भजन संहिता 58

58
अन्याय के खिलाफ प्रार्थना
प्रधान बजानेवाले के लिये अल-तशहेत राग में दाऊद का मिक्ताम
1हे मनुष्यों, क्या तुम सचमुच धार्मिकता की बात बोलते हो?
और हे मनुष्य वंशियों क्या तुम सिधाई से न्याय करते हो?
2नहीं, तुम मन ही मन में कुटिल काम करते हो;
तुम देश भर में उपद्रव करते जाते हो।
3दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं,
वे पेट से निकलते ही झूठ बोलते हुए भटक जाते हैं।
4उनमें सर्प का सा विष है;
वे उस नाग के समान है, जो सुनना नहीं चाहता#58:4 वे उस नाग के समान है, जो सुनना नहीं चाहता: सर्प बहरा होता है उसे कुछ भी सिखाया नहीं जा सकता, उसे मन्त्रमुग्ध नहीं किया जा सकता। ऐसा प्रतीत होता है, कि वह सुनना ही नहीं चाहता है।;
5और सपेरा कितनी ही निपुणता से क्यों न मंत्र पढ़े,
तो भी उसकी नहीं सुनता।
6हे परमेश्वर, उनके मुँह में से दाँतों को तोड़ दे;
हे यहोवा, उन जवान सिंहों की दाढ़ों को उखाड़ डाल!
7वे घुलकर बहते हुए पानी के समान हो जाएँ;
जब वे अपने तीर चढ़ाएँ, तब तीर मानो दो टुकड़े हो जाएँ।
8वे घोंघे के समान हो जाएँ जो घुलकर नाश हो जाता है,
और स्त्री के गिरे हुए गर्भ के समान हो जिसने सूरज को देखा ही नहीं।
9इससे पहले कि तुम्हारी हाँड़ियों में काँटों की आँच लगे,
हरे व जले, दोनों को वह बवण्डर से उड़ा ले जाएगा।
10परमेश्वर का ऐसा पलटा देखकर आनन्दित होगा;
वह अपने पाँव दुष्ट के लहू में धोएगा#58:10 वह अपने पाँव दुष्ट के लहू में धोएगा: यह रूपक युद्ध क्षेत्र का है जहाँ विजेता मृतकों के लहू पर चलता है।
11तब मनुष्य कहने लगेंगे, निश्चय धर्मी के लिये फल है;
निश्चय परमेश्वर है, जो पृथ्वी पर न्याय करता है।

वर्तमान में चयनित:

भजन संहिता 58: IRVHin

हाइलाइट

शेयर

कॉपी

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in