जीभ भी एक आग है; जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है, और सारी देह पर कलंक लगाती है, और जीवन–गति में आग लगा देती है, और नरक कुण्ड की आग से जलती रहती है। क्योंकि हर प्रकार के वन–पशु, पक्षी, और रेंगनेवाले जन्तु, और जलचर तो मनुष्य जाति के वश में हो सकते हैं और हो भी गए हैं, पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रुकती ही नहीं, वह प्राणनाशक विष से भरी हुई है।
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