उपदेशक कहता है, “व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है!” मनुष्य को अपने सारे परिश्रम से जो वह सूर्य के नीचे करता है, क्या लाभ होता है?
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