येशु वहाँ से आगे बढ़े तो दो अन्धे यह पुकारते हुए उनके पीछे हो लिये, “दाऊद के वंशज! हम पर दया कीजिए।” जब येशु घर पहुँचे, तो ये अन्धे उनके पास आए। येशु ने उन से पूछा, “क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूँ?” उन्होंने कहा, “जी हाँ, प्रभु!” तब येशु ने यह कहते हुए उनकी आँखों का स्पर्श किया, “जैसा तुमने विश्वास किया, वैसा ही तुम्हारे लिए हो जाए।” और उनकी आँखें खुल गयीं। येशु ने यह कहते हुए उन्हें कड़ी चेतावनी दी, “सावधान! यह बात कोई न जानने पाए।” परन्तु उन्होंने जाकर उस पूरे इलाके में येशु का नाम फैला दिया। दोनों बाहर निकल ही रहे थे कि कुछ लोग भूत से जकड़े हुए एक गूँगे मनुष्य को येशु के पास लाए। येशु ने भूत को निकाल दिया और वह गूँगा बोलने लगा। लोग अचम्भे में पड़ कर बोल उठे, “इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया है।” परन्तु फरीसियों ने कहा, “यह भूतों के नायक की सहायता से भूतों को निकालता है।” येशु सब नगरों और गाँवों में भ्रमण कर उनके सभागृहों में शिक्षा देते, राज्य के शुभसमाचार का प्रचार करते, और हर तरह की बीमारी और दुर्बलता दूर करते रहे। जनसमूह को देख कर येशु को उन पर तरस आया, क्योंकि वे उत्पीड़ित और निस्सहाय थे। वे उन भेड़ों के समान थे जिनका कोई चरवाहा न हो। येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “फसल तो बहुत है, परन्तु मजदूर थोड़े हैं। इसलिए फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मजदूरों को भेजे।”
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