प्रेरितों 27:1-26

प्रेरितों 27:1-26 पवित्र बाइबल (HERV)

जब यह निश्चय हो गया कि हमें जहाज़ से इटली जाना है तो पौलुस तथा कुछ दूसरे बंदियों को सम्राट की सेना के यूलियस नाम के एक सेनानायक को सौंप दिया गया। अद्रमुत्तियुम से हम एक जहाज़ पर चढ़े जो एशिया के तटीय क्षेत्रों से हो कर जाने वाला था और समुद्र यात्रा पर निकल पड़े। थिस्सलुनीके निवासी एक मकदूनी, जिसका नाम अरिस्तर्खुस था, भी हमारे साथ था। अगले दिन हम सैदा में उतरे। वहाँ यूलियस ने पौलुस के साथ अच्छा व्यवहार किया और उसे उसके मित्रों का स्वागत सत्कार ग्रहण करने के लिए उनके यहाँ जाने की अनुमति दे दी। वहाँ से हम समुद्र-मार्ग से फिर चल पड़े। हम साइप्रस की आड़ लेकर चल रहे थे क्योंकि हवाएँ हमारे प्रतिकूल थीं। फिर हम किलिकिया और पंफूलिया के सागर को पार करते हुए लुकिया और मीरा पहुँचे। वहाँ सेनानायक को सिकन्दरिया का इटली जाने वाला एक जहाज़ मिला। उसने हमें उस पर चढ़ा दिया। कई दिन तक हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बड़ी कठिनाई के साथ कनिदुस के सामने पहुँचे क्योंकि हवा हमें अपने मार्ग पर नहीं बने रहने दे रही थी, सो हम सलभौने के सामने से क्रीत की ओट में अपनी नाव बढ़ाने लगे। क्रीत के किनारे-किनारे बड़ी कठिनाई से नाव को आगे बढ़ाते हुए हम एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जिसका नाम था सुरक्षित बंदरगाह। यहाँ से लसेआ नगर पास ही था। समय बहुत बीत चुका था और नाव को आगे बढ़ाना भी संकटपूर्ण था क्योंकि तब तक उपवास का दिन समाप्त हो चुका था इसलिए पौलुस ने चेतावनी देते हुए उनसे कहा, “हे पुरुषो, मुझे लगता है कि हमारी यह सागर-यात्रा विनाशकारी होगी, न केवल माल असबाब और जहाज़ के लिए बल्कि हमारे प्राणों के लिये भी।” किन्तु पौलुस ने जो कहा था, उस पर कान देने के बजाय उस सेनानायक ने जहाज़ के मालिक और कप्तान की बातों का अधिक विश्वास किया। और वह बन्दरगाह शीत ऋतु के अनुकूल नहीं था, इसलिए अधिकतर लोगों ने, यदि हो सके तो फिनिक्स पहुँचने का प्रयत्न करने की ही ठानी। और सर्दी वहीं बिताने का निश्चय किया। फिनिक्स क्रीत का एक ऐसा बन्दरगाह है जिसका मुख दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दोनों के ही सामने पड़ता है। जब दक्षिणी पवन हौले-हौले बहने लगा तो उन्होंने सोचा कि जैसा उन्होंने चाहा था, वैसा उन्हें मिल गया है। सो उन्होंने लंगर उठा लिया और क्रीत के किनारे-किनारे जहाज़ बढ़ाने लगे। किन्तु अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था कि द्वीप की ओर से एक भीषण आँधी उठी और आरपार लपेटती चली गयी। यह “उत्तर पूर्वी” आँधी कहलाती थी। जहाज़ तूफान में घिर गया। वह आँधी को चीर कर आगे नहीं बढ़ पा रहा था सो हमने उसे यों ही छोड़ कर हवा के रूख बहने दिया। हम क्लोदा नाम के एक छोटे से द्वीप की ओट में बहते हुए बड़ी कठिनाई से रक्षा नौकाओं को पा सके। फिर रक्षा-नौकाओं को उठाने के बाद जहाज़ को रस्सों से लपेट कर बाँध दिया गया और कहीं सुरतिस के उथले पानी में फँस न जायें, इस डर से उन्होंने पालें उतार दीं और जहाज़ को बहने दिया। दूसरे दिन तूफान के घातक थपेड़े खाते हुए वे जहाज़ से माल-असबाब बाहर फेंकने लगे। और तीसरे दिन उन्होंने अपने ही हाथों से जहाज़ पर रखे उपकरण फेंक दिये। फिर बहुत दिनों तक जब न सूरज दिखाई दिया, न तारे और तूफान अपने घातक थपेड़े मारता ही रहा तो हमारे बच पाने की आशा पूरी तरह जाती रही। बहुत दिनों से किसी ने भी कुछ खाया नहीं था। तब पौलुस ने उनके बीच खड़े होकर कहा, “हे पुरुषो यदि क्रीत से रवाना न होने की मेरी सलाह तुमने मानी होती तो तुम इस विनाश और हानि से बच जाते। किन्तु मैं तुमसे अब भी आग्रह करता हूँ कि अपनी हिम्मत बाँधे रखो। क्योंकि तुममें से किसी को भी अपने प्राण नहीं खोने हैं। हाँ! बस यह जहाज़ नष्ट हो जायेगा, क्योंकि पिछली रात उस परमेश्वर का एक स्वर्गदूत, जिसका मैं हूँ और जिसकी मैं सेवा करता हूँ, मेरे पास आकर खड़ा हुआ और बोला, ‘पौलुस डर मत। तुझे निश्चय ही कैसर के सामने खड़ा होना है और उन सब को जो तेरे साथ यात्रा कर रहे हैं, परमेश्वर ने तुझे दे दिया है।’ सो लोगो! अपना साहस बनाये रखो क्योंकि परमेश्वर में मेरा विश्वास है, इसलिये जैसा मुझे बताया गया है, ठीक वैसा ही होगा। किन्तु हम किसी टापू के उथले पानी में अवश्य जा फँसेगें।”

प्रेरितों 27:1-26 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

जब यह निश्‍चित हो गया कि हम जलमार्ग से इटली जायेंगे, तो पौलुस और कुछ अन्‍य बन्‍दियों को यूलियुस नामक शतपति के हाथ सौंप दिया गया। यूलियुस सम्राट औगुस्‍तुस के सैन्‍यदल का था। हम आसिया प्रदेश के बन्‍दरगाहों को जाने वाले अद्रमुत्तियुम नगर के एक जहाज पर सवार हो कर रवाना हो गये। मकिदुनिया देश के थिस्‍सलुनीके नगर का रहने वाला अरिस्‍तर्खुस नामक एक विश्‍वासी भी हमारे साथ था। दूसरे दिन हमने सीदोन में लंगर डाला। यहां यूलियुस ने पौलुस के प्रति उदारता दिखाई और उसने पौलुस को मित्रों के यहां जाने तथा उनकी सहायता स्‍वीकार करने की अनुमति दे दी। वहां से लंगर उठाकर हम कुप्रुस द्वीप के किनारे-किनारे हो कर चले, क्‍योंकि हवा प्रतिकूल थी। इसके बाद हम किलिकिया तथा पंफुलिया के तटवर्ती सागर को पार कर लुकिया के मुरा नामक बन्‍दरगाह पर पहुंचे। वहाँ शतपति को सिकन्‍दरिया का एक जलयान मिला, जो इटली जाने वाला था और उसने हम को उस पर चढ़ा दिया। हम कई दिनों तक धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए कठिनाई से क्‍नीदुस पहुँचे। अब हवा हमें आगे बढ़ने से रोक रही थी; इसलिए हम सलमोने अन्‍तरीप के सामने से गुज़र कर क्रेते द्वीप के किनारे-किनारे चलते हुए, कठिनाई से ‘सुन्‍दर बन्‍दरगाह’ नामक स्‍थान पर पहुँचे, जो लसैया नगर के निकट था। बहुत समय बीत चुका था और समुद्री यात्रा अब ख़तरनाक हो गयी थी। शरतकालीन उपवास का दिन भी बीत चुका था, इसलिए पौलुस ने लोगों को यह सलाह दी, “सज्‍जनो! मुझे लग रहा है कि यह यात्रा संकटमय होगी। हमें न केवल माल और जलयान की हानि उठानी पड़ेगी, बल्‍कि अपने प्राणों की भी।” किन्‍तु शतपति ने पौलुस की बातों की अपेक्षा कप्‍तान और जलयान के मालिक की बात पर अधिक ध्‍यान दिया। वह बन्‍दरगाह शीत-ऋतु बिताने के लिए उपयुक्‍त नहीं था, इसलिए अधिकांश लोग वहाँ से चल देने के पक्ष में थे। उन्‍हें किसी-न-किसी तरह फीनिक्‍स तक पहुँचने और वहाँ शीत-ऋतु बिताने की आशा थी। फीनिक्‍स क्रेते द्वीप का बन्‍दरगाह है, जो दक्षिण-पश्‍चिम और उत्तर-पश्‍चिम की ओर खुला हुआ है। जब दक्षिणी हवा मन्‍द-मन्‍द बहने लगी, तो वे समझे कि हमारा काम बन गया है। उन्‍होंने लंगर उठाया और क्रेते के समीप से गुजरने का प्रयत्‍न किया। परन्‍तु शीघ्र ही स्‍थल की ओर से ‘उत्तरपूर्वी’ नामक तूफ़ानी हवा बहने लगी। जलयान तूफ़ान की चपेट में आ कर हवा का सामना करने में असमर्थ हो गया, इसलिए हम विवश हो कर बहते चले जा रहे थे। कौदा नामक छोटे टापू की आड़ में पहुँच कर हम किसी तरह जलयान की डोंगी पर नियन्‍त्रण कर पाये। उन्‍होंने उसे ऊपर खींचा और जलयान को नीचे से ले कर ऊपर तक रस्‍सों से कस कर बाँध दिया। सूरतिस के उथले जल में फँस जाने के भय से उन्‍होंने पाल उतार कर जलयान को धारा के साथ बहने दिया। दूसरे दिन तूफ़ान हमें ज़ोरों से झकझोरता रहा, इसलिए वे जलयान का माल समुद्र में फेंकने लगे। तीसरे दिन उन्‍होंने अपने हाथों से जलयान का साज-सामान भी फेंक दिया। जब कई दिन तक न तो सूरज दिखाई पड़ा और न तारे ही, और तूफानी हवा वेग से बहती रही, तो हमारे बच जाने की आशा भी समाप्‍त हो गयी। वे बहुत समय से कुछ भी नहीं खा रहे थे, इसलिए पौलुस ने उनके बीच खड़ा हो कर कहा, “सज्‍जनो! उचित तो यह था कि आप लोग मेरी बात पर ध्‍यान देते और क्रेते से प्रस्‍थान नहीं करते। तब आप को न तो यह संकट सहना पड़ता और न यह हानि उठानी पड़ती। फिर भी मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि आप धैर्य रखें। आप में से किसी का जीवन नहीं, केवल जलयान नष्‍ट होगा; क्‍योंकि मैं जिस परमेश्‍वर का सेवक तथा उपासक हूँ, उसके दूत ने आज रात मेरे समीप खड़े होकर मुझ से कहा, ‘पौलुस, डरिए नहीं। आप को रोमन सम्राट के सामने उपस्‍थित होना ही है। और देखिए, परमेश्‍वर ने आपके सब सहयात्री आपको दे दिये हैं।’ इसलिए सज्‍जनो! धैर्य रखिए। मुझे परमेश्‍वर पर विश्‍वास है कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा : हम अवश्‍य किसी द्वीप से जा लगेंगे।”

प्रेरितों 27:1-26 Hindi Holy Bible (HHBD)

जब यह ठहराया गया, कि हम जहाज पर इतालिया को जाएं, तो उन्होंने पौलुस और कितने और बन्धुओं को भी यूलियुस नाम औगुस्तुस की पलटन के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। और अद्रमुत्तियुम के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हम ने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नाम थिस्सलुनीके का एक मकिदूनी हमारे साथ था। दूसरे दिन हम ने सैदा में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहां जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। वहां से जहाज खोलकर हवा विरूद्ध होने के कारण हम कुप्रुस की आड़ में होकर चले। और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया के मूरा में उतरे। वहां सूबेदार को सिकन्दिरया का एक जहाज इतालिया जाता हुआ मिला, और उस ने हमें उस पर चढ़ा दिया। और जब हम बहुत दिनों तक धीरे धीरे चलकर कठिनता से कनिदुस के साम्हने पहुंचे, तो इसलिये कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, सलमोने के साम्हने से होकर क्रेते की आड़ में चले। और उसके किनारे किनारे कठिनता से चलकर शुभ लंगरबारी नाम एक जगह पहुंचे, जहां से लसया नगर निकट था॥ जब बहुत दिन बीत गए, और जल यात्रा में जोखिम इसलिये होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर समझाया। कि हे सज्ज़नो मुझे ऐसा जान पड़ता है, कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि न केवल माल और जहाज की वरन हमारे प्राणों की भी होने वाली है। परन्तु सूबेदार ने पौलुस की बातों से मांझी और जहाज के स्वामी की बढ़कर मानी। और वह बन्दर स्थान जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था; इसलिये बहुतों का विचार हुआ, कि वहां से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके, तो फीनिक्स में पहुंचकर जाड़ा काटें: यह तो क्रेते का एक बन्दर स्थान है जो दक्खिन-पच्छिम और उत्तर-पच्छिम की ओर खुलता है। जब कुछ कुछ दक्खिनी हवा बहने लगी, तो यह समझकर कि हमारा मतलब पूरा हो गया, लंगर उठाया और किनारा धरे हुए क्रेते के पास से जाने लगे। परन्तु थोड़ी देर में वहां से एक बड़ी आंधी उठी, जो यूरकुलीन कहलाती है। जब यह जहाज पर लगी, तब वह हवा के साम्हने ठहर न सका, सो हम ने उसे बहने दिया, और इसी तरह बहते हुए चले गए। तब कौदा नाम एक छोटे से टापू की आड़ में बहते बहते हम कठिनता से डोंगी को वश मे कर सके। मल्लाहों ने उसे उठाकर, अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बान्धा, और सुरितस के चोरबालू पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर, बहते हुए चले गए। और जब हम ने आंधी से बहुत हिचकोले और धक्के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे। और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का सामान फेंक दिया। और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का सामान फेंक दिया। और जब बहुत दिनों तक न सूर्य न तारे दिखाई दिए, और बड़ी आंधी चल रही थी, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही। जब वे बहुत उपवास कर चुके, तो पौलुस ने उन के बीच में खड़ा होकर कहा; हे लोगो, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर, क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत और हानि उठाते। परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूं, कि ढाढ़स बान्धो; क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, केवल जहाज की। क्योंकि परमेश्वर जिस का मैं हूं, और जिस की सेवा करता हूं, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा। हे पौलुस, मत डर; तुझे कैसर के साम्हने खड़ा होना अवश्य है: और देख, परमेश्वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है। इसलिये, हे सज्ज़नों ढाढ़स बान्धो; क्योंकि मैं परमेश्वर की प्रतीति करता हूं, कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा। परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा॥

प्रेरितों 27:1-26 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

जब यह निश्‍चित हो गया कि हम जहाज द्वारा इटली जाएँ, तो उन्होंने पौलुस और कुछ अन्य बन्दियों को भी यूलियुस नामक औगुस्तुस की पलटन के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। अद्रमुत्तियुम के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हम ने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नामक थिस्सलुनीके का एक मकिदूनी हमारे साथ था। दूसरे दिन हम ने सैदा में लंगर डाला, और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहाँ जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। वहाँ से जहाज खोलकर हवा विरुद्ध होने के कारण हम साइप्रस की आड़ में होकर चले; और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया के मूरा में उतरे। वहाँ सूबेदार को सिकन्दरिया का एक जहाज इटली जाता हुआ मिला, और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया। जब हम बहुत दिनों तक धीरे–धीरे चलकर कठिनाई से कनिदुस के सामने पहुँचे, तो इसलिये कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले; और उसके किनारे–किनारे कठिनाई से चलकर ‘शुभलंगरबारी’ नामक एक जगह पहुँचे, जहाँ से लसया नगर निकट था। जब बहुत दिन बीत गए और जलयात्रा में जोखिम इसलिये होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे। अत: पौलुस ने उन्हें यह कहकर समझाया, “हे सज्जनो, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि, न केवल माल और जहाज की वरन् हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।” परन्तु सूबेदार ने पौलुस की बातों से कप्‍तान और जहाज के स्वामी की बातों को बढ़कर माना। वह बन्दरगाह जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था, इसलिये बहुतों का विचार हुआ कि वहाँ से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके तो फीनिक्स पहुँचकर जाड़ा काटें। यह तो क्रेते का एक बन्दरगाह है जो दक्षिण–पश्‍चिम और उत्तर–पश्‍चिम की ओर खुलता है। जब कुछ–कुछ दक्षिणी हवा बहने लगी, तो यह समझकर कि हमारा अभिप्राय पूरा हो गया, लंगर उठाया और किनारा धरे हुए क्रेते के पास से जाने लगे। परन्तु थोड़ी देर में जमीन की ओर से एक बड़ी आँधी उठी, जो ‘यूरकुलीन’ कहलाती है। जब आँधी जहाज पर लगी तो वह उसके सामने ठहर न सका, अत: हम ने उसे बहने दिया और इसी तरह बहते हुए चले गए। तब कौदा नामक एक छोटे से टापू की आड़ में बहते बहते हम कठिनाई से डोंगी को वश में कर सके। फिर मल्‍लाहों ने उसे उठाकर अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बाँधा, और सुरतिस के चोरबालू पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर बहते हुए चले गए। जब हम ने आँधी से बहुत हिचकोले और धक्‍के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे; और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का साज़–सामान भी फेंक दिया। जब बहुत दिनों तक न सूर्य, न तारे दिखाई दिए और बड़ी आँधी चलती रही, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही। जब वे बहुत दिन तक भूखे रह चुके, तो पौलुस ने उनके बीच में खड़े होकर कहा, “हे लोगो, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत्ति आती और न यह हानि उठाते। परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूँ कि ढाढ़स बाँधो, क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, पर केवल जहाज की। क्योंकि परमेश्‍वर जिसका मैं हूँ, और जिसकी सेवा करता हूँ, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा, ‘हे पौलुस, मत डर! तुझे कैसर के सामने खड़ा होना अवश्य है। देख, परमेश्‍वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है।’ इसलिये, हे सज्जनो, ढाढ़स बाँधो; क्योंकि मैं परमेश्‍वर का विश्‍वास करता हूँ, कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा। परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा।”

प्रेरितों 27:1-26 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

जब यह निश्चित हो गया कि हम जहाज द्वारा इतालिया जाएँ, तो उन्होंने पौलुस और कुछ अन्य बन्दियों को भी यूलियुस नामक औगुस्तुस की सैन्य-दल के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। अद्रमुत्तियुम के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हमने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नामक थिस्सलुनीके का एक मकिदुनी हमारे साथ था। दूसरे दिन हमने सीदोन में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहाँ जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। वहाँ से जहाज खोलकर हवा विरुद्ध होने के कारण हम साइप्रस की आड़ में होकर चले; और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया के मूरा में उतरे। वहाँ सूबेदार को सिकन्दरिया का एक जहाज इतालिया जाता हुआ मिला, और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया। जब हम बहुत दिनों तक धीरे धीरे चलकर कठिनता से कनिदुस के सामने पहुँचे, तो इसलिए कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले; और उसके किनारे-किनारे कठिनता से चलकर ‘शुभलंगरबारी’ नामक एक जगह पहुँचे, जहाँ से लसया नगर निकट था। जब बहुत दिन बीत गए, और जलयात्रा में जोखिम इसलिए होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर चेतावनी दी, “हे सज्जनों, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि, न केवल माल और जहाज की वरन् हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।” परन्तु सूबेदार ने कप्ता‍न और जहाज के स्वामी की बातों को पौलुस की बातों से बढ़कर माना। वह बन्दरगाह जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था; इसलिए बहुतों का विचार हुआ कि वहाँ से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके तो फीनिक्स में पहुँचकर जाड़ा काटें। यह तो क्रेते का एक बन्दरगाह है जो दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर खुलता है। जब दक्षिणी हवा बहने लगी, तो उन्होंने सोचा कि उन्हें जिसकी जरूरत थी वह उनके पास थी, इसलिए लंगर उठाया और किनारे के किनारे, समुद्र तट के पास चल दिए। परन्तु थोड़ी देर में जमीन की ओर से एक बड़ी आँधी उठी, जो ‘यूरकुलीन’ कहलाती है। जब आँधी जहाज पर लगी, तब वह हवा के सामने ठहर न सका, अतः हमने उसे बहने दिया, और इसी तरह बहते हुए चले गए। तब कौदा नामक एक छोटे से टापू की आड़ में बहते-बहते हम कठिनता से डोंगी को वश में कर सके। फिर मल्लाहों ने उसे उठाकर, अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बाँधा, और सुरतिस के रेत पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर बहते हुए चले गए। और जब हमने आँधी से बहुत हिचकोले और धक्के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे; और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का साज-सामान भी फेंक दिया। और जब बहुत दिनों तक न सूर्य न तारे दिखाई दिए, और बड़ी आँधी चल रही थी, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही। जब वे बहुत दिन तक भूखे रह चुके, तो पौलुस ने उनके बीच में खड़ा होकर कहा, “हे लोगों, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर, क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत्ति आती और न यह हानि उठाते। परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूँ कि ढाढ़स बाँधो, क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, पर केवल जहाज की। क्योंकि परमेश्वर जिसका मैं हूँ, और जिसकी सेवा करता हूँ, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा, ‘हे पौलुस, मत डर! तुझे कैसर के सामने खड़ा होना अवश्य है। और देख, परमेश्वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है।’ इसलिए, हे सज्जनों, ढाढ़स बाँधो; क्योंकि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, कि जैसा मुझसे कहा गया है, वैसा ही होगा। परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा।”

प्रेरितों 27:1-26 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

जब यह तय हो गया कि हमें जलमार्ग से इतालिया जाना है तो उन्होंने पौलॉस तथा कुछ अन्य बंदियों को राजकीय सैन्य दल के यूलियुस नामक शताधिपति को सौंप दिया. हम सब आद्रामुत्तेयुम नगर के एक जलयान पर सवार हुए, जो आसिया प्रदेश के समुद्र के किनारे के नगरों से होते हुए जाने के लिए तैयार था. जलमार्ग द्वारा हमारी यात्रा शुरू हुई. आरिस्तारख़ॉस भी हमारा साथी यात्री था, जो मकेदोनिया प्रदेश के थेस्सलोनिकेयुस नगर का वासी था. अगले दिन हम सीदोन नगर पहुंच गए. भले दिल से यूलियुस ने पौलॉस को नगर में जाकर अपने प्रियजनों से मिलने और उनसे आवश्यक वस्तुएं ले आने की आज्ञा दे दी. वहां से हमने यात्रा दोबारा शुरू की और उल्टी हवा बहने के कारण हमें सैप्रस द्वीप की ओट से आगे बढ़ना पड़ा. जब हम समुद्र में यात्रा करते हुए किलिकिया और पम्फ़ूलिया नगरों के तट से होते हुए लुकिया के मूरा नगर पहुंचे. वहां शताधिपति को यह मालूम हुआ कि अलेक्सान्द्रिया का एक जलयान इतालिया देश जाने के लिए तैयार खड़ा है. इसलिये उसने हमें उसी पर सवार करवा दिया. हमें धीमी गति से यात्रा करते अनेक दिन हो गए थे. हमारा क्नीदॉस नगर पहुंचना कठिन हो गया क्योंकि उल्टी हवा चल रही थी. इसलिये हम सालमोने के सामने वाला क्रेते द्वीप के पास से होते हुए आगे बढ़ गए. बड़ी कठिनाई में उसके पास से होते हुए हम एक स्थान पर पहुंचे जिसका नाम था कालॉस लिमेनस अर्थात् मनोरम बंदरगाह. लासिया नगर इसी के पास स्थित है. बहुत अधिक समय खराब हो चुका था. हमारी जल-यात्रा खतरे से भर गई थी, क्योंकि सर्दी के मौसम में तय किया हुआ प्रायश्चित बलि दिवस बीत चुका था. इसलिये पौलॉस ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा, “मुझे साफ़ दिखाई दे रहा है कि हमारी यह यात्रा हानिकारक है. इसके कारण जलयान व सामान की ही नहीं परंतु स्वयं हमारे जीवनों की घोर हानि होने पर है.” किंतु शताधिपति ने पौलॉस की चेतावनी की अनसुनी कर जलयान चालक तथा जलयान स्वामी का सुझाव स्वीकार कर लिया. ठंड के दिनों में यह बंदरगाह इस योग्य नहीं रह जाता था कि इसमें ठहरा जाए. इसलिये बहुमत था कि आगे बढ़ा जाए. उन्होंने इस आशा में यात्रा शुरू कर दी कि किसी प्रकार ठंड शुरू होने के पहले फ़ॉयनिके नगर तो पहुंच ही जाएंगे. यह क्रेते द्वीप का बंदरगाह था, जिसका द्वार दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दिशा में है. जब सामान्य दक्षिण वायु बहने लगी, उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्‍ति हो गई है. इसलिये उन्होंने लंगर उठा लिया और क्रेते द्वीप के किनारे समुद्र से होते हुए आगे बढ़े. वे अभी अधिक दूर न जा पाए थे कि यूराकिलो नामक भयंकर चक्रवाती हवा बहने लगी और जलयान इसकी चपेट में आ गया. वह इस तेज हवा के थपेड़ों का सामना करने में असमर्थ था. इसलिये हमने यान को इसी हवा के बहाव में छोड़ दिया और हवा के साथ बहने लगे. कौदा नामक एक छोटे द्वीप की ओर हवा के बहाव में बहते हुए हम बड़ी कठिनाई से जीवनरक्षक नाव को जलयान से बांध पाए. उन्होंने जलयान को पेंदे से लेकर ऊपर तक रस्सों द्वारा अच्छी रीति से कस दिया और इस आशंका से कि कहीं उनका जलयान सिर्तिस के उथले समुद्र की रेत में फंस न जाए, उन्होंने लंगर को थोड़ा नीचे उतारकर जलयान को हवा के बहाव के साथ साथ बहने के लिए छोड़ दिया. अगले दिन तेज लहरों और भयंकर आंधी के थपेड़ों के कारण उन्होंने यान में लदा हुआ सामान फेंकना शुरू कर दिया. तीसरे दिन वे अपने ही हाथों से जलयान के भारी उपकरणों को फेंकने लगे. अनेक दिन तक न तो सूर्य ही दिखाई दिया और न ही तारे. हवा का बहाव तेज बना हुआ था इसलिये हमारे जीवित बचे रहने की सारी आशा धीरे धीरे खत्म होती चली गई. एक लंबे समय तक भूखे रहने के बाद पौलॉस ने उनके मध्य खड़े होकर यह कहा, “मित्रो, उत्तम तो यह होता कि आप लोग मेरा विचार स्वीकार करते और क्रेते द्वीप से आगे ही न बढ़ते जिससे इस हानि से बचा जा सकता. अब आपसे मेरी विनती है कि आप साहस न छोड़ें क्योंकि जलयान के अलावा किसी के भी जीवन की हानि नहीं होगी; क्योंकि वह, जो मेरे परमेश्वर हैं और मैं जिनका सेवक हूं, उनका एक स्वर्गदूत रात में मेरे पास आ खड़ा हुआ और उसने मुझे धीरज दिया, ‘मत डर, पौलॉस, तुम्हें कयसर के सामने उपस्थित होना ही है. परमेश्वर ने अपनी करुणा में तुम्हें और तुम्हारे साथ यात्रा करनेवालों को जीवनदान दिया है.’ इसलिये साथियो, साहस न छोड़ो क्योंकि मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूं. ठीक वैसा ही होगा जैसा मुझे बताया गया है. हम अवश्य ही किसी द्वीप के थल पर पहुंच जाएंगे.”