निर्गमन 34

34
पत्थर की नई तख़्तियाँ
(व्य 10:1–5)
1फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “पहली तख़्तियों के समान पत्थर की दो और तख़्तियाँ गढ़ ले; तब जो वचन उन पहली तख़्तियों पर लिखे थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, वे ही वचन मैं उन तख़्तियों पर भी लिखूँगा। 2सबेरे तैयार रहना, और भोर को सीनै पर्वत पर चढ़कर उसकी चोटी पर मेरे सामने खड़ा होना। 3तेरे संग कोई न चढ़ पाए, वरन् पर्वत भर पर कोई मनुष्य कहीं दिखाई न दे; और न भेड़–बकरी और गाय–बैल भी पर्वत के आगे चरने पाएँ।” 4तब मूसा ने पहली तख़्तियों के समान दो और तख़्तियाँ गढ़ीं; और भोर को उठकर अपने हाथ में पत्थर की वे दोनों तख़्तियाँ लेकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार सीनै पर्वत पर चढ़ गया। 5तब यहोवा ने बादल में उतरकर उसके संग वहाँ खड़ा होकर यहोवा नाम का प्रचार किया। 6यहोवा उसके सामने होकर यों प्रचार करता हुआ चला, “यहोवा, यहोवा, ईश्‍वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, 7हज़ारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा; वह पितरों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों वरन् पोतों और परपोतों को भी देनेवाला है।”#निर्ग 20:5,6; गिन 14:18; व्य 5:9,10; 7:9,10; नहे 9:17; भजन 86:15; 103:8; 145:8; योना 4:2 8तब मूसा ने तुरन्त पृथ्वी की ओर झुककर दण्डवत् किया। 9और उसने कहा, “हे प्रभु, यदि तेरे अनुग्रह की दृष्‍टि मुझ पर हो, तो प्रभु हम लोगों के बीच में होकर चले; ये लोग हठीले तो हैं, तौभी हमारे अधर्म और पाप को क्षमा कर और हमें अपना निज भाग मान के ग्रहण कर।”
वाचा का दोहराया जाना
(निर्ग 23:14–19; व्य 7:1–5; 16:1–17)
10उसने कहा, “सुन, मैं एक वाचा बाँधता हूँ। तेरे सब लोगों के सामने मैं ऐसे आश्‍चर्यकर्म करूँगा जैसा पृथ्वी पर और सब जातियों में कभी नहीं हुए; और वे सारे लोग जिनके बीच तू रहता है यहोवा के कार्य को देखेंगे; क्योंकि जो मैं तुम लोगों के लिए करने पर हूँ वह भयंकर काम है। 11जो आज्ञा मैं आज तुम्हें देता हूँ उसे तुम लोग मानना। देखो, मैं तुम्हारे आगे से एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों को निकालता हूँ। 12इसलिये सावधान रहना कि जिस देश में तू जानेवाला है उसके निवासियों से वाचा न बाँधना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिये फंदा ठहरे। 13वरन् उनकी वेदियों को गिरा देना, उनकी लाठों को तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नामक मूर्तियों को काट डालना;#व्य 16:21 14क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को ईश्‍वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठनेवाला परमेश्‍वर है,#निर्ग 20:5; व्य 4:24; 5:9 15ऐसा न हो कि तू उस देश के निवासियों से वाचा बाँधे, और वे अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करें, और उनके लिये बलिदान भी करें, और कोई तुझे नेवता दे और तू भी उसके बलिपशु का मांस खाए, 16और तू उनकी बेटियों को अपने बेटों के लिये लाए, और उनकी बेटियाँ जो आप अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करती हैं तेरे बेटों से भी अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करवाएँ।
17“तुम देवताओं की मूर्तियाँ ढालकर न बना लेना।#निर्ग 20:4; लैव्य 19:4; व्य 5:8; 27:15
18“अख़मीरी रोटी का पर्व मानना। उसमें मेरी आज्ञा के अनुसार आबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अख़मीरी रोटी खाया करना; क्योंकि तू मिस्र से आबीब महीने में निकल आया।#निर्ग 12:14–20; लैव्य 23:6–8; गिन 28:16–25 19हर एक पहिलौठा मेरा है; और क्या बछड़ा, क्या मेम्ना, तेरे पशुओं में से जो नर पहिलौठे हों वे सब मेरे ही हैं।#निर्ग 13:2 20गदही के पहिलौठे के बदले मेम्ना देकर उसको छुड़ाना, यदि तू उसे छुड़ाना न चाहे तो उसकी गर्दन तोड़ देना। परन्तु अपने सब पहिलौठे बेटों को बदला देकर छुड़ाना।#निर्ग 13:13 मुझे कोई छूछे हाथ अपना मुँह न दिखाए।#निर्ग 23:15; व्य 16:16
21“छ: दिन तो परिश्रम करना, परन्तु सातवें दिन विश्राम करना; वरन् हल जोतने और लवने के समय में भी विश्राम करना।#निर्ग 20:9,10; 23:12; 31:15; 35:2; लैव्य 23:3; व्य 5:13,14 22और तू सप्‍ताहों का पर्व मानना जो पहले लवे हुए गेहूँ का पर्व कहलाता है, और वर्ष के अन्त में बटोरन का भी पर्व मानना।#लैव्य 23:15–21,39–43; गिन 28:26–31 23वर्ष में तीन बार तेरे सब पुरुष इस्राएल के परमेश्‍वर प्रभु यहोवा को अपना मुँह दिखाएँ। 24क्योंकि मैं अन्यजातियों को तेरे आगे से निकालकर तेरी सीमाओं को बढ़ाऊँगा; और जब तू अपने परमेश्‍वर यहोवा को अपना मुँह दिखाने के लिये वर्ष में तीन बार आया करे, तब कोई तेरी भूमि का लालच न करेगा।
25“मेरे बलिदान के लहू को ख़मीर सहित न चढ़ाना, और न फसह के पर्व के बलिदान में से कुछ सबेरे तक रहने देना।#निर्ग 12:10; 23:18; लैव्य 2:11 26अपनी भूमि की पहली उपज का पहला भाग अपने परमेश्‍वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी के बच्‍चे को उसकी माँ के दूध में न पकाना।”#निर्ग 23:19; व्य 24:21; 26:2
27तब यहोवा ने मूसा से कहा, “ये वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार मैं ने तेरे और इस्राएल के साथ वाचा बाँधी है।” 28मूसा वहाँ यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उसने रोटी खाई और न पानी पिया। और उसने उन तख़्तियों पर वाचा के वचन अर्थात् दस आज्ञाएँ#34:28 मूल में, वचन लिख दीं।
मूसा का पहाड़ से उतरना
29जब मूसा साक्षी की दोनों तख़्तियाँ हाथ में लिये हुए सीनै पर्वत से उतर रहा था तब यहोवा के साथ बातें करने के कारण उसके चेहरे से किरणें* निकल रही थीं, परन्तु वह यह नहीं जानता था कि उसके चेहरे से किरणें#34:29 मूल में, सींग निकल रही हैं। 30जब हारून और सब इस्राएलियों ने मूसा को देखा कि उसके चेहरे से किरणें निकल रही हैं, तब वे उसके पास जाने से डर गए। 31तब मूसा ने उनको बुलाया; और हारून मण्डली के सारे प्रधानों समेत उसके पास आया, और मूसा उनसे बातें करने लगा। 32इसके बाद सब इस्राएली पास आए, और जितनी आज्ञाएँ यहोवा ने सीनै पर्वत पर उसके साथ बात करने के समय दी थीं, वे सब उसने उन्हें बताईं। 33जब तक मूसा उनसे बात न कर चुका तब तक अपने मुँह पर ओढ़ना डाले रहा; 34परन्तु जब जब मूसा भीतर यहोवा से बात करने को उसके सामने जाता, तब तब वह उस ओढ़नी को निकलते समय तक उतारे हुए रहता था; फिर बाहर आकर जो जो आज्ञा उसे मिलती उन्हें इस्राएलियों से कह देता था। 35इस्राएली मूसा का चेहरा देखते थे कि उससे किरणें#34:35 मूल में, सींग निकलती हैं; और जब तक वह यहोवा से बात करने को भीतर न जाता तब तक वह उस ओढ़नी को डाले रहता था।#2 कुरि 3:7–16

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