रोमियों 8:18-25

रोमियों 8:18-25 HINCLBSI

मैं समझता हूँ कि हम पर जो महिमा प्रकट होने को है, उसकी तुलना में इस समय का दु:ख नगण्‍य है; क्‍योंकि समस्‍त सृष्‍टि उत्‍कण्‍ठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब मनुष्‍य परमेश्‍वर की संतान के रूप में प्रकट होंगे। यह सृष्‍टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है—अपनी इच्‍छा से नहीं, बल्‍कि उसकी इच्‍छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है—किन्‍तु यह आशा भी बनी रही कि वह विकृति की दासता से मुक्‍त हो जायेगी और परमेश्‍वर की सन्‍तान की महिमामय स्‍वतन्‍त्रता की सहभागी बनेगी। हम जानते हैं कि समस्‍त सृष्‍टि मिलकर अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराह रही है और सृष्‍टि ही नहीं, वरन् हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं। हमें तो पवित्र आत्‍मा मिल चुका है, जो परमेश्‍वर के कृपादानों का प्रथम फल है। लेकिन हम अपने शरीर की विमुक्‍ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब हम परमेश्‍वर की दत्तक संतान होंगे। इस आशा में हमारा उद्धार हुआ है। यदि कोई वह बात देखता है, जिसकी वह आशा करता है, तो यह आशा नहीं कही जा सकती। मनुष्‍य जिस वस्‍तु को देख रहा है, उसकी आशा क्‍यों करेगा? हम उसकी आशा करते हैं, जिसे हम अब तक नहीं देख सके हैं। इसलिए हमें धैर्य के साथ उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

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