लूकस 24
24
पुनरुत्थान
1सप्ताह के प्रथम दिन, पौ फटते ही स्त्रियाँ तैयार किये हुए सुगन्धित द्रव्य ले कर कबर के पास गयीं।#मत 28:1-8; मक 16:1-8; यो 20:1-13 2उन्होंने पत्थर को कबर से अलग लुढ़काया हुआ पाया, 3किन्तु शवकक्ष के भीतर जाने पर उन्हें प्रभु येशु का शव नहीं मिला। 4वे इस पर आश्चर्य कर ही रही थीं कि चमचमाते वस्त्र पहने दो पुरुष उनके पास आ कर खड़े हो गये। 5स्त्रियों ने भयभीत हो कर भूमि की ओर सिर झुका लिया। उन पुरुषों ने उन से कहा, “आप लोग जीवित को मृतकों में क्यों ढूँढ़ रही हैं? 6वह यहाँ नहीं हैं, पर वह जी उठे हैं। गलील प्रदेश में रहते समय उन्होंने आप लोगों से जो कहा था, वह याद कीजिए। 7उन्होंने यह कहा था कि मानव-पुत्र का पापियों के हाथ सौंपा जाना, क्रूस पर चढ़ाया जाना और तीसरे दिन जी उठना अनिवार्य है।”#मत 17:22-23 8तब स्त्रियों को येशु का यह कथन स्मरण हुआ 9और वे कबर से लौट पड़ीं। उन्होंने ग्यारह प्रेरितों को तथा अन्य सब शिष्यों को ये सारी बातें कह सुनाईं। 10जिन्होंने प्रेरितों से ये बातें कहीं, वे मरियम मगदलेनी, योअन्ना, और याकूब की माता मरियम तथा उनके साथ की अन्य स्त्रियाँ थीं।#लू 8:2-3 11परन्तु प्रेरितों ने इन सब बातों को प्रलाप मात्र ही समझा और स्त्रियों पर विश्वास नहीं किया। 12फिर भी पतरस उठा और दौड़ते हुए कबर के पास पहुँचा। उसने झुक कर देखा कि पट्टियों के अतिरिक्त वहाँ कुछ भी नहीं है और वह इस घटना पर आश्चर्य करता हुआ लौट आया।
इम्माउस के मार्ग में शिष्यों को दर्शन
13-14उसी दिन उनमें से दो शिष्य इन सब घटनाओं पर बातें करते हुए इम्माउस नामक गाँव जा रहे थे। वह यरूशलेम से कोई दस किलोमीटर#24:13-14 मूल में साठ स्तदियन। पाठान्तर ‘एक सौ साठ स्तदियन’ दूर है।#मक 16:12-13 15वे आपस में बातचीत और विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि येशु स्वयं आ कर उनके साथ हो लिये,#मत 18:20 16परन्तु शिष्यों की आँखें उन्हें पहचानने में असमर्थ रहीं। 17येशु ने उन से कहा, “आप लोग राह चलते किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?” वे उदास खड़े रह गये। 18तब उन में एक, जिसका नाम िक्लयुपास था, बोला, “क्या यरूशलेम में केवल आप ही एक ऐसे प्रवासी हैं, जो यह नहीं जानते कि वहाँ इन दिनों क्या-क्या हुआ है?” 19येशु ने उन से कहा, “क्या हुआ है?” उन्होंने उत्तर दिया, “बात येशु नासरी की है। वह परमेश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे।#मत 21:11 20हमारे महापुरोहितों और शासकों ने उन्हें प्राणदण्ड दिलाया और क्रूस पर चढ़वाया। 21हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करेंगे। इन सब बातों के अतिरिक्त एक बात और : यह आज से तीन दिन पहले की घटना है।#लू 1:68; 2:38; 19:11; प्रे 1:6 22हम में से कुछ स्त्रियों ने हमें बड़े अचम्भे में डाल दिया है। वे बड़े सबेरे कबर पर गयीं#लू 24:1-11 23और उन्हें येशु का शव नहीं मिला। उन्होंने लौट कर कहा कि उन्हें स्वर्गदूत भी दिखाई दिये, जिन्होंने यह बताया कि येशु जीवित हैं। 24इस पर हमारे कुछ साथी कबर पर गये और उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया, जैसा स्त्रियों ने कहा था; परन्तु उन्होंने येशु को नहीं देखा।”#लू 24:12; यो 20:3-10
25तब येशु ने उन से कहा, “निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मन्दमति हो! 26क्या यह अनिवार्य नहीं था कि मसीह यह सब दु:ख भोगें और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें?” 27तब येशु ने मूसा एवं सब नबियों से आरम्भ कर संपूर्ण धर्मग्रन्थ में अपने विषय में लिखी बातों की व्याख्या उनसे की।#व्य 18:15; भज 22:1-21; यश 53:1-12
28इतने में वे उस गाँव के पास पहुँच गये, जहाँ वे जा रहे थे। येशु ने ऐसा दिखाया कि वह आगे जाना चाहते हैं। 29किन्तु शिष्यों ने यह कह कर उन से आग्रह किया, “हमारे साथ रह जाइए। संध्या हो रही है और अब दिन ढल चुका है।” वह उनके साथ ठहरने के लिए भीतर गये। 30जब येशु उनके साथ भोजन करने बैठे, तब उन्होंने रोटी ली, आशिष माँगी और वह रोटी तोड़ कर उन्हें देने लगे।#लू 22:19 31इस पर शिष्यों की आँखें खुल गयीं और उन्होंने येशु को पहचान लिया ... किन्तु येशु उनकी दृष्टि से ओझल हो गये। 32तब शिष्यों ने एक दूसरे से कहा, “हमारे हृदय कितने उद्दीप्त हो रहे थे, जब वह मार्ग में हम से बातें कर रहे थे और हमें धर्मग्रन्थ समझा रहे थे!”
33वे उसी समय उठे और यरूशलेम लौट गये। वहाँ उन्होंने ग्यारहों और उनके साथियों को एकत्र पाया, 34जो यह कह रहे थे, “प्रभु सचमुच जी उठे हैं और सिमोन को दिखाई दिये हैं।”#1 कुर 15:4-5 35तब दोनों शिष्यों ने भी बताया कि मार्ग में क्या-क्या हुआ और उन्होंने येशु को रोटी तोड़ते समय कैसे पहचाना।
येशु का बहुत-से शिष्यों को दर्शन देना
36वे इन सब घटनाओं पर बातचीत कर ही रहे थे कि येशु उनके बीच आ कर खड़े हो गये। उन्होंने उन से कहा, “तुम्हें शान्ति मिले!’#मक 16:14-18; यो 20:19-23; 1 कुर 15:5 37परन्तु वे विस्मित हो गए और भयभीत होकर सोचने लगे कि वे कोई प्रेत देख रहे हैं।#मत 14:26 38येशु ने उन से कहा, “तुम लोग क्यों घबरा रहे हो? तुम्हारे मन में सन्देह क्यों हो रहा है? 39मेरे हाथ और मेरे पैर देखो, मैं ही हूँ। मुझे टटोल कर देखो, क्योंकि प्रेत के हाड़-मांस नहीं होता जैसा तुम मुझ में देख रहे हो!” 40उन्होंने यह कह कर उन को अपने हाथ और पैर दिखाए। 41जब इस पर भी शिष्यों को आनन्द के मारे विश्वास नहीं हो रहा था और वे आश्चर्य-चकित बने हुए थे, तब येशु ने कहा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास खाने को कुछ है?” 42उन्होंने येशु को भूनी मछली का एक टुकड़ा दिया।#यो 21:5,10 43उन्होंने उसे लिया और उनके सामने खाया।
अन्तिम निर्देश
44येशु ने शिष्यों से कहा, “मैं ने तुम्हारे साथ रहते समय तुम लोगों से कहा था कि जो कुछ मूसा की व्यवस्था में और नबियों के ग्रंथों में तथा भजन-संहिता में मेरे विषय में लिखा है, सब का पूरा होना अनिवार्य है।”#लू 9:22,45; 18:31-33 45तब येशु ने शिष्यों की बुद्धि खोल दी कि वे धर्मग्रन्थ को समझ सकें, 46और उन से कहा, “धर्मग्रन्थ में ऐसा ही लिखा है कि मसीह दु:ख भोगेंगे, तीसरे दिन मृतकों में से जी उठेंगे#1 तिम 3:16 47और उनके नाम पर यरूशलेम से ले कर सभी राष्ट्रों को पापक्षमा के लिए पश्चात्ताप का संदेश सुनाया जाएगा। 48तुम इन बातों के गवाह हो। 49देखो, मेरे पिता ने जिस वरदान की प्रतिज्ञा की है, उसे मैं तुम पर भेजूँगा। इसलिए जब तक तुम ऊपर के सामर्थ्य से सम्पन्न न हो जाओ, तुम नगर में ठहरे रहो।”#यो 15:26; 16:7; प्रे 1:4
स्वर्गारोहण
50इसके पश्चात् येशु शिष्यों को बेतनियाह गाँव तक ले गये और उन्होंने अपने हाथ उठा कर उन्हें आशीर्वाद दिया।#मक 16:19; प्रे 1:4-14 51आशीर्वाद देते-देते वह उनसे अलग हो गये और स्वर्ग में उठा लिये गये।#प्रव 50:20
52शिष्य उनकी वंदना कर बड़े आनन्द के साथ यरूशलेम लौट आए#यो 16:22; 14:28 53और वे मन्दिर में सदा परमेश्वर की स्तुति करते रहे#24:53 अथवा ‘मन्दिर में सदा उपस्थित रहकर परमेश्वर की स्तुति करते थे।’।
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लूकस 24: HINCLBSI
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