मत्ती 18:23-35

मत्ती 18:23-35 HINCLBSI

“यही कारण है कि स्‍वर्ग का राज्‍य उस राजा के सदृश है, जो अपने सेवकों से लेखा लेना चाहता था। जब वह लेखा लेने लगा, तब उसके सामने एक सेवक लाया गया। उस पर दस हजार सोने के सिक्‍कों का कर्ज था। कर्ज चुकाने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था, इसलिए स्‍वामी ने आदेश दिया कि उसे, उसकी पत्‍नी, उसके बच्‍चों और उसकी सारी जायदाद को बेच दिया जाए और ऋण अदा कर लिया जाए। इस पर वह सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करने लगा, ‘धैर्य रखिए। मैं आपको सब कुछ चुका दूँगा।’ उस सेवक के स्‍वामी को उस पर तरस आया और उसने उसे मुक्‍त कर जाने दिया और उसका कर्ज माफ कर दिया। जब वह सेवक बाहर निकला, तब वह अपने एक सह-सेवक से मिला, जिस पर उसका लगभग एक सौ चाँदी के सिक्‍कों का कर्ज था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला दबा कर कहा, ‘अपना कर्ज चुका दो।’ सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कहते हुए अनुनय-विनय करने लगा, ‘धैर्य रखिए, मैं आप को कर्ज चुका दूँगा।’ परन्‍तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिए बन्‍दीगृह में डलवा दिया, जब तक वह अपना कर्ज न चुका दे। यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दु:खी हुए और उन्‍होंने अपने स्‍वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं। तब स्‍वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, ‘दुष्‍ट सेवक! तुम्‍हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्‍हारा सारा कर्ज माफ कर दिया था, तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्‍या उसी प्रकार तुम्‍हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?’ और स्‍वामी ने क्रुद्ध हो कर उसे तब तक के लिए यंत्रणा देने वालों के हवाले कर दिया, जब तक वह कौड़ी-कौड़ी न चुका दे। इसी प्रकार यदि तुम में हर एक जन अपने भाई-बहिन को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा, तो मेरा स्‍वर्गिक पिता भी तुम्‍हारे साथ ऐसा ही करेगा।”