नीतिवचन 15
15
1कोमल उत्तर देने से क्रोध शान्त हो
जाता है;
परन्तु कटु वचन से क्रोधाग्नि धधक उठती है।#1 रा 12:13-16
2बुद्धिमान के कंठ से ज्ञान की धारा प्रवाहित
होती है;
किन्तु मूर्ख अपने मुंह से केवल मूर्खता ही
निकालता है।
3प्रभु की दृष्टि सर्वव्यापी है;
प्रभु हमारे प्रत्येक कार्य को देखता है,
चाहे हम भला करें, चाहे बुरा!#जक 4:10
4मधुर वचन बोलनेवाली जिह्वा
जीवन का वृक्ष है;
पर छल-कपट की बातें बोलनेवाली जीभ से
आत्मा को कष्ट होता है।
5मूर्ख पुत्र अपने पिता की शिक्षाप्रद बातों का
तिरस्कार करता है;
परन्तु जो पुत्र अपने पिता की डांट-डपट को
स्वीकार करता है,
वह व्यवहारकुशल बन जाता है।
6धार्मिक मनुष्य के घर में
बहुत धन रहता है,
परन्तु दुर्जन की आमदनी में
घुन लग जाता है।
7बुद्धिमान अपनी वाणी से ज्ञान का प्रसार
करता है;
पर मूर्ख का मस्तिष्क ऐसा नहीं कर पाता।
8मूर्ख का बलि चढ़ाना भी
प्रभु पसन्द नहीं करता।
किन्तु निष्कपट मनुष्य की प्रार्थना से
वह हर्षित होता है।#नीति 21:27; यश 1:11; आमो 5:22
9प्रभु दुर्जन के दुराचरण से घृणा करता है,
किन्तु वह धर्म के मार्ग पर चलनेवाले व्यक्ति
से प्रेम करता है।
10जो मनुष्य पथभ्रष्ट हो जाता है,
वह कठोर दण्ड पाता है;
डांट-डपट की उपेक्षा करनेवाला
मनुष्य समय से पहले मर जाता है।
11अधोलोक और अतल पाताल भी
प्रभु की दृष्टि से छिपे नहीं हैं;
तब क्या मनुष्य का हृदय
उससे छिपा रह सकता है?#यो 2:25
12हर बात की हंसी उड़ानेवाला
डांट-डपट पसन्द नहीं करता;
वह सलाह के लिए बुद्धिमान मनुष्य
के पास नहीं जाता।
13यदि हृदय प्रसन्न है
तो चेहरे पर रौनक रहती है;
किन्तु यदि हृदय दु:खित है
तो अन्तर-आत्मा भी उदास रहती है।
14जो मनुष्य समझदार है,
उसका हृदय ज्ञान का प्यासा होता है,
किन्तु मूर्ख मूर्खतापूर्ण बातों से
अपना पेट भरता है।
15जो मनुष्य दु:खी है,
उसका हर दिन दु:ख में बीतता है,
किन्तु जिस व्यक्ति का हृदय
प्रसन्नता से भरा रहता है,
वह मानो नित्य भोज में सम्मिलित होता है।
16यदि मनुष्य प्रभु की भक्ति करता,
और उसके पास थोड़ा ही धन है,
तो उसका यह धन उस प्रचुर धन से श्रेष्ठ है,
जिसके साथ अशान्ति जुड़ी है।
17जहां प्रेम है,
वहां सूखी रोटी भी मीठी लगती है
पर जिस घर में घृणा का वास है,
वहां अच्छे से अच्छा भोजन भी त्याज्य है।
18उग्र स्वभाव का मनुष्य
झगड़े की आग को भड़काता है;
परन्तु विलम्ब से क्रोध करनेवाला व्यक्ति
उसको मधुर वचन से बुझा देता है।
19आलसी मनुष्य के मार्ग में,
झाड़-झंखाड़ उगे होते हैं,
पर निष्कपट व्यक्ति का मार्ग
राजमार्ग के सदृश समतल होता है।
20बुद्धिमती संतान के कारण
पिता आनन्दित होता है;
किन्तु मूर्ख संतान अपनी मां का
तिरस्कार करती है।
21जिस मनुष्य में समझ नहीं है,
वह मूर्खता को ही आनन्द समझता है;
किन्तु समझदार व्यक्ति सन्मार्ग पर
चलता है।
22बिना उचित सलाह के
योजनाएं निष्फल हो जाती हैं;
किन्तु यदि योजना में
अनेक बुद्धिमानों की सम्मति प्राप्त हो,
तो वह सफल हो जाती है।
23समय पर उपयुक्त उत्तर देना
मनुष्य को आनन्द प्रदान करता है;
अवसर पर कही गई बात
कितनी भली होती है।
24बुद्धिमान का मार्ग उसको जीवन की ओर,
ऊध्र्व लोक में ले जाता है,
और वह अधोलोक में जाने से बच जाता है।
25प्रभु दुर्जन का मकान
तहस-नहस कर देता है;
किन्तु वह विधवा की सम्पत्ति की रक्षा
करता है।
26प्रभु दुर्जन के विचारों से घृणा करता है;
किन्तु शुद्ध हृदयवाले व्यक्ति के
वचन से उसे प्रसन्नता होती है।
27धन का लोभी मनुष्य,
जो अन्याय से धन कमाता है,
अपने परिवार को संकट में डालता है;
पर घूस से घृणा करनेवाला व्यक्ति
जीवित रहेगा।
28उत्तर देने के पूर्व
धार्मिक मनुष्य अपने मन में विचार करता है;
किन्तु दुर्जन का मुंह
बुरी बातें ही उगलता रहता है।
29प्रभु धार्मिक व्यक्ति की प्रार्थना सुनता है,
पर वह दुर्जन की ओर ध्यान नहीं देता।#यो 6:31
30सन्देशवाहक की आंखों की चमक से
हृदय भी आनन्दित होता है;
सुखद समाचार सुनकर
हड्डियों में जान आ जाती है।
31जो मनुष्य हितपूर्ण चेतावनियों पर
ध्यान देता है,
वह बुद्धिमानों के सत्संग में स्थान पाता है।
32जो मनुष्य शिक्षा की बातों की
उपेक्षा करता है,
वह स्वयं अपना तिरस्कार करता है;
पर डांट-डपट पर ध्यान देनेवाला व्यक्ति
व्यवहार-कुशल बनता है।
33प्रभु की भक्ति करना
बुद्धि से शिक्षा प्राप्त करना है;
आदर पाने के पूर्व विनम्र बनना आवश्यक है।
वर्तमान में चयनित:
नीतिवचन 15: HINCLBSI
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