निर्गमन 21

21
दासों से उचित व्यवहार करना
(व्य 15:12–18)
1“फिर जो नियम तुझे उनको समझाने हैं वे ये हैं : 2जब तुम कोई इब्री दास मोल लो, तब वह छ: वर्ष तक सेवा करता रहे, और सातवें वर्ष स्वतन्त्र होकर सेंतमेंत चला जाए। 3यदि वह अकेला आया हो, तो अकेला ही चला जाए; और यदि पत्नी सहित आया हो, तो उसके साथ उसकी पत्नी भी चली जाए। 4यदि उसके स्वामी ने उसको पत्नी दी हो और उससे उसके बेटे और बेटियाँ उत्पन्न हुई हों, तो उसकी पत्नी और बालक उस स्वामी के ही रहें, और वह अकेला चला जाए। 5परन्तु यदि वह दास दृढ़ता से कहे, ‘मैं अपने स्वामी, और अपनी पत्नी, और बालकों से प्रेम रखता हूँ; इसलिये मैं स्वतन्त्र होकर नहीं जाऊँगा;’ 6तो उसका स्वामी उसको परमेश्‍वर#21:6 या न्यायियों के पास ले चले; फिर उसको द्वार के किवाड़ या बाजू के पास ले जाकर उसके कान में सुतारी से छेद करे; तब वह सदा उसकी सेवा करता रहे।#लैव्य 25:39–46
7“यदि कोई अपनी बेटी को दासी होने के लिये बेच डाले, तो वह दासी के समान बाहर न जाए। 8यदि उसका स्वामी उसको अपनी पत्नी बनाए, और फिर उस से प्रसन्न न रहे, तो वह उसे दाम से छुड़ाई जाने दे; उसका विश्‍वासघात करने के बाद उसे विदेशी लोगों के हाथ बेचने का उसको अधिकार न होगा। 9यदि उसने उसका अपने बेटे से विवाह कर दिया हो, तो उससे बेटी का सा व्यवहार करे। 10चाहे वह दूसरी पत्नी कर ले, तौभी वह उसका भोजन, वस्त्र और संगति न घटाए। 11और यदि वह इन तीन बातों में घटी करे, तो वह स्त्री बिना दाम चुकाए ही चली जाए।
हिंसक कार्यों से सम्बन्धित नियम
12“जो किसी मनुष्य को ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह भी निश्‍चय मार डाला जाए।#लैव्य 24:17 13यदि वह उसकी घात में न बैठा हो, और परमेश्‍वर की इच्छा ही से वह उसके हाथ में पड़ गया हो, तो ऐसे मारनेवाले के भागने के लिए मैं एक स्थान ठहराऊँगा जहाँ वह भाग जाए।#गिन 35:10–34; व्य 19:1–13; यहो 20:1–9 14परन्तु यदि कोई ढिठाई से किसी पर चढ़ाई करके उसे छल से घात करे, तो उसको मार डालने के लिये मेरी वेदी के पास से भी अलग ले जाना।
15“जो अपने पिता या माता को मारे–पीटे वह निश्‍चय मार डाला जाए।
16“जो किसी मनुष्य को चुराए, चाहे उसे ले जाकर बेच डाले, चाहे वह उसके यहाँ पाया जाए, तो वह भी निश्‍चय मार डाला जाए।#व्य 24:7
17“जो अपने पिता या माता को श्राप दे वह भी निश्‍चय मार डाला जाए।#लैव्य 20:9; मत्ती 15:4; मरकुस 7:10
18“यदि मनुष्य झगड़ते हों, और एक दूसरे को पत्थर या मुक्‍के से ऐसा मारे कि वह मरे नहीं परन्तु बिछौने पर पड़ा रहे, 19तो जब वह उठकर लाठी के सहारे से बाहर चलने फिरने लगे, तब वह मारनेवाला निर्दोष ठहरे; उस दशा में वह उसके पड़े रहने के समय की हानि भर दे, और उसको भला चंगा भी करा दे।
20“यदि कोई अपने दास या दासी को सोंटे से ऐसा मारे कि वह उसके मारने से मर जाए, तब उसको निश्‍चय दण्ड दिया जाए। 21परन्तु यदि वह दो एक दिन जीवित रहे, तो उसके स्वामी को दण्ड न दिया जाए; क्योंकि वह दास उसका धन है।
22“यदि मनुष्य आपस में मारपीट करके किसी गर्भिणी स्त्री को ऐसी चोट पहुँचाएँ कि उसका गर्भ गिर जाए, परन्तु और कुछ हानि न हो, तो मारनेवाले से उतना दण्ड लिया जाए जितना उस स्त्री का पति पंच की सम्मति से ठहराए। 23परन्तु यदि उसको और कुछ हानि पहुँचे, तो प्राण के बदले प्राण का, 24और आँख के बदले आँख का, और दाँत के बदले दाँत का, और हाथ के बदले हाथ का, और पाँव के बदले पाँव का,#लैव्य 24:19,20; व्य 19:21; मत्ती 5:38 25और दाग के बदले दाग का, और घाव के बदले घाव का, और मार के बदले मार का दण्ड हो।
26“जब कोई अपने दास या दासी की आँख पर ऐसा मारे कि फूट जाए, तो वह उसकी आँख के बदले उसे स्वतन्त्र करके जाने दे। 27और यदि वह अपने दास या दासी को मारके उसका दाँत तोड़ डाले, तो वह उसके दाँत के बदले उसे स्वतन्त्र करके जाने दे।
पशु के स्वामी का उत्तरदायित्व
28“यदि बैल किसी पुरुष या स्त्री को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल निश्‍चय पथराव करके मार डाला जाए, और उसका मांस खाया न जाए; परन्तु बैल का स्वामी निर्दोष ठहरे। 29परन्तु यदि उस बैल की पहले से सींग मारने की आदत पड़ी हो, और उसके स्वामी ने जताए जाने पर भी उसको न बाँध रखा हो, और वह किसी पुरुष या स्त्री को मार डाले, तब तो उस बैल पर पथराव किया जाए, और उसका स्वामी भी मार डाला जाए। 30यदि उस पर छुड़ौती ठहराई जाए, तो प्राण छुड़ाने को जो कुछ उसके लिये ठहराया जाए उसे उतना ही देना पड़ेगा। 31चाहे बैल ने किसी बेटे को, चाहे बेटी को मारा हो, तौभी इसी नियम के अनुसार उसके स्वामी के साथ व्यवहार किया जाए। 32यदि बैल ने किसी दास या दासी को सींग मारा हो, तो बैल का स्वामी उस दास के स्वामी को तीस शेकेल रूपा दे, और उस बैल पर पथराव किया जाए।
33“यदि कोई मनुष्य गड़हा खोलकर या खोदकर उसको न ढाँपे, और उसमें किसी का बैल या गदहा गिर पड़े, 34तो जिसका वह गड़हा हो वह उस हानि को भर दे; वह पशु के स्वामी को उसका मोल दे, और लोथ गड़हेवाले की ठहरे।
35“यदि किसी का बैल किसी दूसरे के बैल को ऐसी चोट लगाए कि वह मर जाए, तो वे दोनों मनुष्य जीते बैल को बेचकर उसका मोल आपस में आधा आधा बाँट लें; और लोथ को भी वैसा ही बाँटें। 36यदि यह प्रगट हो कि उस बैल की पहले से सींग मारने की आदत पड़ी थी, पर उसके स्वामी ने उसे बाँध नहीं रखा, तो निश्‍चय वह बैल के बदले बैल भर दे, पर लोथ उसी की ठहरे।

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