तब येशु ने उन से कहा, “निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मन्दमति हो! क्या यह अनिवार्य नहीं था कि मसीह यह सब दु:ख भोगें और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें?” तब येशु ने मूसा एवं सब नबियों से आरम्भ कर संपूर्ण धर्मग्रन्थ में अपने विषय में लिखी बातों की व्याख्या उनसे की। इतने में वे उस गाँव के पास पहुँच गये, जहाँ वे जा रहे थे। येशु ने ऐसा दिखाया कि वह आगे जाना चाहते हैं। किन्तु शिष्यों ने यह कह कर उन से आग्रह किया, “हमारे साथ रह जाइए। संध्या हो रही है और अब दिन ढल चुका है।” वह उनके साथ ठहरने के लिए भीतर गये। जब येशु उनके साथ भोजन करने बैठे, तब उन्होंने रोटी ली, आशिष माँगी और वह रोटी तोड़ कर उन्हें देने लगे। इस पर शिष्यों की आँखें खुल गयीं और उन्होंने येशु को पहचान लिया ... किन्तु येशु उनकी दृष्टि से ओझल हो गये। तब शिष्यों ने एक दूसरे से कहा, “हमारे हृदय कितने उद्दीप्त हो रहे थे, जब वह मार्ग में हम से बातें कर रहे थे और हमें धर्मग्रन्थ समझा रहे थे!”
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4 दिन
जब हम उस दुनिया की स्थिति पर विचार करते हैं जिसमें हम रहते हैं, जहाँ युद्ध और संघर्ष हर समाचार चैनल पर हावी होते दिखते हैं, प्राकृतिक आपदाएँ वैश्विक स्तर पर लोगों को प्रभावित करती हैं और जहाँ समुदायों के भीतर टूटे हुए रिश्ते आम हैं, तो हम भजन 46 पर एक नज़र डालते हैं, जो हमें यह विश्वास दिलाता है कि परमेश्वर किसी भी और हर एक परिस्थिति में एक स्थिर नींव है। हम बदलते हैं, हमारी परिस्थितियाँ बदलती हैं, लेकिन हमारा परमेश्वर कभी नहीं बदलता।
29 दिन
चश्मदीदों ने खुशखबरी बताई कि ल्यूक ने यीशु के जन्म से लेकर मृत्यु और पुनरुत्थान तक की कहानी बताई; ल्यूक ने अपनी शिक्षाओं को भी दोहराया जिसने दुनिया को बदल दिया। ल्यूक के माध्यम से दैनिक यात्रा करें क्योंकि आप ऑडियो अध्ययन सुनते हैं और भगवान के वचन से चुनिंदा छंद पढ़ते हैं।
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