मारकुस 12:18-44

मारकुस 12:18-44 HINCLBSI

सदूकी सम्‍प्रदाय के कुछ लोग येशु के पास आए। उनकी धारणा है कि मृतकों का पुनरुत्‍थान नहीं होता। उन्‍होंने येशु से यह प्रश्‍न पूछा, “गुरुवर! मूसा ने हमारे लिए यह नियम बनाया है : यदि किसी का भाई, अपनी पत्‍नी के रहते निस्‍सन्‍तान मर जाए, तो वह अपने भाई की विधवा से विवाह करे और अपने भाई के लिए सन्‍तान उत्‍पन्न करे। सात भाई थे। पहले ने विवाह किया और वह निस्‍सन्‍तान मर गया। दूसरा भाई भी, उसकी विधवा से विवाह कर, निस्‍सन्‍तान मर गया। तीसरे के साथ भी वही हुआ। इस प्रकार सातों भाई निस्‍सन्‍तान मर गये। सबके अंत में वह स्‍त्री भी मर गयी। जब वे पुनरुत्‍थान में जी उठेंगे, तो वह किसकी पत्‍नी होगी? वह तो सातों भाइयों की पत्‍नी रह चुकी है।” येशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, “क्‍या तुम इस कारण भ्रम में नहीं पड़े हुए हो कि तुम न तो धर्मग्रन्‍थ जानते हो और न परमेश्‍वर की शक्‍ति? क्‍योंकि जब वे मृतकों में से जी उठते हैं, तब न तो पुरुष विवाह करते और न स्‍त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं; बल्‍कि वे स्‍वर्गदूतों के सदृश होते हैं। “जहाँ तक मृतकों के जी उठने का प्रश्‍न है, क्‍या तुम ने मूसा के ग्रन्‍थ में, जलती झाड़ी की कथा में, यह नहीं पढ़ा कि परमेश्‍वर ने मूसा से कहा, ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ’? वह मृतकों का नहीं वरन् जीवितों का परमेश्‍वर है। तुम भ्रम में पड़े हुए हो!” एक शास्‍त्री यह शास्‍त्रार्थ सुन रहा था। उसने देखा कि येशु ने सदूकियों को ठीक उत्तर दिया। वह आगे बढ़ा और उसने येशु से पूछा, “सब से पहली आज्ञा कौन-सी है?” येशु ने उत्तर दिया, “पहली आज्ञा यह है : ‘इस्राएल सुनो! हमारा प्रभु परमेश्‍वर एकमात्र प्रभु है। अपने प्रभु परमेश्‍वर को अपने सम्‍पूर्ण हृदय, सम्‍पूर्ण प्राण, सम्‍पूर्ण बुद्धि और सम्‍पूर्ण शक्‍ति से प्रेम करो।’ दूसरी आज्ञा यह है, ‘अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करो।’ इन से बड़ी कोई आज्ञा नहीं।” शास्‍त्री ने उन से कहा, “हे गुरुवर! क्‍या सुन्‍दर बात है! आपने सच कहा कि एक ही परमेश्‍वर है। उसके अतिरिक्‍त और कोई परमेश्‍वर नहीं है। उसे अपने सम्‍पूर्ण हृदय, सम्‍पूर्ण ज्ञान और सम्‍पूर्ण शक्‍ति से प्रेम करना और अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करना, यह हर प्रकार की अग्‍नि-बलि और पशु-बलि चढ़ाने से अधिक महत्‍वपूर्ण है।” जब येशु ने देखा कि उसने विवेकपूर्ण उत्तर दिया है, तो उन्‍होंने उससे कहा, “तुम परमेश्‍वर के राज्‍य से दूर नहीं हो।” इसके बाद किसी को येशु से और प्रश्‍न पूछने का साहस नहीं हुआ। येशु ने, मन्‍दिर में शिक्षा देते समय, यह प्रश्‍न उठाया, “शास्‍त्री कैसे कह सकते हैं कि मसीह दाऊद के वंशज हैं? दाऊद ने स्‍वयं पवित्र आत्‍मा की प्रेरणा से कहा, ‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा : तुम मेरे सिंहासन की दाहिनी ओर बैठो, जब तक मैं तुम्‍हारे शत्रुओं को तुम्‍हारे पैरों तले न डाल दूँ।’ “दाऊद स्‍वयं उन्‍हें प्रभु कहते हैं, तो वह उनके वंशज कैसे हो सकते हैं?” विशाल जनसमूह येशु की बातें सुनने में रस ले रहा था। येशु ने शिक्षा देते समय कहा, “शास्‍त्रियों से सावधान रहो। लम्‍बे लबादे पहन कर घूमना, बाजारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना, सभागृहों में प्रमुख आसनों पर और भोजों में सम्‍मानित स्‍थानों पर बैठना−यह सब उन्‍हें पसन्‍द है। किन्‍तु वे विधवाओं की सम्‍पत्ति चट कर जाते और दिखावे के लिए लम्‍बी-लम्‍बी प्रार्थनाएँ करते हैं। उन को बड़ा कठोर दण्‍ड मिलेगा।” येशु मन्‍दिर के खजाने के सामने बैठ कर लोगों को उसमें सिक्‍के डालते हुए देख रहे थे। अनेक धनवान व्यक्‍ति बहुत भेंट चढ़ा रहे थे। एक गरीब विधवा आयी और दो अधेले अर्थात् एक पैसा खजाने में डाला। इस पर येशु ने अपने शिष्‍यों को बुला कर कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ; खजाने में भेंट चढ़ाने वालों में इस गरीब विधवा ने सब से अधिक डाला है; क्‍योंकि सब ने अपनी समृद्धि से कुछ चढ़ाया, परन्‍तु इसने तंगी में रहते हुए भी, इसके पास जो कुछ था, वह सब अर्थात् अपनी सारी जीविका ही अर्पित कर दी!”