दूसरे दिन मूसा लोगों का न्याय करने को बैठा, और भोर से साँझ तक लोग मूसा के आसपास खड़े रहे। यह देखकर कि मूसा लोगों के लिये क्या–क्या करता है, उसके ससुर ने कहा, “यह क्या काम है जो तू लोगों के लिये करता है? क्या कारण है कि तू अकेला बैठा रहता है, और लोग भोर से साँझ तक तेरे आसपास खड़े रहते हैं?” मूसा ने अपने ससुर से कहा, “इसका कारण यह है कि लोग मेरे पास परमेश्वर से पूछने आते हैं। जब जब उनका कोई मुक़द्दमा होता है तब तब वे मेरे पास आते हैं, और मैं उनके बीच न्याय करता, और परमेश्वर की विधि और व्यवस्था उन्हें समझाता हूँ।” मूसा के ससुर ने उससे कहा, “जो काम तू करता है, वह अच्छा नहीं। इससे तू क्या, वरन् ये लोग भी जो तेरे संग हैं निश्चय थक जाएँगे, क्योंकि यह काम तेरे लिये बहुत भारी है; तू इसे अकेला नहीं कर सकता। इसलिये अब मेरी सुन ले, मैं तुझ को सम्मति देता हूँ, और परमेश्वर तेरे संग रहे! तू इन लोगों के लिये परमेश्वर के सम्मुख जाया कर, और इनके मुक़द्दमों को परमेश्वर के पास तू पहुँचा दिया कर। इन्हें विधि और व्यवस्था प्रगट कर करके, जिस मार्ग पर इन्हें चलना, और जो जो काम इन्हें करना हो, वह इनको जता दिया कर। फिर तू इन सब लोगों में से ऐसे पुरुषों को छाँट ले, जो गुणी, और परमेश्वर का भय मानने वाले, सच्चे, और अन्याय के लाभ से घृणा करने वाले हों; और उनको हज़ार–हज़ार, सौ–सौ, पचास–पचास, और दस–दस मनुष्यों पर प्रधान नियुक्त कर दे। और वे सब समय इन लोगों का न्याय किया करें; और सब बड़े बड़े मुक़द्दमों को तो तेरे पास ले आया करें, और छोटे छोटे मुक़द्दमों का न्याय आप ही किया करें; तब तेरा बोझ हल्का होगा, क्योंकि इस बोझ को वे भी तेरे साथ उठाएँगे। यदि तू यह उपाय करे, और परमेश्वर तुझ को ऐसी आज्ञा दे, तो तू ठहर सकेगा, और ये सब लोग अपने स्थान को कुशल से पहुँच सकेंगे।”