1 यूहन्ना 4:15-21

1 यूहन्ना 4:15-21 HERV

यदि कोई यह मानता है कि, “यीशु परमेश्वर का पुत्र है,” तो परमेश्वर उसमें निवास करता है और वह परमेश्वर में रहने लगता है। इसलिए हम जानते हैं कि हमने अपना विश्वास उस प्रेम पर टिकाया है जो परमेश्वर में हमारे लिए है। परमेश्वर प्रेम है और जो प्रेम में स्थित रहता है, वह परमेश्वर में स्थित रहता है और परमेश्वर उसमें स्थित रहता है। हमारे विषय में इसी रूप में प्रेम सिद्ध हुआ है ताकि न्याय के दिन हमें विश्वास बना रहे। हमारा यह विश्वास इसलिए बना हुआ है कि हम इस जगत में जो जीवन जी रहे है, वह मसीह के जीवन जैसा है। प्रेम में कोई भय नहीं होता बल्कि सम्पूर्ण प्रेम तो भय को भगा देता है। भय का संबन्ध तो दण्ड से है। सो जिसमें भय है, उसके प्रेम को अभी पूर्णता नहीं मिली है। हम प्रेम करते हैं क्योंकि पहले परमेश्वर ने हमें प्रेम किया है। यदि कोई कहता है, “मैं परमेश्वर को प्रेम करता हूँ,” और अपने भाई से घृणा करता है तो वह झूठा है। क्योंकि अपने उस भाई को, जिसे उसने देखा है, जब वह प्रेम नहीं करता, तो परमेश्वर को जिसे उसने देखा ही नहीं है, वह प्रेम नहीं कर सकता। मसीह से हमें यह आदेश मिला है। वह जो परमेश्वर को प्रेम करता है, उसे अपने भाई से भी प्रेम करना चाहिए।

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