जब यूसुफ मिस्र के राजा फ़िरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था। वह फ़िरौन के सम्मुख से निकलकर सारे मिस्र देश में दौरा करने लगा। सुकाल के सातों वर्षों में भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही, और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएँ, जो मिस्र देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया; और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया। इस प्रकार यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि गिनके रखा, यहाँ तक कि उसने उनका गिनना छोड़ दिया क्योंकि वे असंख्य हो गईं। अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे। यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि ‘परमेश्वर ने मुझ से मेरा सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है।’ दूसरे का नाम उसने यह कहकर एप्रैम रखा, कि ‘मुझे दु:ख भोगने के देश में परमेश्वर ने फलवन्त किया है।’
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