मारकुस 6:1-56

मारकुस 6:1-56 HINCLBSI

येशु वहाँ से चले गए और अपने नगर में आए। उनके शिष्‍य भी उनके साथ गए। वह विश्राम-दिवस पर सभागृह में शिक्षा देने लगे। बहुत-से लोगों ने सुना तो वे अचम्‍भे में पड़ कर कहने लगे, “यह सब इसे कहाँ से मिला? यह कौन-सी बुद्धि है, जो इसे दी गई है? यह कौन-सी शक्‍ति है, जिससे यह ऐसे आश्‍चर्यपूर्ण कार्य करता है? क्‍या यह वही बढ़ई नहीं है जो मरियम का पुत्र और याकूब, योसेस, यहूदा और शिमोन का भाई है? क्‍या इसकी बहिनें हमारे बीच नहीं रहती हैं?” इस प्रकार लोगों को येशु के विषय में भ्रम हो गया। येशु ने उन से कहा, “अपने नगर, अपने कुटुम्‍ब और अपने घर को छोड़कर नबी का अपमान कहीं नहीं होता।” वहाँ वह कोई सामर्थ्य का कार्य नहीं कर सके। उन्‍होंने केवल कुछ रोगियों पर हाथ रख कर उन्‍हें स्‍वस्‍थ किया। उन लोगों के अविश्‍वास पर येशु को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। येशु शिक्षा देते हुए गाँव-गाँव में भ्रमण कर रहे थे। उन्‍होंने बारहों प्रेरितों को अपने पास बुलाया, और उन्‍हें अशुद्ध आत्‍माओं पर अधिकार देकर वह उन्‍हें दो-दो करके भेजने लगे। येशु ने आदेश दिया कि वे लाठी के अतिरिक्‍त मार्ग के लिए कुछ भी नहीं ले जाएँ−न रोटी, न झोली, न फेंटे में पैसा। वे पैरों में चप्‍पल पहिन सकते हैं, परन्‍तु दो कुरते नहीं पहिनें। उन्‍होंने उन से कहा, “जहाँ कहीं तुम किसी घर में प्रवेश करो, तो उस स्‍थान से विदा होने तक वहीं रहो। यदि किसी स्‍थान पर लोग तुम्‍हारा स्‍वागत न करें और तुम्‍हारी बातें न सुनें, तो वहाँ से निकलने पर उनके विरुद्ध प्रमाण के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।” वे चले गये। उन्‍होंने लोगों को पश्‍चात्ताप का संदेश सुनाया, बहुत-से भूतों को निकाला और अनेक रोगियों पर तेल मल कर उन्‍हें स्‍वस्‍थ किया। राजा हेरोदेस ने येशु की चर्चा सुनी, क्‍योंकि उनका नाम प्रसिद्ध हो गया था। लोग कहते थे, “योहन बपतिस्‍मादाता मृतकों में से जी उठे हैं, इसलिए उनमें ये चमत्‍कारिक शक्‍तियाँ क्रियाशील हैं।” कुछ लोग कहते थे, “यह नबी एलियाह हैं।” अन्‍य लोग कहते थे, “यह नबियों की तरह ही कोई नबी हैं।” हेरोदेस ने यह सब सुन कर कहा, “यह योहन ही है, जिसका सिर मैंने कटवाया था। वह जी उठा है।” हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप की पत्‍नी हेरोदियस के कारण सिपाही भेजकर योहन को गिरफ्‍तार किया और बन्‍दीगृह में डाल दिया था। हेरोदेस ने हेरोदियस से विवाह कर लिया था। क्‍योंकि योहन ने हेरोदेस से कहा था, “अपने भाई की पत्‍नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है”, इस कारण हेरोदियस योहन से बैर करती थी और उसे मार डालना चाहती थी; किन्‍तु वह ऐसा नहीं कर पाती थी, क्‍योंकि हेरोदेस योहन को धर्मात्‍मा और पवित्र पुरुष जान कर उनसे डरता था और उनकी रक्षा करता था। हेरोदेस उनके उपदेश सुन कर बड़े असमंजस में पड़ जाता था। फिर भी, वह उनकी बातें आनन्‍द से सुनता था। हेरोदेस के जन्‍मदिवस पर हेरोदियस को एक सुअवसर मिला। अपने जन्‍मदिवस के उपलक्ष्य में हेरोदेस ने अपने दरबारियों, सेनापतियों और गलील प्रदेश के प्रतिष्‍ठित व्यक्‍तियों को भोज दिया। उस अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अन्‍दर आ कर नृत्‍य किया और हेरोदेस तथा उसके अतिथियों को मुग्‍ध कर लिया। राजा ने लड़की से कहा, “जो भी चाहो, मुझ से माँगो। मैं तुम्‍हें दे दूँगा”, और उसने बार-बार शपथ खा कर कहा, “जो भी माँगो, चाहे मेरा आधा राज्‍य ही क्‍यों न हो, मैं तुम्‍हें दे दूँगा।” लड़की ने बाहर जा कर अपनी माँ से पूछा, “मैं क्‍या माँगूं?” उसने कहा, “योहन बपतिस्‍मादाता का सिर।” वह तुरन्‍त राजा के पास दौड़ती हुई आयी और बोली, “मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय एक थाल में योहन बपतिस्‍मादाता का सिर दे दें।” राजा को धक्‍का लगा, परन्‍तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण वह उसकी माँग अस्‍वीकार करना नहीं चाहता था। राजा ने तुरन्‍त जल्‍लाद को भेज कर योहन का सिर ले आने का आदेश दिया। वह गया। उस ने बन्‍दीगृह में उनका सिर काटा और उसे थाल में ला कर लड़की को दिया और लड़की ने उसे अपनी माँ को दे दिया। जब योहन के शिष्‍यों को इसका पता चला, तो वे आ कर उनका शव ले गये और उन्‍होंने उसे कबर में रख दिया। प्रेरित लौट कर येशु के पास एकत्र हुए। उन्‍होंने येशु को वह सब कुछ बताया कि हम लोगों ने क्‍या-क्‍या किया और क्‍या-क्‍या सिखाया है। तब येशु ने उनसे कहा, “तुम लोग अकेले ही मेरे साथ निर्जन स्‍थान में चलो और थोड़ा विश्राम कर लो”; क्‍योंकि इतने लोग आया-जाया करते थे कि उन्‍हें भोजन करने की भी फुरसत नहीं रहती थी। इसलिए वे नाव पर चढ़ कर निर्जन स्‍थान की ओर एकांत में चले गए। बहुत लोगों ने उन्‍हें जाते हुए देखा, और वे उन्‍हें पहचान गए। वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उधर दौड़ पड़े और उन से पहले ही वहाँ पहुँच गये। येशु ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा। उन्‍हें उन लोगों पर तरस आया, क्‍योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वे उन्‍हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे। जब दिन बहुत ढल गया, तो येशु के शिष्‍यों ने उनके पास आ कर कहा, “यह स्‍थान निर्जन है और दिन बहुत ढल चुका है। लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे आसपास की बस्‍तियों और गाँवों में जा कर अपने भोजन के लिए कुछ खरीद लें।” येशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, “तुम लोग ही उन्‍हें भोजन दो।” शिष्‍यों ने कहा, “क्‍या हम जा कर दो सौ चाँदी के सिक्‍कों की रोटियाँ खरीद कर लाएँ और उन्‍हें लोगों को खाने को दें?” येशु ने पूछा, “तुम्‍हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? जा कर देखो।” उन्‍होंने पता लगा कर कहा, “पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ।” इस पर येशु ने सब को अलग-अलग समूह में हरी घास पर बैठाने का आदेश दिया। लोग सौ-सौ और पचास-पचास के झुंड में बैठ गये। येशु ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की ओर आँखें उठा कर आशिष माँगी। उन्‍होंने रोटियाँ तोड़ीं और शिष्‍यों को दीं, ताकि वे लोगों को परोसते जाएँ। उन्‍होंने उन दो मछलियों को भी सब में बाँट दिया। सब ने खाया और खा कर तृप्‍त हो गये। शिष्‍यों ने रोटी के टुकड़ों और मछलियों से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाईं। रोटी खाने वाले पुरुषों की संख्‍या पाँच हजार थी। इसके तुरन्‍त बाद येशु ने अपने शिष्‍यों को इसके लिए बाध्‍य किया कि वे नाव पर चढ़कर उन से पहले उस पार, बेतसैदा गाँव चले जाएँ। इतने में वह स्‍वयं लोगों को विदा कर देंगे। तब येशु उन्‍हें विदा कर पहाड़ी पर प्रार्थना करने चले गये। सन्‍ध्‍या हो गयी थी। नाव झील के बीच में थी और येशु अकेले स्‍थल पर थे। येशु ने देखा कि शिष्‍य बड़ी कठिनाई से नाव खे रहे हैं, क्‍योंकि वायु प्रतिकूल थी। इसलिए वे रात के लगभग चौथे पहर झील पर चलते हुए उनकी ओर आए। वह उनसे कतरा कर आगे निकल जाना चाहते थे। शिष्‍यों ने उन्‍हें झील पर चलते देखा। वे उन्‍हें प्रेत समझ कर चिल्‍ला उठे, क्‍योंकि सब-के-सब उन्‍हें देख कर घबरा गये थे। पर येशु तुरन्‍त उनसे बोले, “धैर्य रखो, मैं हूँ। डरो मत।” तब वह उनके पास आ कर नाव पर चढ़े और वायु थम गयी। शिष्‍य आश्‍चर्य-चकित रह गये, क्‍योंकि वे रोटियों से संबंधित घटना नहीं समझ पाए थे। उनका हृदय कठोर हो गया था। वे झील को पार कर गिनेसरेत के सीमा-क्षेत्र में पहुँचे। उन्‍होंने नाव किनारे लगा दी। ज्‍यों ही वे भूमि पर उतरे, लोगों ने येशु को पहचान लिया। वे उस सारे प्रदेश में दौड़ गए, और जहाँ-जहाँ उन्‍होंने सुना कि वह हैं, वहाँ वे चारपाइयों पर पड़े रोगियों को उनके पास लाने लगे। गाँव, नगर या बस्‍ती, जहाँ कहीं भी येशु आते, वहाँ लोग रोगियों को सार्वजनिक स्‍थानों पर रख कर उनसे अनुनय-विनय करते थे कि वह उन्‍हें अपने वस्‍त्र का सिरा ही छूने दें। जितनों ने उनका स्‍पर्श किया, वे सब-के-सब स्‍वस्‍थ्‍य हो गये।