प्रकाशितवाक्य भूमिका

भूमिका
यूहन्ना का प्रकाशितवाक्य ऐसे समय में लिखा गया था जब मसीहियों को उनके विश्‍वास के कारण सताया जा रहा था, यीशु मसीह पर प्रभु और स्वामी के रूप में विश्‍वास करने के कारण। इसके लेखक की चिन्ता का प्रमुख विषय अपने पाठकों में आशा और उत्साह का संचार करना और उनसे यह आग्रह करना था कि वे इस दु:ख और सताव के समय विश्‍वासयोग्य बने रहें।
इस पुस्तक का अधिकांश भाग प्रकाशनों और दर्शनों की शृंखलाओं के रूप में है, जिसे सांकेतिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है जो सम्भवत: उस समय के मसीहियों को समझ में आ गई थी, परन्तु अन्य सभी लोगों के लिये यह रहस्य ही रहा। जैसे संगीत में एक धुन होती है, उसी प्रकार इस पुस्तक की विषय–वस्तु बार–बार विभिन्न तरीकों से अलग–अलग दर्शनों की शृंखलाओं के द्वारा दोहराई जाती है। यद्यपि इस पुस्तक की विस्तृत व्याख्या के सम्बन्ध में मतभेद है, फिर भी प्रमुख विषय स्पष्‍ट है : परमेश्‍वर प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अपने सारे शत्रुओं को, जिनमें शैतान भी सम्मिलित है, सदा के लिये पूर्ण रूप से पराजित करेगा; और जब यह विजय पूर्ण हो जाएगी तो वह अपने विश्‍वासयोग्य लोगों को नया आकाश और नई पृथ्वी की आशीषों से परिपूर्ण करेगा।
रूप–रेखा :
भूमिका 1:1–8
आरम्भिक दर्शन और सातों कलीसियाओं को पत्र 1:9—3:22
सात मुहरों द्वारा बन्द चर्मपत्र 4:1—8:1
सात तुरहियाँ 8:2—11:19
अजगर और दो पशु 12:1—13:18
अन्य दर्शन 14:1—15:8
परमेश्‍वर के प्रकोप के सात कटोरे 16:1–21
बेबीलोन का विनाश, तथा पशु, झूठे भविष्यद्वक्‍ता, और शैतान की पराजय 17:1—20:10
अन्तिम न्याय 20:11–15
नया आकाश, नई पृथ्वी, और नया यरूशलेम 21:1—22:5
उपसंहार 22:6–21

वर्तमान में चयनित:

प्रकाशितवाक्य भूमिका: HINOVBSI

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