प्रेरितों 27:1-26

प्रेरितों 27:1-26 HINOVBSI

जब यह निश्‍चित हो गया कि हम जहाज द्वारा इटली जाएँ, तो उन्होंने पौलुस और कुछ अन्य बन्दियों को भी यूलियुस नामक औगुस्तुस की पलटन के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। अद्रमुत्तियुम के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हम ने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नामक थिस्सलुनीके का एक मकिदूनी हमारे साथ था। दूसरे दिन हम ने सैदा में लंगर डाला, और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहाँ जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। वहाँ से जहाज खोलकर हवा विरुद्ध होने के कारण हम साइप्रस की आड़ में होकर चले; और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया के मूरा में उतरे। वहाँ सूबेदार को सिकन्दरिया का एक जहाज इटली जाता हुआ मिला, और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया। जब हम बहुत दिनों तक धीरे–धीरे चलकर कठिनाई से कनिदुस के सामने पहुँचे, तो इसलिये कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले; और उसके किनारे–किनारे कठिनाई से चलकर ‘शुभलंगरबारी’ नामक एक जगह पहुँचे, जहाँ से लसया नगर निकट था। जब बहुत दिन बीत गए और जलयात्रा में जोखिम इसलिये होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे। अत: पौलुस ने उन्हें यह कहकर समझाया, “हे सज्जनो, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि, न केवल माल और जहाज की वरन् हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।” परन्तु सूबेदार ने पौलुस की बातों से कप्‍तान और जहाज के स्वामी की बातों को बढ़कर माना। वह बन्दरगाह जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था, इसलिये बहुतों का विचार हुआ कि वहाँ से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके तो फीनिक्स पहुँचकर जाड़ा काटें। यह तो क्रेते का एक बन्दरगाह है जो दक्षिण–पश्‍चिम और उत्तर–पश्‍चिम की ओर खुलता है। जब कुछ–कुछ दक्षिणी हवा बहने लगी, तो यह समझकर कि हमारा अभिप्राय पूरा हो गया, लंगर उठाया और किनारा धरे हुए क्रेते के पास से जाने लगे। परन्तु थोड़ी देर में जमीन की ओर से एक बड़ी आँधी उठी, जो ‘यूरकुलीन’ कहलाती है। जब आँधी जहाज पर लगी तो वह उसके सामने ठहर न सका, अत: हम ने उसे बहने दिया और इसी तरह बहते हुए चले गए। तब कौदा नामक एक छोटे से टापू की आड़ में बहते बहते हम कठिनाई से डोंगी को वश में कर सके। फिर मल्‍लाहों ने उसे उठाकर अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बाँधा, और सुरतिस के चोरबालू पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर बहते हुए चले गए। जब हम ने आँधी से बहुत हिचकोले और धक्‍के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे; और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का साज़–सामान भी फेंक दिया। जब बहुत दिनों तक न सूर्य, न तारे दिखाई दिए और बड़ी आँधी चलती रही, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही। जब वे बहुत दिन तक भूखे रह चुके, तो पौलुस ने उनके बीच में खड़े होकर कहा, “हे लोगो, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत्ति आती और न यह हानि उठाते। परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूँ कि ढाढ़स बाँधो, क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, पर केवल जहाज की। क्योंकि परमेश्‍वर जिसका मैं हूँ, और जिसकी सेवा करता हूँ, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा, ‘हे पौलुस, मत डर! तुझे कैसर के सामने खड़ा होना अवश्य है। देख, परमेश्‍वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है।’ इसलिये, हे सज्जनो, ढाढ़स बाँधो; क्योंकि मैं परमेश्‍वर का विश्‍वास करता हूँ, कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा। परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा।”