वे ‘खोपड़ी’ नामक स्थान पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने येशु को और उन दो कुकर्मियों को भी क्रूस पर चढ़ाया−एक को उनकी दायीं ओर और दूसरे को उनकी बायीं ओर। [येशु ने कहा, “पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।”] तब उन्होंने चििट्ठयाँ डाल कर येशु के वस्त्र आपस में बाँट लिये। जनता खड़ी हो कर यह सब देख रही थी। अधिकारी यह कहते हुए येशु का उपहास कर रहे थे, “इसने दूसरों को बचाया। यदि यह परमेश्वर का मसीह है, यदि इसको परमेश्वर ने चुना है, तो यह अपने को बचाये।” सैनिकों ने भी उनका उपहास किया। वे पास आए और उन्हें अम्लरस देते हुए बोले, “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने को बचा।” येशु के क्रूस के ऊपर भी लिखा हुआ था, “यह यहूदियों का राजा है।” क्रूस पर टंगा एक कुकर्मी येशु की निन्दा करने लगा, “तू मसीह है न? तो अपने को और हमें भी बचा।” पर दूसरे कुकर्मी ने उसे डाँट कर कहा, “क्या तुझे परमेश्वर का भी डर नहीं? तू भी तो वही दण्ड भोग रहा है। हमारा दण्ड न्यायसंगत है, क्योंकि हम अपनी करनी का फल भोग रहे हैं; पर इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है।” तब उसने कहा, “येशु! जब आप अपने राज्य में आएँ, तो मुझे स्मरण करना।” येशु ने उससे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, तुम आज ही स्वर्गधाम में मेरे साथ होगे।”
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