येशु के माता-पिता प्रति वर्ष पास्का (फसह) का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम नगर जाया करते थे। जब बालक बारह वर्ष का था, तब वे प्रथा के अनुसार पर्व मनाने के लिए तीर्थनगर यरूशलेम गये। पर्व के दिन समाप्त हुए तो वे लौटे; परन्तु किशोर येशु यरूशलेम में ही रह गया। उसके माता-पिता यह नहीं जानते थे। वे यह समझ रहे थे कि वह यात्रीदल के साथ है। इसलिए वे एक दिन की यात्रा पूरी करने के बाद उसे अपने कुटुम्बियों और परिचितों के बीच ढूँढ़ने लगे। जब उन्होंने उसे नहीं पाया तब वे उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यरूशलेम लौटे। तीन दिनों के बाद उन्होंने येशु को मन्दिर में धर्मगुरुओं के बीच बैठे, उनकी बातें सुनते और उनसे प्रश्न पूछते हुए पाया। सभी सुनने वाले उसकी बुद्धि और उसके उत्तरों पर चकित थे। उसके माता-पिता उसे देख कर अचम्भे में पड़ गये। उसकी माता ने उससे कहा, “पुत्र! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देखो, तुम्हारे पिता और मैं चिंतित थे, और तुम को ढूँढ़ रहे थे।” उसने अपने माता-पिता से कहा, “आप मुझे क्यों ढूँढ़ रहे थे? क्या आप यह नहीं जानते थे कि मैं निश्चय ही अपने पिता के घर में होऊंगा? परन्तु येशु का यह कथन उनकी समझ में नहीं आया।
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