अय्‍यूब 14:1-6

अय्‍यूब 14:1-6 HINCLBSI

‘स्‍त्री से जन्‍मा मनुष्‍य अल्‍पायु होता है; उसका सारा जीवन दु:ख से भरा रहता है। वह फूल के समान खिलता है, और फिर मुरझा जाता है; वह छाया के समान ढलता है, और स्‍थिर नहीं रहता है। प्रभु, ऐसे क्षण-भंगुर मनुष्‍य को क्‍या तू जाँचता है? तू अपने साथ ऐसे मनुष्‍य को अदालत में खड़ा करता है? काश! अशुद्ध मनुष्‍यजाति में एक भी मनुष्‍य शुद्ध होता! पर नहीं, एक भी मनुष्‍य शुद्ध नहीं है। उसके जीवन के दिन निश्‍चित हैं, उसकी आयु के महीने तेरे हाथ में हैं। तूने उसके सामने सीमा-रेखा खींच दी है जिसको वह पार नहीं कर सकता। हे प्रभु, उस पर से दृष्‍टि हटा, ताकि वह प्रसन्नवदन हो सके, और एक मजदूर के समान दिन की समाप्‍ति पर आराम कर सके।