1 राजाओं 12

12
इस्राएल राज्य का दो भाग हो जाना
(2 इति 10:1–19)
1रहूबियाम शकेम को गया, क्योंकि सब इस्राएली उसको राजा बनाने के लिये वहीं गए थे। 2जब नबात के पुत्र यारोबाम ने यह सुना, (जो अब तक मिस्र में ही था, क्योंकि यारोबाम सुलैमान राजा के डर के मारे भागकर मिस्र में रहता था। 3अत: लोगों ने उसको बुलवा भेजा) तब यारोबाम और इस्राएल की समस्त सभा रहूबियाम के पास जाकर यों कहने लगी, 4“तेरे पिता ने तो हम लोगों पर भारी जूआ डाल रखा था; इसलिये अब तू अपने पिता की कठिन सेवा को, और उस भारी जूए को, जो उसने हम पर डाल रखा है, कुछ हल्का कर; तब हम तेरे अधीन रहेंगे।” 5उसने कहा, “अभी तो जाओ, और तीन दिन के बाद मेरे पास फिर आना।” तब वे चले गए।
6तब राजा रहूबियाम ने उन बूढ़ों से जो उसके पिता सुलैमान के जीवन भर उसके सामने उपस्थित रहा करते थे सम्मति ली, “इस प्रजा को कैसा उत्तर देना उचित है, इस में तुम क्या सम्मति देते हो?” 7उन्होंने उसको यह उत्तर दिया, “यदि तू अभी प्रजा के लोगों का दास बनकर उनके अधीन हो और उनसे मधुर बातें कहे, तो वे सदैव तेरे अधीन बने रहेंगे।” 8रहूबियाम ने उस सम्मति को छोड़ दिया, जो बूढ़ों ने उसको दी थी, और उन जवानों से सम्मति ली, जो उसके संग बड़े हुए थे, और उसके सम्मुख उपस्थित रहा करते थे। 9उनसे उसने पूछा, “मैं प्रजा के लागों को कैसा उत्तर दूँ? इस में तुम क्या सम्मति देते हो? उन्होंने तो मुझ से कहा है, ‘जो जूआ तेरे पिता ने हम पर डाल रखा है, उसे तू हल्का कर’।” 10जवानों ने जो उसके संग बड़े हुए थे उसको यह उत्तर दिया, “उन लोगों ने तुझ से कहा है, ‘तेरे पिता ने हमारा जूआ भारी किया था, परन्तु तू उसे हमारे लिये हल्का कर;’ तू उनसे यों कहना, ‘मेरी छिंगुलिया मेरे पिता की कमर से भी मोटी है। 11मेरे पिता ने तुम पर जो भारी जूआ रखा था, उसे मैं और भी भारी करूँगा; मेरा पिता तो तुम को कोड़ों से ताड़ना देता था, परन्तु मैं बिच्छुओं से दूँगा’।”
12तीसरे दिन, जैसे राजा ने ठहराया था कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना, वैसे ही यारोबाम और समस्त प्रजागण रहूबियाम के पास उपस्थित हुए। 13तब राजा ने प्रजा से कड़ी बातें कीं, 14और बूढ़ों की दी हुई सम्मति छोड़कर, जवानों की सम्मति के अनुसार उनसे कहा, “मेरे पिता ने तो तुम्हारा जूआ भारी कर दिया, परन्तु मैं उसे और भी भारी कर दूँगा : मेरे पिता ने तो कोड़ों से तुम को ताड़ना दी, परन्तु मैं तुम को बिच्छुओं से ताड़ना दूँगा।” 15इस प्रकार राजा ने प्रजा की बात नहीं मानी, इसका कारण यह है कि जो वचन यहोवा ने शीलोवासी अहिय्याह के द्वारा नबात के पुत्र यारोबाम से कहा था, उसको पूरा करने के लिये उसने ऐसा ही ठहराया था।
16जब समस्त इस्राएल ने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तब वे बोले#12:16 मूल में, राजा को उत्तर दिया ,
“दाऊद के साथ हमारा क्या अंश?
हमारा तो यिशै के पुत्र में कोई भाग नहीं!
हे इस्राएल अपने अपने डेरे को चले जाओ :
अब हे दाऊद, अपने ही घराने की चिन्ता कर।”#2 शमू 20:1
17अत: इस्राएल अपने अपने डेरे को चले गए। केवल जितने इस्राएली यहूदा के नगरों में बसे हुए थे उन पर रहूबियाम राज्य करता रहा। 18तब राजा रहूबियाम ने अदोराम को जो सब बेगारों पर अधिकारी था भेज दिया, और सब इस्राएलियों ने उस पर पथराव किया, और वह मर गया : तब रहूबियाम फुर्ती से अपने रथ पर चढ़कर यरूशलेम को भाग गया। 19इस प्रकार इस्राएल दाऊद के घराने से फिर गया, और आज तक फिरा हुआ है। 20यह सुनकर कि यारोबाम लौट आया है, समस्त इस्राएल ने उसको मण्डली में बुलवा भेजा और सम्पूर्ण इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्‍त किया, और यहूदा के गोत्र को छोड़कर दाऊद के घराने से कोई मिला न रहा।
शमायाह की भविष्यद्वाणी
(2 इति 11:1–4)
21जब रहूबियाम यरूशलेम को आया, तब उसने यहूदा के समस्त घराने को और बिन्यामीन के गोत्र को, जो मिलकर एक लाख अस्सी हज़ार अच्छे योद्धा थे, इकट्ठा किया कि वे इस्राएल के घराने के साथ लड़कर सुलैमान के पुत्र रहूबियाम के वश में फिर राज्य कर दें। 22तब परमेश्‍वर का यह वचन परमेश्‍वर के जन शमायाह के पास पहुँचा, “यहूदा के राजा सुलैमान के पुत्र रहूबियाम से, 23और यहूदा और बिन्यामीन के सब घराने से, और सब लोगों से कह, ‘यहोवा यों कहता है, 24कि अपने भाई इस्राएलियों पर चढ़ाई करके युद्ध न करो; तुम अपने अपने घर लौट जाओ, क्योंकि यह बात मेरी ही ओर से हुई है।’ ” यहोवा का यह वचन मानकर उन्होंने उसके अनुसार लौट जाने को अपना अपना मार्ग लिया।
यारोबाम का मूर्तिपूजा चलाना
25तब यारोबाम एप्रैम के पहाड़ी देश के शकेम नगर को दृढ़ करके उस में रहने लगा; फिर वहाँ से निकलकर पनूएल को भी दृढ़ किया। 26तब यारोबाम सोचने लगा, “अब राज्य दाऊद के घराने का हो जाएगा। 27यदि प्रजा के लोग यरूशलेम में बलि करने को जाएँ, तो उनका मन अपने स्वामी यहूदा के राजा रहूबियाम की ओर फिरेगा, और वे मुझे घात करके यहूदा के राजा रहूबियाम के हो जाएँगे।” 28अत: राजा ने सम्मति लेकर सोने के दो बछड़े बनाए और लोगों से कहा, “यरूशलेम को जाना तुम्हारी शक्‍ति से बाहर है इसलिये हे इस्राएल अपने देवताओं को देखो, जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाए हैं।”#निर्ग 32:4 29उसने एक बछड़े को बेतेल, और दूसरे को दान में स्थापित किया। 30और यह बात पाप का कारण हुई; क्योंकि लोग उसमें से एक के सामने दण्डवत् करने को दान तक जाने लगे। 31और उसने ऊँचे स्थानों के भवन बनाए, और सब प्रकार के लोगों#12:31 मूल में, अन्त के लोगों में से जो लेवीवंशी न थे, याजक ठहराए।
बेतेल की पूजा दण्डनीय
32फिर यारोबाम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन#लैव्य 23:33,34 यहूदा के पर्व के समान एक पर्व ठहरा दिया, और वेदी पर बलि चढ़ाने लगा; इस रीति उसने बेतेल में अपने बनाए हुए बछड़ों के लिये वेदी पर बलि किया, और अपने बनाए हुए ऊँचे स्थानों के याजकों को बेतेल में ठहरा दिया। 33जिस महीने की उसने अपने मन में कल्पना की थी*, अर्थात् आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन को वह बेतेल में अपनी बनाई हुई वेदी के पास चढ़ गया। उसने इस्राएलियों के लिये एक पर्व ठहरा दिया, और धूप जलाने को वेदी के पास चढ़ गया।

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