उस दिन हामान आनन्दित और मन में प्रसन्न होकर बाहर गया। परन्तु जब उसने मोर्दकै को राजभवन के फाटक में देखा, कि वह उसके सामने न तो खड़ा हुआ, और न हटा, तब वह मोर्दकै के विरुद्ध क्रोध से भर गया। तौभी वह अपने को रोककर अपने घर गया; और अपने मित्रों और अपनी स्त्री जेरेश को बुलवा भेजा। तब हामान ने उन से अपने धन का वैभव, और अपने बाल–बच्चों की बढ़ती और राजा ने उसको कैसे कैसे बढ़ाया, और अन्य सब हाकिमों और अपने और सब कर्मचारियों से ऊँचा पद दिया था, इन सब का वर्णन किया। हामान ने यह भी कहा, “एस्तेर रानी ने भी मुझे छोड़ और किसी को राजा के संग, अपने किए हुए भोज में आने न दिया; और कल के लिये भी राजा के संग उसने मुझी को नेवता दिया है। तौभी जब जब मुझे वह यहूदी मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा हुआ दिखाई पड़ता है, तब तब यह सब मेरी दृष्टि में व्यर्थ लगता है।” उसकी पत्नी जेरेश और उसके सब मित्रों ने उससे कहा, “पचास हाथ ऊँचा फाँसी का एक खम्भा बनाया जाए, और सबेरे राजा से कहना कि उस पर मोर्दकै लटका दिया जाए; तब राजा के संग आनन्द से भोज में जाना।” इस बात से प्रसन्न होकर हामान ने वैसा ही फाँसी का एक खम्भा बनवाया।
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