जो नगरी लोगों से भरी-पूरी थी, अब वह उजाड़ पड़ी है; वह विधवा के सदृश अकेली हो गई। जो कभी राष्ट्रों में महान थी, जो कभी नगरों में रानी थी, अब वह दासी बन गई, वह दूसरे राज्यों को कर चुकाती है। वह रात में फूट-फूटकर रोती है। उसके गालों पर आंसू बहते हैं। उसके अनेक चाहनेवाले थे, पर अब उनमें से एक भी उसको सांत्वना नहीं देता, उसके मित्रों ने उसके साथ विश्वासघात किया। वे उसके शत्रु बन गए। अनेक दु:ख भोगने और कठोर गुलामी के बोझ से दबने के लिए यहूदा राष्ट्र को निर्वासित होना पड़ा; अब यहूदा अनेक राष्ट्रों में भटक रहा है; उसे कहीं ठौर नहीं मिला। जब वह संकट में रहता है, तब उसका पीछा करनेवाले उसको पकड़ लेते हैं। सियोन को जानेवाले मार्ग विलाप करते हैं, क्योंकि अब पर्व मनाने के लिए कोई वहां नहीं आता! सियोन के सब द्वार उजाड़ पड़े हैं; उसके पुरोहित कराह रहे हैं। उसकी कन्याएँ दु:ख से पीड़ित हैं; स्वयं सियोन नगरी दु:ख भोग रही है। सियोन के बैरी अब अगुए बन गए; उसके शत्रु खुशहाल हैं। सियोन के अपार अपराधों के कारण प्रभु ने उसको दु:ख भोगने के लिए विवश किया है। सियोन के निवासी शत्रु के सम्मुख बन्दी बनाए गए, और वे निर्वासित हो गए। सियोन के निवासियों का वैभव लुट गया; उसके शासक ऐसे मेढ़ों की तरह हो गए जिन्हें चरने को चरागाह नहीं मिलते। वे निर्बल हो गए, और अपने पीछा करनेवालों के आगे-आगे भागते हुए चल रहे हैं। ऐसे संकट और दु:ख-भरे दिनों में यरूशलेम को धन-समृद्धि की, वैभवपूर्ण दिनों की, उन वस्तुओं की याद आ रही है, जब प्राचीनकाल में ये वस्तुएँ उसके अधिकार में थीं। अब यरूशलेम के निवासी बैरियों के हाथ में पड़ गए; उनकी सहायता करनेवाला कोई न था; उसके पतन को देखकर उसके बैरी उसका मजाक उड़ाने लगे। यरूशलेम नगरी ने भयानक पाप किए थे, अत: सब उससे घृणा करने लगे। जो उसका आदर करते थे अब वे उसका अनादर करते हैं; क्योंकि उन्होंने उसकी नग्नता देख ली है। अब यरूशलेम नगरी स्वयं कराह रही है, और शर्म से अपना मुंह छिपा रही है। उसकी अशुद्धता उसके कपड़ों पर लिपटी है। उसने अपने अंत का विचार भी न किया। अत: वह विस्मित ढंग से पतन के गड्ढे में गिर पड़ी! उसे सांत्वना देनेवाला भी कोई नहीं है। ‘हे प्रभु, मेरे कष्टों को देख; क्योंकि शत्रु मुझ पर प्रबल हो गया!’ शत्रु ने उसका धन-वैभव लूटने के लिए अपना हाथ बढ़ाया है; हां, यरूशलेम नगरी को यह भी देखना पड़ा; विधर्मी राष्ट्र उसके पवित्र स्थान में घुस गए, जिनके विषय में तूने, प्रभु, यह आज्ञा दी थी, कि वे तेरी मंडली में प्रवेश नहीं करेंगे। अब उसके सब निवासी कराहते हुए भोजन की तलाश में भटक रहे हैं। वे अपने प्राण बचाने के लिए बहुमूल्य वस्तुओं के बदले में भोजन खरीद रहे हैं। ‘हे प्रभु, मेरे कष्ट को देख, मुझ पर ध्यान दे! क्योंकि मैं कितनी तिरस्कृत हो गई हूं।’ ‘ओ सब राहगीरो! तुम पर यह मुसीबत न आए! मुझे देखो, मुझ पर ध्यान दो। जो दु:ख मुझे दिया गया है क्या उस दु:ख के तुल्य अन्य दु:ख हो सकता है? प्रभु ने अपने क्रोध-दिवस पर यह दु:ख मुझे दिया है।
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