोदेस ने यह सब सुन कर कहा, “यह योहन ही है, जिसका सिर मैंने कटवाया था। वह जी उठा है।” हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप की पत्‍नी हेरोदियस के कारण सिपाही भेजकर योहन को गिरफ्‍तार किया और बन्‍दीगृह में डाल दिया था। हेरोदेस ने हेरोदियस से विवाह कर लिया था। क्‍योंकि योहन ने हेरोदेस से कहा था, “अपने भाई की पत्‍नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है”, इस कारण हेरोदियस योहन से बैर करती थी और उसे मार डालना चाहती थी; किन्‍तु वह ऐसा नहीं कर पाती थी, क्‍योंकि हेरोदेस योहन को धर्मात्‍मा और पवित्र पुरुष जान कर उनसे डरता था और उनकी रक्षा करता था। हेरोदेस उनके उपदेश सुन कर बड़े असमंजस में पड़ जाता था। फिर भी, वह उनकी बातें आनन्‍द से सुनता था। हेरोदेस के जन्‍मदिवस पर हेरोदियस को एक सुअवसर मिला। अपने जन्‍मदिवस के उपलक्ष्य में हेरोदेस ने अपने दरबारियों, सेनापतियों और गलील प्रदेश के प्रतिष्‍ठित व्यक्‍तियों को भोज दिया। उस अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अन्‍दर आ कर नृत्‍य किया और हेरोदेस तथा उसके अतिथियों को मुग्‍ध कर लिया। राजा ने लड़की से कहा, “जो भी चाहो, मुझ से माँगो। मैं तुम्‍हें दे दूँगा”, और उसने बार-बार शपथ खा कर कहा, “जो भी माँगो, चाहे मेरा आधा राज्‍य ही क्‍यों न हो, मैं तुम्‍हें दे दूँगा।” लड़की ने बाहर जा कर अपनी माँ से पूछा, “मैं क्‍या माँगूं?” उसने कहा, “योहन बपतिस्‍मादाता का सिर।” वह तुरन्‍त राजा के पास दौड़ती हुई आयी और बोली, “मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय एक थाल में योहन बपतिस्‍मादाता का सिर दे दें।” राजा को धक्‍का लगा, परन्‍तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण वह उसकी माँग अस्‍वीकार करना नहीं चाहता था। राजा ने तुरन्‍त जल्‍लाद को भेज कर योहन का सिर ले आने का आदेश दिया। वह गया। उस ने बन्‍दीगृह में उनका सिर काटा और उसे थाल में ला कर लड़की को दिया और लड़की ने उसे अपनी माँ को दे दिया। जब योहन के शिष्‍यों को इसका पता चला, तो वे आ कर उनका शव ले गये और उन्‍होंने उसे कबर में रख दिया। प्रेरित लौट कर येशु के पास एकत्र हुए। उन्‍होंने येशु को वह सब कुछ बताया कि हम लोगों ने क्‍या-क्‍या किया और क्‍या-क्‍या सिखाया है। तब येशु ने उनसे कहा, “तुम लोग अकेले ही मेरे साथ निर्जन स्‍थान में चलो और थोड़ा विश्राम कर लो”; क्‍योंकि इतने लोग आया-जाया करते थे कि उन्‍हें भोजन करने की भी फुरसत नहीं रहती थी। इसलिए वे नाव पर चढ़ कर निर्जन स्‍थान की ओर एकांत में चले गए। बहुत लोगों ने उन्‍हें जाते हुए देखा, और वे उन्‍हें पहचान गए। वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उधर दौड़ पड़े और उन से पहले ही वहाँ पहुँच गये। येशु ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा। उन्‍हें उन लोगों पर तरस आया, क्‍योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वे उन्‍हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे। जब दिन बहुत ढल गया, तो येशु के शिष्‍यों ने उनके पास आ कर कहा, “यह स्‍थान निर्जन है और दिन बहुत ढल चुका है। लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे आसपास की बस्‍तियों और गाँवों में जा कर अपने भोजन के लिए कुछ खरीद लें।” येशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, “तुम लोग ही उन्‍हें भोजन दो।” शिष्‍यों ने कहा, “क्‍या हम जा कर दो सौ चाँदी के सिक्‍कों की रोटियाँ खरीद कर लाएँ और उन्‍हें लोगों को खाने को दें?” येशु ने पूछा, “तुम्‍हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? जा कर देखो।” उन्‍होंने पता लगा कर कहा, “पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ।” इस पर येशु ने सब को अलग-अलग समूह में हरी घास पर बैठाने का आदेश दिया। लोग सौ-सौ और पचास-पचास के झुंड में बैठ गये। येशु ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की ओर आँखें उठा कर आशिष माँगी। उन्‍होंने रोटियाँ तोड़ीं और शिष्‍यों को दीं, ताकि वे लोगों को परोसते जाएँ। उन्‍होंने उन दो मछलियों को भी सब में बाँट दिया। सब ने खाया और खा कर तृप्‍त हो गये। शिष्‍यों ने रोटी के टुकड़ों और मछलियों से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाईं। रोटी खाने वाले पुरुषों की संख्‍या पाँच हजार थी। इसके तुरन्‍त बाद येशु ने अपने शिष्‍यों को इसके लिए बाध्‍य किया कि वे नाव पर चढ़कर उन से पहले उस पार, बेतसैदा गाँव चले जाएँ। इतने में वह स्‍वयं लोगों को विदा कर देंगे। तब येशु उन्‍हें विदा कर पहाड़ी पर प्रार्थना करने चले गये। सन्‍ध्‍या हो गयी थी। नाव झील के बीच में थी और येशु अकेले स्‍थल पर थे। येशु ने देखा कि शिष्‍य बड़ी कठिनाई से नाव खे रहे हैं, क्‍योंकि वायु प्रतिकूल थी। इसलिए वे रात के लगभग चौथे पहर झील पर चलते हुए उनकी ओर आए। वह उनसे कतरा कर आगे निकल जाना चाहते थे। शिष्‍यों ने उन्‍हें झील पर चलते देखा। वे उन्‍हें प्रेत समझ कर चिल्‍ला उठे, क्‍योंकि सब-के-सब उन्‍हें देख कर घबरा गये थे। पर येशु तुरन्‍त उनसे बोले, “धैर्य रखो, मैं हूँ। डरो मत।” तब वह उनके पास आ कर नाव पर चढ़े और वायु थम गयी। शिष्‍य आश्‍चर्य-चकित रह गये, क्‍योंकि वे रोटियों से संबंधित घटना नहीं समझ पाए थे। उनका हृदय कठोर हो गया था। वे झील को पार कर गिनेसरेत के सीमा-क्षेत्र में पहुँचे। उन्‍होंने नाव किनारे लगा दी। ज्‍यों ही वे भूमि पर उतरे, लोगों ने येशु को पहचान लिया। वे उस सारे प्रदेश में दौड़ गए, और जहाँ-जहाँ उन्‍होंने सुना कि वह हैं, वहाँ वे चारपाइयों पर पड़े रोगियों को उनके पास लाने लगे। गाँव, नगर या बस्‍ती, जहाँ कहीं भी येशु आते, वहाँ लोग रोगियों को सार्वजनिक स्‍थानों पर रख कर उनसे अनुनय-विनय करते थे कि वह उन्‍हें अपने वस्‍त्र का सिरा ही छूने दें। जितनों ने उनका स्‍पर्श किया, वे सब-के-सब स्‍वस्‍थ्‍य हो गये।

मारकुस 6:1-56 Hindi Holy Bible (HHBD)

वहां से निकलकर वह अपने देश में आया, और उसके चेले उसके पीछे हो लिए। सब्त के दिन वह आराधनालय में उपदेश करने लगा; और बहुत लोग सुनकर चकित हुए और कहने लगे, इस को ये बातें कहां से आ गईं? और यह कौन सा ज्ञान है जो उस को दिया गया है? और कैसे सामर्थ के काम इसके हाथों से प्रगट होते हैं? क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब और योसेस और यहूदा और शमौन का भाई है? और क्या उस की बहिनें यहां हमारे बीच में नहीं रहतीं? इसलिये उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई। यीशु ने उन से कहा, कि भविष्यद्वक्ता अपने देश और अपने कुटुम्ब और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता। और वह वहां कोई सामर्थ का काम न कर सका, केवल थोड़े बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया॥ और उस ने उन के अविश्वास पर आश्चर्य किया और चारों ओर के गावों में उपदेश करता फिरा॥ और वह बारहों को अपने पास बुलाकर उन्हें दो दो करके भेजने लगा; और उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया। और उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि मार्ग के लिये लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न झोली, न पटुके में पैसे। परन्तु जूतियां पहिनो और दो दो कुरते न पहिनो। और उस ने उन से कहा; जहां कहीं तुम किसी घर में उतरो तो जब तक वहां से विदा न हो, तब तक उसी में ठहरे रहो। जिस स्थान के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, और तुम्हारी न सुनें, वहां से चलते ही अपने तलवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो। और उन्होंने जाकर प्रचार किया, कि मन फिराओ। और बहुतेरे दुष्टात्माओं को निकाला, और बहुत बीमारों पर तेल मलकर उन्हें चंगा किया॥ और हेरोदेस राजा ने उस की चर्चा सुनी, क्योंकि उसका नाम फैल गया था, और उस ने कहा, कि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला मरे हुओं में से जी उठा है, इसी लिये उस से ये सामर्थ के काम प्रगट होते हैं। और औरों ने कहा, यह एलिय्याह है, परन्तु औरों ने कहा, भविष्यद्वक्ता या भविष्यद्वक्ताओं में से किसी एक के समान है। हेरोदेस ने यह सुन कर कहा, जिस यूहन्ना का सिर मैं ने कटवाया था, वही जी उठा है। क्योंकि हेरोदेस ने आप अपने भाई फिलेप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, जिस से उस ने ब्याह किया था, लोगों को भेजकर यूहन्ना को पकड़वा कर बन्दीगृह में डाल दिया था। क्योंकि यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा था, कि अपने भाई की पत्नी को रखना तुझे उचित नहीं। इसलिये हेरोदियास उस से बैर रखती थी और यह चाहती थी, कि उसे मरवा डाले, परन्तु ऐसा न हो सका। क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरूष जानकर उस से डरता था, और उसे बचाए रखता था, और उस की सुनकर बहुत घबराता था, पर आनन्द से सुनता था। और ठीक अवसर पर जब हेरोदेस ने अपने जन्म दिन में अपने प्रधानों और सेनापतियों, और गलील के बड़े लोगों के लिये जेवनार की। और उसी हेरोदियास की बेटी भीतर आई, और नाचकर हेरोदेस को और उसके साथ बैठने वालों को प्रसन्न किया; तब राजा ने लड़की से कहा, तू जो चाहे मुझ से मांग मैं तुझे दूंगा। और उस ने शपथ खाई, कि मैं अपने आधे राज्य तक जो कुछ तू मुझ से मांगेगी मैं तुझे दूंगा। उस ने बाहर जाकर अपनी माता से पूछा, कि मैं क्या मांगूं? वह बोली; यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर। वह तुरन्त राजा के पास भीतर आई, और उस से बिनती की; मैं चाहती हूं, कि तू अभी यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर एक थाल में मुझे मंगवा दे। तब राजा बहुत उदास हुआ, परन्तु अपनी शपथ के कारण और साथ बैठने वालों के कारण उसे टालना न चाहा। और राजा ने तुरन्त एक सिपाही को आज्ञा देकर भेजा, कि उसका सिर काट लाए। उस ने जेलखाने में जाकर उसका सिर काटा, और एक थाल में रखकर लाया और लड़की को दिया, और लड़की ने अपनी मां को दिया। यह सुनकर उसके चेले आए, और उस की लोथ को उठाकर कब्र में रखा। प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उस को बता दिया। उस ने उन से कहा; तुम आप अलग किसी जंगली स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो; क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। इसलिये वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहिचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहां पैदल दौड़े और उन से पहिले जा पहुंचे। उस ने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे; यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गांवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें। उस ने उन्हें उत्तर दिया; कि तुम ही उन्हें खाने को दो: उन्हों ने उस से कहा; क्या हम सौ दीनार की रोटियां मोल लें, और उन्हें खिलाएं? उस ने उन से कहा; जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं? उन्होंने मालूम करके कहा; पांच और दो मछली भी। तब उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर पांति पांति से बैठा दो। वे सौ सौ और पचास पचास करके पांति पांति बैठ गए। और उस ने उन पांच रोटियों को और दो मछिलयों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियां तोड़ तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछिलयां भी उन सब में बांट दीं। और सब खाकर तृप्त हो गए। और उन्होंने टुकडों से बारह टोकिरयां भर कर उठाई, और कुछ मछिलयों से भी। जिन्हों ने रोटियां खाईं, वे पांच हजार पुरूष थे॥ तब उस ने तुरन्त अपने चेलों को बरबस नाव पर चढाया, कि वे उस से पहिले उस पार बैतसैदा को चले जांए, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। और जब सांझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। और जब उस ने देखा, कि वे खेते खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरूद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उन के पास आया; और उन से आगे निकल जाना चाहता था। परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उस ने तुरन्त उन से बातें कीं और कहा; ढाढ़स बान्धो: मैं हूं; डरो मत। तब वह उन के पास नाव पर आया, और हवा थम गई: और वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में ने समझे थे परन्तु उन के मन कठोर हो गए थे॥ और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुंचे, और नाव घाट पर लगाई। और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उस को पहचान कर। आसपास के सारे देश में दोड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहां जहां समाचार पाया कि वह है, वहां वहां लिए फिरे। और जहां कहीं वह गांवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, तो लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उस से बिनती करते थे, कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आंचल ही को छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे॥

मारकुस 6:1-56 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

वहाँ से निकल कर वह अपने देश में आया, और उसके चेले भी उसके पीछे गए। सब्त के दिन वह आराधनालय में उपदेश करने लगा, और बहुत से लोग सुनकर चकित हुए और कहने लगे, “इस को ये बातें कहाँ से आ गईं? यह कौन सा ज्ञान है जो उसको दिया गया है? कैसे सामर्थ्य के काम इसके हाथों से प्रगट होते हैं? क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब, योसेस, यहूदा, और शमौन का भाई है? क्या उसकी बहिनें यहाँ हमारे बीच में नहीं रहतीं?” इसलिये उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई। यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्‍ता का अपने देश, और अपने कुटुम्ब, और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता।” वह वहाँ कोई सामर्थ्य का काम न कर सका, केवल थोड़े–से बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। और उसे उनके अविश्‍वास पर आश्‍चर्य हुआ, और वह चारों ओर के गाँवों में उपदेश करता फिरा। उसने बारहों को अपने पास बुलाया और उन्हें दो दो करके भेजने लगा; और उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया। उसने उन्हें आज्ञा दी, “मार्ग के लिये लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न झोली, न बटुए में पैसे, परन्तु जूतियाँ पहिनो और दो दो कुरते न पहिनो।” और उसने उनसे कहा, “जहाँ कहीं तुम किसी घर में उतरो, तो जब तक वहाँ से विदा न हो तब तक उसी घर में ठहरे रहो। जिस स्थान के लोग तुम्हें ग्रहण न करें और तुम्हारी न सुनें, वहाँ से चलते ही अपने तलवों की धूल झाड़ डालो कि उन पर गवाही हो।” तब उन्होंने जाकर प्रचार किया कि मन फिराओ, और बहुत सी दुष्‍टात्माओं को निकाला, और बहुत से बीमारों पर तेल मलकर उन्हें चंगा किया। हेरोदेस राजा ने भी उसकी चर्चा सुनी, क्योंकि उसका नाम फैल गया था, और उसने कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला मरे हुओं में से जी उठा है, इसी लिये उससे ये सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।” अन्य लोगों ने कहा, “यह एलिय्याह है।” परन्तु कुछ अन्य ने कहा, “भविष्यद्वक्‍ता या भविष्यद्वक्‍ताओं में से किसी एक के समान है।” हेरोदेस ने यह सुन कर कहा, “जिस यूहन्ना का सिर मैं ने कटवाया था, वही जी उठा है!” हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, जिससे उसने विवाह कर लिया था, लोगों को भेजकर यूहन्ना को पकड़वाकर बन्दीगृह में डाल दिया था; क्योंकि यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा था, “अपने भाई की पत्नी को रखना तुझे उचित नहीं।” इसलिये हेरोदियास उससे बैर रखती थी और यह चाहती थी कि उसे मरवा डाले; परन्तु ऐसा न हो सका, क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरुष जानकर उससे डरता था, और उसे बचाए रखता था, और उसकी बातें सुनकर बहुत घबराता था, पर आनन्द से सुनता था। ठीक अवसर आया जब हेरोदेस ने अपने जन्म दिन में अपने प्रधानों, और सेनापतियों, और गलील के बड़े लोगों के लिये भोज किया। तो हेरोदियास की बेटी भीतर आई, और नाचकर हेरोदेस को और उसके साथ बैठनेवालों को प्रसन्न किया। तब राजा ने लड़की से कहा, “तू जो चाहे मुझ से माँग मैं तुझे दूँगा।” और उससे शपथ खाई, “मैं अपने आधे राज्य तक जो कुछ तू मुझ से माँगेगी मैं तुझे दूँगा।” उसने बाहर जाकर अपनी माता से पूछा, “मैं क्या माँगूँ?” वह बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर।” वह तुरन्त राजा के पास भीतर आई और उससे विनती की, “मैं चाहती हूँ कि तू अभी यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर एक थाल में मुझे मँगवा दे।” तब राजा बहुत उदास हुआ, परन्तु अपनी शपथ के कारण और साथ बैठनेवालों के कारण उसे टालना न चाहा। अत: राजा ने तुरन्त एक सिपाही को आज्ञा देकर भेजा कि उसका सिर काट लाए। उसने जेलखाने में जाकर उसका सिर काटा, और एक थाल में रखकर लाया और लड़की को दिया, और लड़की ने अपनी माँ को दिया। यह सुनकर यूहन्ना के चेले आए, और उसके शव को ले गए और कब्र में रखा। प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया और सिखाया था, सब उसको बताया। उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग किसी एकान्त स्थान में चलकर थोड़ा विश्राम करो।” क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। इसलिये वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहाँ पैदल दौड़े और उनसे पहले जा पहुँचे। उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। उन्हें विदा कर कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।” उस ने उत्तर दिया, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने उससे कहा, “क्या हम सौ दीनार की रोटियाँ मोल लें, और उन्हें खिलाएँ?” उसने उनसे कहा, “जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने मालूम करके कहा, “पाँच और दो मछली भी।” तब उसने उन्हें आज्ञा दी कि सब को हरी घास पर पाँति–पाँति से बैठा दो। वे सौ सौ और पचास पचास करके पाँति–पाँति बैठ गए। उसने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया, और रोटियाँ तोड़–तोड़ कर चेलों को देता गया कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं। सब खाकर तृप्‍त हो गए, और उन्होंने टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भर कर उठाईं, और कुछ मछलियों से भी। जिन्होंने रोटियाँ खाईं, वे पाँच हज़ार पुरुष थे। तब उसने तुरन्त अपने चेलों को नाव पर चढ़ने के लिये विवश किया कि वे उससे पहले उस पार बैतसैदा को चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। उन्हें विदा करके वह पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। जब साँझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। जब उसने देखा कि वे खेते खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उनके पास आया; और उनसे आगे निकल जाना चाहता था। परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा कि भूत है, और चिल्‍ला उठे; क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उसने तुरन्त उनसे बातें कीं और कहा, “ढाढ़स बाँधो : मैं हूँ; डरो मत!” तब वह उनके पास नाव पर आया, और हवा थम गई : और वे बहुत ही आश्‍चर्य करने लगे। वे उन रोटियों के विषय में न समझे थे, क्योंकि उनके मन कठोर हो गए थे। वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुँचे, और नाव घाट पर लगाई। जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उसको पहचान कर, आसपास के सारे देश में दौड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहाँ–जहाँ समाचार पाया कि वह है, वहाँ–वहाँ लिये फिरे। और जहाँ कहीं वह गाँवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उससे विनती करते थे कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आँचल ही को छू लेने दे : और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे।

मारकुस 6:1-56 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

वहाँ से निकलकर वह अपने देश में आया, और उसके चेले उसके पीछे हो लिए। सब्त के दिन वह आराधनालय में उपदेश करने लगा; और बहुत लोग सुनकर चकित हुए और कहने लगे, “इसको ये बातें कहाँ से आ गई? और यह कौन सा ज्ञान है जो उसको दिया गया है? और कैसे सामर्थ्य के काम इसके हाथों से प्रगट होते हैं? क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब और योसेस और यहूदा और शमौन का भाई है? और क्या उसकी बहनें यहाँ हमारे बीच में नहीं रहतीं?” इसलिए उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई। यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता का अपने देश और अपने कुटुम्ब और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता।” और वह वहाँ कोई सामर्थ्य का काम न कर सका, केवल थोड़े बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। और उसने उनके अविश्वास पर आश्चर्य किया और चारों ओर से गाँवों में उपदेश करता फिरा। और वह बारहों को अपने पास बुलाकर उन्हें दो-दो करके भेजने लगा; और उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया। और उसने उन्हें आज्ञा दी, कि “मार्ग के लिये लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न झोली, न पटुके में पैसे। परन्तु जूतियाँ पहनो और दो-दो कुर्ते न पहनो।” और उसने उनसे कहा, “जहाँ कहीं तुम किसी घर में उतरो, तो जब तक वहाँ से विदा न हो, तब तक उसी घर में ठहरे रहो। जिस स्थान के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, और तुम्हारी न सुनें, वहाँ से चलते ही अपने तलवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो।” और उन्होंने जाकर प्रचार किया, कि मन फिराओ, और बहुत सी दुष्टात्माओं को निकाला, और बहुत बीमारों पर तेल मलकर उन्हें चंगा किया। और हेरोदेस राजा ने उसकी चर्चा सुनी, क्योंकि उसका नाम फैल गया था, और उसने कहा, कि “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला मरे हुओं में से जी उठा है, इसलिए उससे ये सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।” और औरों ने कहा, “यह एलिय्याह है”, परन्तु औरों ने कहा, “भविष्यद्वक्ता या भविष्यद्वक्ताओं में से किसी एक के समान है।” हेरोदेस ने यह सुनकर कहा, “जिस यूहन्ना का सिर मैंने कटवाया था, वही जी उठा है।” क्योंकि हेरोदेस ने आप अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, जिससे उसने विवाह किया था, लोगों को भेजकर यूहन्ना को पकड़वाकर बन्दीगृह में डाल दिया था। क्योंकि यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा था, “अपने भाई की पत्नी को रखना तुझे उचित नहीं।” (लैव्य. 18:16, लैव्य. 20:21) इसलिए हेरोदियास उससे बैर रखती थी और यह चाहती थी, कि उसे मरवा डाले, परन्तु ऐसा न हो सका, क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरुष जानकर उससे डरता था, और उसे बचाए रखता था, और उसकी सुनकर बहुत घबराता था, पर आनन्द से सुनता था। और ठीक अवसर पर जब हेरोदेस ने अपने जन्मदिन में अपने प्रधानों और सेनापतियों, और गलील के बड़े लोगों के लिये भोज किया। और उसी हेरोदियास की बेटी भीतर आई, और नाचकर हेरोदेस को और उसके साथ बैठनेवालों को प्रसन्न किया; तब राजा ने लड़की से कहा, “तू जो चाहे मुझसे माँग मैं तुझे दूँगा।” और उसने शपथ खाई, “मैं अपने आधे राज्य तक जो कुछ तू मुझसे माँगेगी मैं तुझे दूँगा।” (एस्ते. 5:3,6, एस्ते. 7:2) उसने बाहर जाकर अपनी माता से पूछा, “मैं क्या माँगू?” वह बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर।” वह तुरन्त राजा के पास भीतर आई, और उससे विनती की, “मैं चाहती हूँ, कि तू अभी यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर एक थाल में मुझे मँगवा दे।” तब राजा बहुत उदास हुआ, परन्तु अपनी शपथ के कारण और साथ बैठनेवालों के कारण उसे टालना न चाहा। और राजा ने तुरन्त एक सिपाही को आज्ञा देकर भेजा, कि उसका सिर काट लाए। उसने जेलखाने में जाकर उसका सिर काटा, और एक थाल में रखकर लाया और लड़की को दिया, और लड़की ने अपनी माँ को दिया। यह सुनकर उसके चेले आए, और उसके शव को उठाकर कब्र में रखा। प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उसको बता दिया। उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग किसी एकान्त स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो।” क्योंकि बहुत लोग आते-जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। इसलिए वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहाँ पैदल दौड़े और उनसे पहले जा पहुँचे। उसने उतरकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। (2 इति. 18:16, 1 राजा. 22:17) जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।” उसने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने उससे कहा, “क्या हम दो सौ दीनार की रोटियाँ मोल लें, और उन्हें खिलाएँ?” उसने उनसे कहा, “जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने मालूम करके कहा, “पाँच रोटी और दो मछली भी।” तब उसने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर समूह में बैठा दो। वे सौ-सौ और पचास-पचास करके समूह में बैठ गए। और उसने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं। और सब खाकर तृप्त हो गए, और उन्होंने टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाई, और कुछ मछलियों से भी। जिन्होंने रोटियाँ खाई, वे पाँच हजार पुरुष थे। तब उसने तुरन्त अपने चेलों को विवश किया कि वे नाव पर चढ़कर उससे पहले उस पार बैतसैदा को चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। और जब साँझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। और जब उसने देखा, कि वे खेते-खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उनके पास आया; और उनसे आगे निकल जाना चाहता था। परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उसने तुरन्त उनसे बातें की और कहा, “धैर्य रखो: मैं हूँ; डरो मत।” तब वह उनके पास नाव पर आया, और हवा थम गई: वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में न समझे थे परन्तु उनके मन कठोर हो गए थे। और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुँचे, और नाव घाट पर लगाई। और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उसको पहचानकर, आस-पास के सारे देश में दौड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहाँ-जहाँ समाचार पाया कि वह है, वहाँ-वहाँ लिए फिरे। और जहाँ कहीं वह गाँवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, तो लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उससे विनती करते थे, कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आँचल ही को छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे।

मारकुस 6:1-56 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

मसीह येशु वहां से अपने गृहनगर आए. उनके शिष्य उनके साथ थे. शब्बाथ पर वे यहूदी सभागृह में शिक्षा देने लगे. उनको सुन उनमें से अनेक चकित हो कहने लगे. “कहां से प्राप्‍त हुआ इसे यह सब? कहां से प्राप्‍त हुआ है इसे यह बुद्धि कौशल और हाथों से यह अद्भुत काम करने की क्षमता? क्या यह वही बढ़ई नहीं? क्या यह मरियम का पुत्र तथा याकोब, योसेस, यहूदाह तथा शिमओन का भाई नहीं? क्या उसी की बहनें हमारे मध्य नहीं हैं?” इस पर उन्होंने मसीह येशु को अस्वीकार कर दिया. मसीह येशु ने उनसे कहा, “भविष्यवक्ता हर जगह सम्मानित होता है सिवाय अपने स्वयं के नगर में, अपने संबंधियों तथा परिवार के मध्य.” कुछ रोगियों पर हाथ रख उन्हें स्वस्थ करने के अतिरिक्त मसीह येशु वहां कोई अन्य अद्भुत काम न कर सके. मसीह येशु को उनके अविश्वास पर बहुत ही आश्चर्य हुआ. मसीह येशु नगर-नगर जाकर शिक्षा देते रहे. उन्होंने उन बारहों को बुलाया और उन्हें दुष्टात्माओं पर अधिकार देते हुए उन्हें दो-दो करके भेज दिया. मसीह येशु ने उन्हें आदेश दिए, “इस यात्रा में छड़ी के अतिरिक्त अपने साथ कुछ न ले जाना—न भोजन, न झोली और न पैसा. हां, चप्पल तो पहन सकते हो किंतु अतिरिक्त बाहरी वस्त्र नहीं.” आगे उन्होंने कहा, “जिस घर में भी तुम ठहरो उस नगर से विदा होने तक वहीं रहना. जहां कहीं तुम्हें स्वीकार न किया जाए या तुम्हारा प्रवचन न सुना जाए, वह स्थान छोड़ते हुए अपने पैरों की धूल वहीं झाड़ देना कि यह उनके विरुद्ध प्रमाण हो.” शिष्यों ने प्रस्थान किया. वे यह प्रचार करने लगे कि पश्चाताप सभी के लिए ज़रूरी है. उन्होंने अनेक दुष्टात्माएं निकाली तथा अनेक रोगियों को तेल मलकर उन्हें स्वस्थ किया. राजा हेरोदेस तक इसका समाचार पहुंच गया क्योंकि मसीह येशु की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी थी. कुछ तो यहां तक कह रहे थे, “बपतिस्मा देनेवाले योहन मरे हुओं में से जीवित हो गए हैं. यही कारण है कि मसीह येशु में यह अद्भुत सामर्थ्य प्रकट है.” कुछ कह रहे थे, “वह एलियाह हैं.” कुछ यह भी कहते सुने गए, “वह एक भविष्यवक्ता हैं—अतीत में हुए भविष्यद्वक्ताओं के समान.” यह सब सुनकर हेरोदेस कहता रहा, “योहन, जिसका मैंने वध करवाया था, जीवित हो गया है.” स्वयं हेरोदेस ने योहन को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था क्योंकि उसने अपने भाई फ़िलिप्पॉस की पत्नी हेरोदिअस से विवाह कर लिया था. योहन हेरोदेस को याद दिलाते रहते थे, “तुम्हारे लिए अपने भाई की पत्नी को रख लेना व्यवस्था के अनुसार नहीं है.” इसलिये हेरोदियास के मन में योहन के लिए शत्रुभाव पनप रहा था. वह उनका वध करवाना चाहती थी किंतु उससे कुछ नहीं हो पा रहा था. हेरोदेस योहन से डरता था क्योंकि वह जानता था कि योहन एक धर्मी और पवित्र व्यक्ति हैं. हेरोदेस ने योहन को सुरक्षित रखा था. योहन के प्रवचन सुनकर वह घबराता तो था फिर भी उसे उनके प्रवचन सुनना बहुत प्रिय था. आखिरकार हेरोदिअस को वह मौका प्राप्‍त हो ही गया: अपने जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हेरोदेस ने अपने सभी उच्च अधिकारियों, सेनापतियों और गलील प्रदेश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भोज पर आमंत्रित किया. इस अवसर पर हेरोदिअस की पुत्री ने वहां अपने नृत्य के द्वारा हेरोदेस और अतिथियों को मोह लिया. राजा ने पुत्री से कहा. “मुझसे चाहे जो मांग लो, मैं दूंगा.” राजा ने शपथ खाते हुए कहा, “तुम जो कुछ मांगोगी, मैं तुम्हें दूंगा—चाहे वह मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो.” अपनी मां के पास जाकर उसने पूछा, “क्या मांगूं?” “बपतिस्मा देनेवाले योहन का सिर,” उसने कहा. पुत्री ने तुरंत जाकर राजा से कहा, “मैं चाहती हूं कि आप मुझे इसी समय एक थाल में बपतिस्मा देनेवाले योहन का सिर लाकर दें.” हालांकि राजा को इससे गहरा दुःख तो हुआ किंतु आमंत्रित अतिथियों के सामने ली गई अपनी शपथ के कारण वह अस्वीकार न कर सका. तत्काल राजा ने एक जल्लाद को बुलवाया और योहन का सिर ले आने की आज्ञा दी. वह गया, कारागार में योहन का वध किया और उनका सिर एक बर्तन में रखकर पुत्री को सौंप दिया और उसने जाकर अपनी माता को सौंप दिया. जब योहन के शिष्यों को इसका समाचार प्राप्‍त हुआ, वे आए और योहन के शव को ले जाकर एक कब्र में रख दिया. प्रेरित लौटकर मसीह येशु के पास आए और उन्हें अपने द्वारा किए गए कामों और दी गई शिक्षा का विवरण दिया. मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ, कुछ समय के लिए कहीं एकांत में चलें और विश्राम करें,” क्योंकि अनेक लोग आ जा रहे थे और उन्हें भोजन तक का अवसर प्राप्‍त न हो सका था. वे चुपचाप नाव पर सवार हो एक सुनसान जगह पर चले गए. लोगों ने उन्हें वहां जाते हुए देख लिया. अनेकों ने यह भी पहचान लिया कि वे कौन थे. आस-पास के नगरों से अनेक लोग दौड़ते हुए उनसे पहले ही उस स्थान पर जा पहुंचे. जब मसीह येशु तट पर पहुंचे, उन्होंने वहां एक बड़ी भीड़ को इकट्ठा देखा. उसे देख वह दुःखी हो उठे क्योंकि उन्हें भीड़ बिना चरवाहे की भेड़ों के समान लगी. वहां मसीह येशु उन्हें अनेक विषयों पर शिक्षा देने लगे. दिन ढल रहा था. शिष्यों ने मसीह येशु के पास आकर उनसे कहा, “यह सुनसान जगह है और दिन ढला जा रहा है. अब आप इन्हें विदा कर दीजिए कि ये पास के गांवों में जाकर अपने लिए भोजन-व्यवस्था कर सकें.” किंतु मसीह येशु ने उन्हीं से कहा, “तुम ही दो इन्हें भोजन!” शिष्यों ने इसके उत्तर में कहा, “इतनों के भोजन में कम से कम दो सौ दीनार लगेंगे. क्या आप चाहते हैं कि हम जाकर इनके लिए इतने का भोजन ले आएं?” मसीह येशु ने उनसे पूछा, “कितनी रोटियां हैं यहां? जाओ, पता लगाओ!” उन्होंने पता लगाकर उत्तर दिया, “पांच—और इनके अलावा दो मछलियां भी.” मसीह येशु ने सभी लोगों को झुंड़ों में हरी घास पर बैठ जाने की आज्ञा दी. वे सभी सौ-सौ और पचास-पचास के झुंडों में बैठ गए. मसीह येशु ने वे पांच रोटियां और दो मछलियां लेकर स्वर्ग की ओर आंखें उठाकर उनके लिए धन्यवाद प्रकट किया. तब वह रोटियां तोड़ते और शिष्यों को देते गए कि वे उन्हें भीड़ में बांटते जाएं. इसके साथ उन्होंने वे दो मछलियां भी उनमें बांट दीं. सभी ने भरपेट खाया. शिष्यों ने शेष रह गए रोटियों तथा मछलियों के टुकड़े इकट्ठा किए तो बारह टोकरे भर गए. जिन्होंने भोजन किया था, उनमें पुरुष ही पांच हज़ार थे. तुरंत ही मसीह येशु ने शिष्यों को जबरन नाव पर बैठा उन्हें अपने से पहले दूसरे किनारे पर स्थित नगर बैथसैदा पहुंचने के लिए विदा किया—वह स्वयं भीड़ को विदा कर रहे थे. उन्हें विदा करने के बाद वह प्रार्थना के लिए पर्वत पर चले गए. रात हो चुकी थी. नाव झील के मध्य में थी. मसीह येशु किनारे पर अकेले थे. मसीह येशु देख रहे थे कि हवा उल्टी दिशा में चलने के कारण शिष्यों को नाव खेने में कठिन प्रयास करना पड़ रहा था. रात के चौथे प्रहर मसीह येशु झील की सतह पर चलते हुए उनके पास जा पहुंचे और ऐसा अहसास हुआ कि वह उनसे आगे निकलना चाह रहे थे. उन्हें जल सतह पर चलता देख शिष्य समझे कि कोई दुष्टात्मा है और वे चिल्ला उठे क्योंकि उन्हें देख वे भयभीत हो गए थे. इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं हूं! मत डरो! साहस मत छोड़ो!” यह कहते हुए वह उनकी नाव में चढ़ गए और वायु थम गई. शिष्य इससे अत्यंत चकित रह गए. रोटियों की घटना अब तक उनकी समझ से परे थी. उनके हृदय निर्बुद्धि जैसे हो गए थे. झील पार कर वे गन्‍नेसरत प्रदेश में पहुंच गए. उन्होंने नाव वहीं लगा दी. मसीह येशु के नाव से उतरते ही लोगों ने उन्हें पहचान लिया. जहां कहीं भी मसीह येशु होते थे, लोग दौड़-दौड़ कर बिछौनों पर रोगियों को वहां ले आते थे. मसीह येशु जिस किसी नगर, गांव या बाहरी क्षेत्र में प्रवेश करते थे, लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थलों में लिटा कर उनसे विनती करते थे कि उन्हें उनके वस्त्र के छोर का स्पर्श मात्र ही कर लेने दें. जो कोई उनके वस्त्र का स्पर्श कर लेता था, स्वस्थ हो जाता था.