मेरे पुत्र, यदि तूने बिना सोचे-समझे अपने पड़ोसी के लिए जमानत दी है; अथवा किसी अपरिचित के लिए उत्तरदायित्व लिया है; यदि तू वचन देकर फंस गया है, यदि तू अपने मुंह के शब्दों के कारण पकड़ा गया है, तो तू यह काम करना और बच जाना; तू पड़ोसी के हाथ में पड़ गया है; अत: तू अविलम्ब जाना और उसको साष्टांग प्रणाम कर मना लेना। तू अपनी आंखों में नींद न आने देना, और न पलकों में झपकी आने देना। जैसे हरिणी शिकारी के हाथ से और चिड़िया चिड़ीमार के जाल से स्वयं को बचा लेती है वैसे ही तू अपने पड़ोसी से स्वयं को बचा लेना। ओ आलसी, चींटी के पास जा; और उसके कार्यों पर विचार कर; तब तू बुद्धिमान बनेगा। वह बिना मेट, निरीक्षक और शासक के आदेश से ग्रीष्म ऋतु में अपने आहार की व्यवस्था कर लेती है; वह फसल की कटनी के समय अपना भोजन एकत्र करती है।
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