मत्ती 7:8-29

मत्ती 7:8-29 HINCLBSI

क्‍योंकि जो माँगता है, उसे मिलता है; जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और जो खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोला जाता है। “यदि तुम्‍हारा पुत्र तुम से रोटी माँगे, तो तुम में ऐसा कौन पिता है जो उसे पत्‍थर देगा अथवा मछली माँगे, तो उसे साँप देगा? बुरे होने पर भी यदि तुम अपने बच्‍चों को सहज ही अच्‍छी वस्‍तुएँ देते हो, तो तुम्‍हारा स्‍वर्गिक पिता अपने माँगने वालों को अच्‍छी वस्‍तुएँ क्‍यों नहीं देगा? “हर समय दूसरों से अपने प्रति जैसा व्‍यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही व्‍यवहार किया करो; क्‍योंकि व्‍यवस्‍था-ग्रन्‍थ और नबियों की यही शिक्षा है। “सँकरे द्वार से प्रवेश करो। चौड़ा है वह फाटक और विस्‍तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्‍या बड़ी है। किन्‍तु सँकरा है वह द्वार और संकीर्ण है वह मार्ग, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्‍या थोड़ी है। “झूठे नबियों से सावधान रहो। वे भेड़ों के वेश में तुम्‍हारे पास आते हैं, किन्‍तु वे भीतर से खूंखार भेड़िये हैं। उनके फलों से तुम उन्‍हें पहचान जाओगे। क्‍या लोग कंटीली झाड़ियों से अंगूर या ऊंट-कटारों से अंजीर तोड़ते हैं? इस तरह हर अच्‍छा पेड़ अच्‍छे फल देता है और बुरा पेड़ बुरे फल देता है। अच्‍छा पेड़ बुरे फल नहीं दे सकता और न बुरा पेड़ अच्‍छे फल। जो पेड़ अच्‍छा फल नहीं देता, उसे काटा और आग में झोंक दिया जाता है। इसलिए उनके फलों से ही तुम उन्‍हें पहचान जाओगे। “जो लोग मुझे ‘प्रभु! प्रभु!’ कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्‍वर्गराज्‍य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्‍वर्गिक पिता की इच्‍छा पूरी करता है, वही स्‍वर्गराज्‍य में प्रवेश करेगा। उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, ‘प्रभु! प्रभु! क्‍या हम ने आपके नाम से नबूवत नहीं की? आपके नाम से भूतों को नहीं निकाला? आपके नाम से सामर्थ्य के अनेक कार्य नहीं किए?’ तब मैं उन्‍हें साफ-साफ बता दूँगा, ‘मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियो! मुझ से दूर हटो।’ “जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्‍य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया था। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और वेगपूर्वक उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्‍योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी। “जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्‍तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।” जब येशु ने अपना यह उपदेश समाप्‍त किया, तब जनसमूह उनकी शिक्षा सुनकर आश्‍चर्यचकित हो गया; क्‍योंकि येशु उनके शास्‍त्रियों की तरह नहीं बल्‍कि अधिकार के साथ उन्‍हें शिक्षा देते थे।

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