नीतिवचन 11:24-31

नीतिवचन 11:24-31 HINCLBSI

मुक्‍त हृदय से लुटानेवाला मनुष्‍य धनवान होता जाता है; पर जो मनुष्‍य जितना देना चाहिए उतना नहीं देता; वह अभावग्रस्‍त हो जाता है। उदारता से देनेवाला मनुष्‍य सम्‍पन्न होता है; दूसरे के खेत को सींचनेवाले किसान की भूमि भी सींची जाती है। अनाज के जमाखोर को लोग कोसते हैं, पर जो व्‍यापारी अपना अनाज जनता को बेच देता है, उसको लोग आशीर्वाद देते हैं। जो भलाई करने के लिए सदा प्रयत्‍न करता है, वह मनुष्‍य और परमेश्‍वर दोनों की कृपा प्राप्‍त करता है; पर जो बुराई की तलाश में रहता है उसको बुराई ही मिलती है। अपनी धन-सम्‍पत्ति पर भरोसा करनेवाला सूखे पत्ते के समान झड़ जाता है; पर धार्मिक मनुष्‍य नए पत्ते के समान लहलहाता है। जो मनुष्‍य अपने परिवार को दु:ख देता है उसकी धन-सम्‍पत्ति नष्‍ट हो जाती है, और वह मूर्ख मनुष्‍य बुद्धिमान का गुलाम बन जाता है। धार्मिक व्यक्‍ति के आचरण का फल है: जीवन वृक्ष! पर दुष्‍कर्मी के कार्य का फल है: हिंसा! यदि धार्मिक को पृथ्‍वी पर ही उसके आचरण का प्रतिफल मिल जाता है, तो फिर दुर्जन और पापी को क्‍यों नहीं मिलेगा?