येशु सोर के इस सीमा-क्षेत्र से चले गये। वह सीदोन से होते हुए और दिकापुलिस के सीमा-क्षेत्र को पार कर गलील की झील के तट पर पहुँचे। वहाँ लोग उनके पास एक मनुष्य को लाए। वह बहरा था और बोलते समय बहुत हकलाता था। उन्होंने येशु से अनुरोध किया, “आप उस पर हाथ रख दीजिए।” येशु ने उसे भीड़ से अलग एकान्त में ले जा कर उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डालीं और उसकी जीभ पर अपना थूक लगाया। फिर आकाश की ओर आँखें उठा कर उन्होंने आह भरी और उससे कहा, “एफ्फथा” अर्थात् “खुल जा”। उसी क्षण उसके कान खुल गये और उसकी जीभ का बन्धन भी छूट गया, जिससे वह अच्छी तरह बोलने लगा। येशु ने लोगों को आदेश दिया कि वे यह बात किसी से नहीं कहें, परन्तु वह जितना ही अधिक मना करते थे, लोग उतना ही अधिक इसका प्रचार करते थे। लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही। वे कहते थे, “वह जो कुछ करते हैं, अच्छा ही करते हैं। वह बहरों को कान और गूँगों को वाणी देते हैं।”
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