प्रकाशन 9
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पांचवीं तुरही
1पाँचवें स्वर्गदूत ने तुरही बजायी। मैंने एक तारा देखा, जो आकाश से पृथ्वी पर गिरा था, और उसे अगाध गर्त्त के विवर की कुंजी दी गयी।#प्रक 8:10; 20:1 2उसने अगाध गर्त्त का विवर खोला। इस पर विवर में से दूआँ निकला, जो बड़ी भट्टी के धूएँ-जैसा था और विवर के धूएँ से सूर्य और वायुमण्डल अन्धकारमय हो गया।#उत 19:28; नि 19:18; योए 2:2,10 3उस धूएँ में से टिड्डियाँ पृथ्वी पर उतरीं और उन्हें पृथ्वी के बिच्छुओं-जैसी शक्ति प्रदान की गयी।#नि 10:12,15; प्रज्ञ 16:9 4उन्हें यह आदेश मिला कि वे घास अथवा किसी पौधे या वृक्ष को हानि नहीं पहुचायें, बल्कि केवल उन मनुष्यों को, जिनके माथे पर परमेश्वर की मुहर नहीं लगी हो।#यहेज 9:4; प्रक 7:3 5टिड्डियों को इन लोगों का वध करने की नहीं, बल्कि इन्हें पाँच महीनों तक पीड़ित करने की अनुमति दी गयी। उनकी ऐसी यन्त्रणा थी, जैसी बिच्छुओं के डंक मारने से मनुष्यों की होती है। 6उन दिनों मनुष्य मृत्यु की खोज करेंगे, किन्तु वह उन्हें नहीं मिलेगी, वे मरने की अभिलाषा करेंगे, किन्तु मृत्यु उन से भागती रहेगी।#अय्य 3:21; लू 23:30
7उन टिड्डियों की आकृति युद्ध के लिए सुसज्जित अश्वों-जैसी थी। ऐसा लग रहा था कि उनके सिरों पर स्वर्ण मुकुट थे। उनके मुख मनुष्यों के मुख-जैसे थे।#योए 2:4 8उनके केश स्त्रियों के केश-जैसे और उनके दाँत सिंहों के दाँतों-जैसे थे।#योए 1:6 9ऐसा लग रहा था कि उनके कवच लोहे के कवच थे। उनके डैनों की आवाज युद्ध के लिए तेज दौड़नेवाले बहुसंख्यक रथों और अश्वों की आवाज-जैसी थी।#योए 2:5 10उनकी पूँछें, जिन में डंक थे, बिच्छुओं की पूँछों-जैसी थीं। उनकी पूँछों में मनुष्यों को पाँच महीनों तक हानि पहुँचाने का सामर्थ्य था। 11उनका एक राजा था, अर्थात अगाध गर्त्त का दूत, जिसका नाम इब्रानी में अबद्दोन है और यूनानी में अप्पुलयोन#9:11 अबद्दोन’ का अर्थ है ‘विनाश’ और ‘अप्पुलयोन’ का अर्थ है ‘विनाशक’।।
12पहली महाविपत्ति#9:12 शब्दश:, “धिक्कार”। अब बीत चुकी है। इसके बाद दो महाविपत्तियाँ और आनेवाली हैं।#प्रक 8:13; 11:14
छठी तुरही
13छठे स्वर्गदूत ने तुरही बजायी। इस पर परमेश्वर के सम्मुख अवस्थित स्वर्ण वेदी के चार कोनों में से एक वाणी सुनाई पड़ी।#प्रक 8:3; नि 30:1-3 14मैंने उसे तुरहीधारी छठे स्वर्गदूत से यह कहते सुना: “महानदी फरात के पास बँधे हुए चार दूतों को खोल दो।”#उत 15:18; व्य 1:7; यहो 1:4; प्रक 16:12
15उन चार दूतों के बन्धन खोल दिये गये, जो उसी घड़ी, दिन, महीने और वर्ष के लिए प्रस्तुत थे, जब उन्हें एक तिहाई मनुष्यों का वध करना था।#प्रक 8:7-12 16घुड़सवार सैनिकों की संख्या बीस करोड़ थी। मैंने उनकी संख्या की घोषणा सुनी।
17मुझे उस दृश्य में वे घोड़े और उन पर सवार सैनिक इस प्रकार दीख पड़े : सैनिक अग्नि-जैसे लाल, धूम्रकान्त-जैसे नीले और गन्धक-जैसे पीले कवच पहने हुए थे। घोड़ों के सिर सिंहों के सिर-जैसे थे और उनके मुँह से आग, धूआँ और गन्धक निकल रही थी।#प्रज्ञ 11:17-18 18इन तीन विपत्तियों द्वारा, अर्थात् आग, धूएँ और गन्धक द्वारा, जो घोड़ों के मुँह से निकल रही थी, एक तिहाई मनुष्यों का वध किया गया। 19क्योंकि उन घोड़ों का सामर्थ्य उनके मुँह में ही नहीं, उनकी पूँछ में भी था। उनकी पूँछें साँपों के सदृश थीं, जिनके अपने सिर थे और वे उन से भी हानि पहुँचाते थे।
20शेष मनुष्यों ने-जो इन विपत्तियों द्वारा नहीं मारे गये थे-अपने हाथों के कर्मों के लिए पश्चात्ताप नहीं किया। वे भूत-प्रेतों की पूजा करते रहे और सोना, चाँदी, पीतल, पत्थर और लकड़ी की उन देवमूर्तियों की भी, जो न तो देख सकती हैं, न सुन और चल सकती हैं।#यश 2:8,20; 17:8; दान 5:4; 1 कुर 10:20; भज 115:4; 135:15; प्रक 16:9,11,21 21उन्होंने अपने हत्याकाण्डों, अपने जादू-टोनों, अपने व्यभिचार और अपनी चोरियों के लिए भी पश्चात्ताप नहीं किया।#2 रा 9:22
वर्तमान में चयनित:
प्रकाशन 9: HINCLBSI
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