जकर्याह 4
4
पाँचवां दर्शन : दीवट और जैतून वृक्ष
1जो दूत मुझसे बात कर रहा था, वह फिर आया। उसने मुझे जगाया, जैसा नींद में सोया हुआ व्यक्ति नींद से जगाया जाता है। 2उसने मुझसे पूछा, ‘तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?’
मैंने बताया, ‘एक दीवट है। वह पूर्णत: सोने का है। उसके शिखर पर एक कटोरा है। कटोरे पर सात दीपक हैं। प्रत्येक दीपक में बत्ती के लिए सात नालियाँ हैं।#नि 25:31,37 3दीवट के पास जैतून के दो वृक्ष हैं: एक वृक्ष कटोरे की दाहिनी ओर है, और दूसरा वृक्ष उसकी बाईं ओर।’#प्रक 11:4
4मैंने दूत से, जो मुझसे बात कर रहा था, पूछा: ‘स्वामी, इनका क्या अर्थ है?’
5दूत ने मुझसे कहा, ‘क्या तुम नहीं जानते?’ मैंने कहा, ‘नहीं, मेरे स्वामी।’
6तब दूत ने मुझे बताया, ‘जरूब्बाबेल के लिए प्रभु का यह सन्देश है: स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यों कहता है: बल से नहीं, शक्ति से नहीं, वरन् मेरे आत्मा के द्वारा।#एज्रा 5:2 7ओ महापर्वत, जरूब्बाबेल के सामने तू क्या है? तू सपाट मैदान हो जाएगा। जरूब्बाबेल शिखर का पत्थर लाएगा, और लोग यह जय-जयकार करेंगे: “प्रभु की कृपा...... प्रभु की कृपा इस पत्थर पर हो।” ’
8इसके अतिरिक्त प्रभु का यह सन्देश मुझे मिला: 9‘जरूब्बाबेल ने स्वयं अपने हाथों से इस भवन की नींव रखी है। वह अपने हाथों से इस भवन को पूरा भी करेगा।’
तब तुम्हें ज्ञात होगा कि स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। 10कौन व्यक्ति छोटी बातों के दिन को तुच्छ समझता है? वह जरूब्बाबेल के हाथ में नापने के साहुल को#4:10 अथवा ‘टिन धातु का पत्थर’, ‘उत्तम पत्थर’। देखकर आनन्दित होगा।
दूत ने मुझे बताया, ‘ये सात दीपक प्रभु की आंखें हैं। वह इन आंखों से सम्पूर्ण पृथ्वी की सब ओर देखता है।’#प्रक 5:6
11तब मैंने उससे पूछा, ‘दीवट की दाहिनी और बाईं ओर जैतून के वृक्ष क्यों हैं?’#प्रक 11:4
12मैंने उससे दूसरी बार पूछा, ‘जैतून की इन दो शाखाओं का क्या अर्थ है, जो दो स्वर्ण नालियों के समीप हैं, जिनसे सुनहला तेल उण्डेला जाता है?’
13दूत ने मुझसे कहा, ‘क्या तुम इनका अर्थ नहीं समझते हो?’ मैंने कहा, ‘नहीं, मेरे स्वामी।’ 14तब उसने मुझे बताया, ‘ये दो अभिषिक्त पुरुष हैं, जो समस्त पृथ्वी के स्वामी के समीप खड़े रहते हैं।’
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