लगभग दोपहर का समय था। उस समय से तीसरे पहर तक सारे देश में अंधेरा छाया रहा। सूर्य का प्रकाश जाता रहा और मन्दिर का परदा बीच से फट कर दो टुकड़े हो गया। येशु ने ऊंचे स्वर से पुकार कर कहा, “पिता! मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों में सौंपता हूँ”, और यह कह कर उन्होंने प्राण त्याग दिये। शतपति ने यह घटना देख कर परमेश्वर की स्तुति की और यह कहा, “निश्चय ही, यह मनुष्य धर्मात्मा था।” बहुत-से लोग यह दृश्य देखने के लिए इकट्ठे हो गये थे। वे सब इन घटनाओं को देख कर अपनी छाती पीटते हुए लौट गये। येशु के सब परिचित व्यक्ति कुछ दूर खड़े थे। उनमें स्त्रियाँ भी थीं, जो गलील प्रदेश से येशु के पीछे-पीछे आयी थीं और यह सब देख रही थीं।
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