इसलिए प्रिय भाइयो और बहिनो, प्रभु में इस तरह दृढ़ रहिए। मेरे प्राणप्यारो! मुझे आप लोगों से मिलने की बड़ी इच्छा है। आप मेरे आनन्द और मेरे मुकुट हैं। मैं युओदिया और सुनतुखे, दोनों बहिनों से अनुरोध करता हूँ कि तुम प्रभु में समझौता कर लो। सुजुगस! मैं तुमसे, अपने सच्चे साथी से प्रार्थना करता हूँ कि तुम इन दोनों की सहायता करो। इन दोनों बहिनों ने, क्लेमेंस और मेरे अन्य सहयोगियों सहित, जिनके नाम जीवन की पुस्तक में हैं, शुभसमाचार के प्रचार में मेरे साथ कठोर परिश्रम किया है। आप लोग प्रभु में हर समय आनन्दित रहें। मैं फिर कहता हूँ, आनन्दित रहें। सब लोग आपके सौम्य स्वभाव को जान जायें। प्रभु निकट हैं। किसी बात की चिन्ता न करें। हर जरूरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें। और परमेश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से परे है, आपके हृदय और विचारों को येशु मसीह में सुरक्षित रखेगी। भाइयो और बहिनो! अन्त में यह : जो कुछ सच है, आदरणीय है; जो कुछ न्यायसंगत है, निर्दोष है; जो कुछ प्रीतिकर है, मनोहर है, जो कुछ भी उत्तम है, प्रशंसनीय है : ऐसी बातों का मनन किया करें। आप लोगों ने मुझ से जो सीखा, ग्रहण किया, सुना और मुझ में देखा, उसके अनुसार आचरण करें और शान्ति का परमेश्वर आप लोगों के साथ रहेगा। मुझे प्रभु में बड़ा आनन्द इसलिए हुआ कि मेरे प्रति आप लोगों की शुभचिंता इतने दिनों के बाद फिर पल्लवित हुई। इस से पहले भी आप को मेरी चिन्ता अवश्य थी, किन्तु उसे प्रकट करने का सुअवसर नहीं मिल रहा था। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मुझे किसी बात की कमी है, क्योंकि मैंने हर परिस्थिति में स्वावलम्बी होना सीख लिया है। मैं दरिद्रता तथा सम्पन्नता, दोनों से परिचित हूँ। चाहे परितृप्ति हो या भूख, समृद्धि हो या अभाव-मुझे जीवन के उतार-चढ़ाव का पूरा अनुभव है। जो मुझे बल प्रदान करता है, उसकी सहायता से मैं सब कुछ कर सकता हूँ।
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